पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया आपसी संवाद और जानकारी का एक बेहतरीन जरिया बनकर उभरा है। लेकिन हर चीज के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में हम आपा-धापी में हर ‘वायरल’ हो रही खबर, पोस्ट, तस्वीर को सच भी मान लेते हैं। राजनीतिक दल जनता की इस नादानी को अच्छी तरह से समझते हैं और अपने मीडिया गिरोह और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के माध्यम से लोगों में अफवाह फैलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं।
इसी प्रकार की एक खबर आजकल फेसबुक से लेकर ट्विटर पर चर्चा का विषय बन चुकी है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों और बड़े पेजों द्वारा एक पोस्ट वायरल किया जा रहा है जिसमें लिखा है, “मतदान के बाद जो स्याही लगाई जाती है, उसमें सूअर का खून मिलाया जाता है। यह बात सही है क्या?”
यह पोस्ट उस दिन चर्चा में आया है जब से कुछ मुस्लिम संगठनों ने रमजान के दिन पड़ने वाली तारीखों पर चुनाव आयोग से आपत्ति जतानी शुरू की और रमजान के दिन पड़ने वाली तारीखों को बदलने की माँग की है। पिछले 4-5 वर्षों में देखने को मिला है कि विपक्षी पार्टियों ने अपने स्वार्थ के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं पर आरोप लगा कर लोगों को उकसाने और अफवाह फैलाने का काम किया है।
“पाक-ए-रमजान के महीने वोट देना हराम है?”
मतदान में इस्तेमाल होने वाली स्याही की भ्रामक और झूठी खबर के साथ ही कुछ अकाउंट्स यह खबर भी फैला रहे हैं कि भाजपा ने जान-बुझकर इसी समय चुनाव रखा ताकि कुछ लोग रमजान के दिन वोट देकर पाप करें। ट्वीट में लिखा है, “फतवा: पाक-ए-रमजान के महीने वोट देना हराम है। भाइयों 5 मई से 4 जून तक हमारा रमजान का महीना है। और इसी बीच 3 दिन चुनाव भी हैं। भाजपा ने जान-बूझकर इसी समय चुनाव रखा, ताकि हम वोट देकर पाप करें। मगर हम भी क़ुरान के ज्ञानी हैं। इनकी बातो में नही आएँगे। हम अल्लाह और EVM में से अल्लाह चुनेंगे।”
लेकिन सवाल यह है कि ऐसा दावा करने वाले लोग वही हैं, जो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते वक़्त दावा कर रहे थे कि मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए भाजपा द्वारा लाए गए तीन तलाक अध्यादेश से गुस्साए एक मजहबी आदमी ने अगर भाजपा के विरोध में वोट दिया होगा तो उसकी 4 पत्नियों ने भाजपा को वोट दे दिया होगा, जिस कारण भाजपा जीत गई। ऐसे में विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों द्वारा भाजपा पर रमजान के दिन जान-बूझकर मतदान करवाने का आरोप हास्यास्पद ही नजर आता है।
फतवा?: पाक ए रमजान के महीने वोट देना हराम है
— मौलाना फैजल हयात बुखारी(फैजू मियाँ) ~ फतवा वाले (@faizu_miya) March 14, 2019
भाइयो ५ मई से ४ जून तक हमारा रमजान का महीना है। और इसी बीच ३ दिन चुनाव भी है
भाजपा ने जान बूचकर इसी समय चुनाव रखा ताकि हम वोट देकर पाप करे। मगर हम भी क़ुरान के ज्ञानी है। इनकी बातो में नही आएंगे।
हम अल्लाह और EVM में से अल्लाह चुनेंगे pic.twitter.com/kOiYcxnVsR
हालाँकि, इस अपील को करने वाले ‘मौलाना फैजल हयात बुखारी (फैजू मियाँ) ~ फतवा वाले’ (@faizu_miya) नाम के इस एकाउंट की वास्तविकता संदेह का विषय है, और सरसरी तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह कटाक्ष है। लेकिन, हर सोशल मीडिया यूजर इतना समझदार नहीं होता कि सही और गलत एकाउंट्स में फर्क कर सके। शुरुआत मजाक से होती है, लेकिन कुछ लोग जो वैमनस्यता फैलाना चाहते हैं, या किसी पार्टी के खिलाफ बातें फैलाना चाहते हैं, वो तो ‘टाइप किया हुआ है, गलत थोड़े ही होगा’ मानने वाले लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। यही हो भी रहा है, जिस सूचना को यह एकाउंट वायरल कर रहा है उसका इस्तेमाल कर, कई लोग अल्पसंख्यकों में सन्देश फैला रहे हैं कि रमजान के दिन वोट करना हराम है।
