Sunday, November 17, 2024
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा किए गए जमीन के सौदे की पूरी सच्चाई, AAP के खोखले दावों की पूरी पड़ताल

वैसे भी किसी भी कीमत पर कुसुम अपनी जमीन को ट्रस्ट को 2 करोड़ रुपए में नहीं बेच सकती थी क्योंकि जमीन का सर्किल रेट 5.79 करोड़ रुपए है और इससे कम में सौदा किया जाना स्टाम्प ड्यूटी का उल्लंघन ही कहलाएगा।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने मार्च 2021 में अपने महासचिव चंपत राय के जरिए कुछ अतिरिक्त भूमि को खरीदने के लिए समझौता किया था, ताकि उस भूमि पर भविष्य में मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के लिए उचित सुविधाओं का निर्माण किया जा सके। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित भूमि को ट्रस्ट के हवाले कर दिया था, लेकिन ट्रस्ट ने भक्तों के लिए सुविधाओं का विस्तार करने के लिए अतिरिक्त भूमि के अधिग्रहण का निर्णय लिया। खुद चंपत राय लगातार ऑन रिकॉर्ड यह बात कहते आ रहे हैं कि मंदिर के आसपास की अतिरिक्त भूमि को भी वास्तु शास्त्र और भक्तों की सुविधाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से अधिग्रहीत किया जा रहा है।

इस संबंध में एक विशेष मामले की बात करते हैं। दरअसल, ट्रस्ट के द्वारा सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी से 1.208 हैक्टेयर जमीन 18.5 करोड़ रुपए में खरीदी गई। अंसारी तथा अन्य लोगों ने यह जमीन कुसुम पाठक से 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा इस जमीन को अयोध्या रेलवे स्टेशन के नजदीक भक्तों की सुविधाओं के विस्तार के उद्देश्य से खरीदा गया था। इसी जमीन को लेकर पूरा विवाद पैदा किया जा रहा है।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब आम आदमी पार्टी (आप) ने कुसुम पाठक और अंसारी के बीच हुए लेन-देन के बिक्रीनामे और ट्रस्ट एवं अंसारी के बीच हुए एग्रीमेंट को दिखाकर ट्रस्ट द्वारा मंदिर के लिए भूमि खरीद में घोटाले का आरोप लगाया था। आप नेता संजय सिंह ने आरोप लगाया कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने महासचिव चंपत राय के माध्यम से अत्यधिक ऊँचे दाम पर जमीन खरीदी है। समाजवादी पार्टी के नेता पवन पाण्डेय ने भी कुछ ऐसा ही आरोप लगाया।

संजय सिंह ने आरोप लगाया कि रजिस्ट्री के समय जमीन की कीमत लगभग 2 करोड़ रुपए थी, लेकिन ट्रस्ट ने 5 मिनट बाद ही इसके लिए 18.5 करोड़ रुपए का भुगतान किया। चूँकि भुगतान चंपत राय के नाम से हुआ इसलिए ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा, ऋषिकेश उपाध्याय और अयोध्या के महापौर इस रजिस्ट्री के गवाह थे। संजय सिंह ने इस मामले में सीबीआई और ईडी से जाँच की माँग की है।

हालाँकि, पूरे तथ्यों और दस्तावेजों को ध्यान से देखने पर यह पता चलता है कि जैसा आप के नेता कह रहे हैं वैसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं। आगे आम आदमी पार्टी के द्वारा लगाए गए कुछ आरोप और ऑपइंडिया के द्वारा प्राप्त हुए दस्तावेजों के आधार पर उन आरोपों के तथ्यात्मक जवाब हैं।

दावा : अंसारी और अन्य लोगों ने कुसुम से 18 मार्च 2021 को जमीन खरीदी और 15 मिनट बाद ही राम मंदिर ट्रस्ट को बेच दी थी। सिर्फ 15 मिनट में ही जमीन के दाम कई गुणा कैसे हो गए?

सच्चाई : घोटाले के आरोपों के बीज उन दस्तावेजों (ऊपर जानकारी दी गई है) से पड़े जो AAP ने दिखाए। AAP के अनुसार दोनों दस्तावेज एक ही दिन में सिर्फ 15 मिनट के अंदर ही बने इसलिए जमीन की कीमत का 2 करोड़ रुपए से 18.5 करोड़ रुपए होना एक घोटाला है। हालाँकि, ऐसा नहीं है। दोनों दस्तावेजों के एक ही दिन बनने का मतलब हमेशा यह नहीं है कि बिक्री भी एक ही दिन हुई है।

इस मामले में सबसे पहले कुसुम पाठक द्वारा अपनी जमीन अंसारी एवं अन्य को बेचने का एग्रीमेंट 17 सितंबर 2019 को हुआ। यह सौदा 2 करोड़ रुपए में तय हुआ और कुसुम को 50 लाख रुपए अंसारी से एडवांस में प्राप्त हुए। यह एग्रीमेंट पूरी तरह से रजिस्टर्ड है।