सूअर का खून नहीं बल्कि सिल्वर नाइट्रेट होता है स्याही में इस्तेमाल
आम चुनाव के दौरान मतदान करते समय मतदाताओं की उंगली पर एक खास तरह की स्याही लगाई जाती है। इस स्याही का प्रयोग फर्जी मतदान को रोकने के लिए किया जाता है। मतदान में इस्तेमाल होने वाली स्याही के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि भारत में सिर्फ 2 कंपनियाँ हैं जो वोटर के लिए ये स्याही बनाती हैं- हैदराबाद का रायडू लैब्स और मैसूर का मैसूर पेंट्स ऐंड वॉर्निश लिमिटेड। यही दोनों कंपनियाँ पूरे देश को वोटिंग के लिए इंक सप्लाय करती हैं। यहाँ तक कि इनकी इंक विदेशों में भी जाती है।
इन कंपनियों के परिसर में स्याही बनाते वक्त स्टाफ और अधिकारियों को छोड़कर किसी को भी जाने की इजाजत नहीं होती है। वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली इंक में सिल्वर नाइट्रेट होता है जो अल्ट्रावॉइलट लाइट पड़ने पर स्किन पर ऐसा निशान छोड़ता है, जो मिटता नहीं है। उंगली पर लगने के बाद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा से निकलने वाले पसीने में मौजूद सोडियम क्लोराइड (नमक) से क्रिया करके सिल्वर क्लोराइड बनाता है। धूप के संपर्क में आने पर यह सिल्वर क्लोराइड टूटकर धात्विक सिल्वर में बदल जाता है। धात्विक सिल्वर पानी या वाॅर्निश में घुलनशील नहीं होता, इसलिए इसे उंगली से आसानी से साफ नहीं किया जा सकता। ये दोनों कंपनियाँ 25,000-30,000 बोतलें हर दिन बनाती हैं और इन्हें 10 बोतलों के पैक में रखा जाता है। इनकी एक्सपायरी 90 दिन के बाद होती है और निशान एक हफ्ते तक बना रहता है।
मैसूर के राजा ने बनवाया था इस स्याही को
चुनाव के दौरान फर्जी मतदान रोकने में कारगर हथियार के रूप में प्रयुक्त हाथ की उंगली के नाखून पर लगाई जाने वाली स्याही सबसे पहले मैसूर के महाराजा नालवाड़ी कृष्णराज वाडियार द्वारा वर्ष 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनावाई गई थी। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड (Mysore Lac & Paint Works) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बन गई। अब इस कंपनी को मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक सरकार की यह कंपनी अब भी देश में होने वाले प्रत्येक चुनाव के लिए स्याही बनाने का काम करती है और इसका निर्यात भी करती है।
1962 में तीसरे आम चुनाव में पहली बार हुआ था स्याही का प्रयोग
चुनाव के दौरान मतदाताओं को लगाई जाने वाली स्याही निर्माण के लिए इस कंपनी का चयन वर्ष 1962 में किया गया था और पहली बार इसका इस्तेमाल देश के तीसरे आम चुनाव में किया गया था। इस स्याही को बनाने की निर्माण प्रक्रिया गोपनीय रखी जाती है और इसे नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी आफ इंडिया के रासायनिक फॉर्मूले का इस्तेमाल कर के तैयार किया जाता है। यह आम स्याही की तरह नहीं होती और उंगली पर लगने के 60 सेकंड के भीतर ही सूख जाती है।
हालाँकि, ये कोई फैक्ट चेक नहीं है। ये स्वघोषित फैक्ट चेकर साइटों पर एक कटाक्ष है जो खुद ही पोस्ट लिखते हैं, खुद ही शेयर करते हैं, और 7 शेयर होने वाली खबर को वायरल कहकर फैक्ट चेक के नाम पर आर्टिकल लिखते रहते हैं। ये वैसे ही प्रोपेगंडा पोर्टल ऑल्ट न्यूज़ की बकवास ‘फैक्ट चेकिंग तकनीक’ की प्रक्रिया का मजाक है, लेकिन इसमें इस्तेमाल हुई हर सूचना, हर सोशल मीडिया हैंडल के पोस्ट और स्क्रीनशॉट वास्तविक हैं। फैक्ट चेकिंग को इस तरह के निम्न स्तर पर लाने वाले ऑल्ट न्यूज़ से आग्रह है कि हमारे फीचर्ड इमेज का फैक्ट चेक करे, वहाँ दुकान चलाने लायक अच्छी जानकारी मिल सकती है।