कुसुम और अंसारी एवं अन्य के बीच बिक्री एग्रीमेंट
कुसुम और अंसारी के बीच बिक्री एग्रीमेंट
कुसुम और अंसारी एवं अन्य के बीच बिक्री एग्रीमेंट
कुसुम और अंसारी के बीच बिक्री एग्रीमेंट
कुसुम और अंसारी के बीच बिक्रीनामा
मंदिर ट्रस्ट और अंसारी के बीच बिक्री एग्रीमेंट

एग्रीमेंट के मुताबिक अंसारी को बाकी बचे डेढ़ करोड़ रुपए चुकता करने के लिए सितंबर 2022 तक का समय दिया गया है। अब चूँकि कुसुम द्वारा एडवांस ले लिया गया था और एग्रीमेंट भी पूरा हो गया था अतः कुसुम इस समझौते से बाहर नहीं निकल सकती थी। जमीनों के दाम 09 नवंबर 2019 को राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तेजी से बढ़े लेकिन कुसुम अपनी जमीन 2 करोड़ रुपए में बेचने के लिए बाध्य थी।

इसके बाद ट्रस्ट ने 2021 में जमीन खरीदने का फैसला किया। इसके लिए ट्रस्ट ने अंसारी से 2019 में हुए समझौते को पूरा करने का अनुरोध किया। इसके बाद 18 मार्च 2021 को कुसुम और अंसारी के बीच सौदा पूरा हुआ। सौदा पूरा होने के तुरंत बाद ही अंसारी ने जमीन मंदिर ट्रस्ट को बेच दी। इस सौदे के द्वारा अंसारी के नाम हुई जमीन को ट्रस्ट ने अपने नाम कर लिया।

दावा : बिक्रीनामा और बिक्री समझौते के बीच क्या अंतर है? दोनों के बीच अंतर बताना घोटाले को छुपाने का प्रयास है।

सच्चाई : इस पूरी खरीद-बिक्री को लेकर कई दस्तावेजों का उपयोग करके भ्रम फैलाया गया। पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा ने ट्विटर पर यह दावा किया कि अयोध्या के महापौर ने यह स्वीकार किया है कि एक ही जमीन की दिन में दो बार रजिस्ट्री कराई गई।  

दोनों दस्तावेजों के मध्य बहुत बड़ा अंतर है। बिक्री समझौते के अंतर्गत संपत्ति का हस्तांतरण भविष्य की तारीख पर सुनिश्चित किया जाता है। जबकि बिक्रीनामे के अंतर्गत संपत्ति के अधिकार तुरंत ही हस्तांतरित हो जाते हैं। इसलिए खरीददार और विक्रेता के मध्य समझौते के आधार पर ही ये दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। 

अब यह ध्यान देने योग्य बात है कि कुसुम और अंसारी के बीच 2019 में बिक्री समझौता हुआ था न कि बिक्रीनामा बनाया गया था। इस एग्रीमेंट में बिक्री की रकम, एडवांस और पूरी कीमत चुकता करने की समय सीमा दी गई थी। यही कारण था कि 2021 में अंसारी से जमीन खरीदने से पहले यह तय हुआ कि जमीन का मालिकाना कुसुम से अंसारी को हस्तांतरित किया जाएगा। दोनों के बीच 2019 में हुआ बिक्री समझौता उस वक्त निरस्त हो गया जब 18 मार्च 2021 को दोनों के बीच जमीन के सौदे को लेकर बिक्रीनामा तैयार कर दिया गया। इसके बाद जमीन का मालिकाना हक़ अंसारी को दे दिया गया।

अंसारी को जमीन का मालिकाना मिलने के बाद मंदिर ट्रस्ट और अंसारी के बीच बिक्री समझौता हुआ। अंसारी ने जमीन को 18.5 करोड़ रुपए में ट्रस्ट को बेचने की सहमति जताई। यह कीमत जमीन के वर्तमान मूल्य पर आधारित है। ट्रस्ट और अंसारी के बीच फिलहल कोई बिक्रीनामा नहीं बना है।

दावा : 2019 में जमीन का दाम 2 करोड़ रुपए था, लेकिन 2021 में यह 18 करोड़ हो गया, यह घोटाला ही है क्योंकि जमीन का दाम दो सालों में इतना नहीं बढ़ सकता है।

सच्चाई : 09 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में हिंदुओं के पक्ष में फैसला आया और अयोध्या में 67 एकड़ की विवादित भूमि को हिंदुओं को दे दिया गया। इसके बाद राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया और इस कार्य के लिए ट्रस्ट का गठन भी किया गया। इसके बाद ही पूरे अयोध्या में जमीन के दाम बढ़ने शुरू हो गए थे। दिसंबर 2019 में ही फोर्ब्स ने अयोध्या में जमीन के दामों में हुई बढ़ोत्तरी के संबंध में रिपोर्ट जारी की थी जिसमें किसी प्रॉपर्टी डीलर के हवाले से कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जमीन के दाम लगभग 6 गुणा तक बढ़ गए हैं। रिपोर्ट में प्रॉपर्टी डीलर ने बताया कि प्रस्तावित राम मंदिर के 4 किमी के दायरे में ही जमीनों के दाम तिगुने हो चुके हैं। जो जमीन 400 रुपए वर्ग फुट बिकती थी वह अब 1200 रुपए वर्ग फुट बिकने लगी थी।

यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण के समय सर्किल रेट पर 4 गुणा दाम दिया जाता है। AAP के द्वारा दिए गए दस्तावेजों में जमीन का सर्किल रेट 5.79 करोड़ रुपए है। अतः सरकार के द्वारा तय रेट के हिसाब से इस जमीन का मूल्य लगभग 23 करोड़ रुपए होता है लेकिन मंदिर ट्रस्ट ने 3 गुणा कीमत पर ही जमीन का सौदा किया है जो बाजार दर से भी कम है।

दावा : ट्रस्ट ने इतनी जल्दबाजी क्यों की? क्यों ट्रस्ट ने अंसारी एवं अन्य को इतना लाभ कमाने दिया?

सच्चाई : यह सभी जानते हैं कि लगभग 500 वर्षों की लड़ाई के बाद अयोध्या में हिंदुओं के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान पर मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ। इसलिए यह जाहिर है कि कोई भी दोबारा इस मुद्दे पर विवाद नहीं चाहता है।

17 सितंबर 2019 को बिक्री समझौता हुआ और मंदिर ट्रस्ट और अंसारी के बीच बिक्री 18 मार्च 2021 को हुई। इस समय अंतराल में अंसारी के पिता ने जमीन पर अपना दावा ठोक दिया। इसलिए मंदिर ट्रस्ट जमीन की खरीदी के बारे में पूरी पारदर्शिता चाहता था और उसका यही उद्देश्य था कि किसी भी प्रकार का कोई विवाद शेष न रह जाए।

अब यहाँ समझना चाहिए कि मंदिर ट्रस्ट जल्दबाजी में क्यों था, क्योंकि अभी ही इतने सालों से चले आ रहे मामले का निपटारा हुआ था और जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए ट्रस्ट फिर से मुकदमे में नहीं उलझना चाहता था। 

दावा : ट्रस्ट अंसारी एवं अन्य के स्थान पर सस्ते दाम पर सीधे ही कुसुम से जमीन खरीद सकता था।

सच्चाई : ट्रस्ट कुसुम से सीधे ही जमीन खरीद सकता था जब कुसुम और ट्रस्ट के बीच समझौता हुआ होता लेकिन कुसुम ने एग्रीमेंट के तहत पहले ही अंसारी से 50 लाख रुपए एडवांस के तहत ले रखे थे। अब यदि कुसुम अंसारी से किए गए अपने एग्रीमेंट से पीछे हटने का निर्णय करती तो उसे एक न्यायिक प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता और साथ ही वर्तमान बाजार मूल्य पर अंसारी को मुआवजा भी देना पड़ता। चूँकि कुसुम न्यायिक तौर पर अंसारी को 2 करोड़ रुपए में जमीन बेचने के लिए बाध्य थी इसलिए ट्रस्ट के लिए यह संभव नहीं था।

यदि इसके बाद भी ट्रस्ट कुसुम से जमीन खरीदने की कोशिश करता तो यह एक विवाद का मामला बन जाता जो ट्रस्ट नहीं चाहता था।

वैसे भी किसी भी कीमत पर कुसुम अपनी जमीन को ट्रस्ट को 2 करोड़ रुपए में नहीं बेच सकती थी क्योंकि जमीन का सर्किल रेट 5.79 करोड़ रुपए है और इससे कम में सौदा किया जाना स्टाम्प ड्यूटी का उल्लंघन ही कहलाएगा।

अब भले ही कुछ पत्रकार और AAP नेता इस मामले में घोटाले की बात करें लेकिन वास्तविकता यह है कि इस पूरे सौदे के दौरान पारदर्शिता बरती गई और जो प्रक्रिया अपनाई गई वह पूरे नियम कानूनों के हिसाब से ही थी। इस सौदे से जुड़े पूरे दस्तावेज उत्तर प्रदेश सरकार के पास उपलब्ध हैं जिन्हें कोई भी चेक कर सकता है। लगभग 500 सालों बाद आज जब हिन्दू अपने आराध्य भगवान राम के भव्य मंदिर को बनता हुआ देख पा रहे हैं तब AAP और सपा जैसी पार्टियों के नेता घोटाले का आरोप लगाकर राम मंदिर निर्माण में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

नोट: इंग्लिश में मूल रिपोर्ट इस लिंक पर पढ़ी जा सकती है।

(वकील अभिषेक द्विवेदी द्वारा प्राप्त इनपुट के साथ )

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