भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष और यूपी के कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह (BJP MP Brij Bhushan Sharan Singh) की गिरफ्तारी की माँग को लेकर पहलवानों के साथ-साथ खाप पंचायतें (Khap Panchayat Leaders) और किसान संगठन भी सामने आए हैं। खाप नेता सरकार को लगातार धमकी दे रहे हैं।
पहलवानों ने भाजपा सांसद पर दो प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई है। इनमें से एक में नाबालिग के साथ यौन दुर्व्यवहार के आरोप में पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। कॉन्ग्रेस सहित विपक्षी दल और खाप पंचायतें एवं पहलवानों बार-बार कह रहे हैं कि पॉक्सो में मुकदमा दर्ज होने के बाद बृजभूषण शरण सिंह की तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए। इसके लिए वे धरना-प्रदर्शन से लेकर अपने मेडल नदी में बहाने सहित तरह-तरह से दबाव बना रहे हैं।
किसान नेता राकेश टिकैत ने तो शुक्रवार (2 जून 2023) को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में खाप की बैठक के बाद ऐलान किया, “केंद्र सरकार के पास 9 जून तक का समय है। हम बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी से कम पर कोई समझौता नहीं करेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो हम 9 जून को जंतर-मंतर जाएँगे और देश भर में पंचायत करेंगे। पहलवानों पर लगे मुकदमें वापस हों और बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी हो।”
इन सबके साथ कॉन्ग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट के दिग्गज वकील कपिल सिब्बल ने भी कह दिया था कि पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज होने और 164 के तहत बयान दर्ज होने के बाद तत्काल गिरफ्तारी बृजभूषण सिंह के अलावा, सभी आरोपितों को लागू होती है, क्योंकि वे भाजपा से ताल्लुक रखते हैं। सिब्बल के इन आरोपों के बाद POCSO ऐक्ट के कानूनी पहलुओं को समझने का प्रयास करते हैं।
क्या है यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act)?
POCSO अधिनियम भारत सरकार द्वारा बनाया गया कानून है, जिसमें नाबालिगों बच्चों (लड़का और लड़की दोनों) के खिलाफ यौन अपराध होने पर आरोपितों के इसके तहत मुकदमा चलाया जाता है। इस कानून का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न, चाइल्ड पोर्नोग्राफी से बचाने का प्रयास है। इसमें बाल यौन शोषण के वर्गीकरण के साथ-साथ आरोपितों के लिए कठोर सजा का प्रावधान है।
POCSO कानून के तहत नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ अश्लील हरकत करना, उनके निजी अंगों को छूना, उनसे अपने निजी अंग टच करवाना, बच्चों को अश्लील फिल्में दिखाना, डिजिटल रेप, उनके शरीर को गलत इरादे से छूना आदि को शामिल किया जाता है और आरोपितों को POCSO की धाराएँ लगाई जाती हैं।
इसके तहत होने वाले अपराध को दो वर्गों में विभाजित किया गया है। पहला, 12 साल या उससे कम उम्र की बच्चों के साथ यौन अपराध और दूसरा 12 साल से कम के बच्चों के साथ होने वाला यौन अपराध। दोनों स्थितियों में सजा के अलग-अलग प्रावधान हैं।
POCSO कानून के तहत सजा का प्रावधान
POCSO में दो तरह की सजा का प्रावधान है। अगर यौन अपराध 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ होता है तो इसमें आरोपितों को सजा के रूप में आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक दी जा सकती है। वहीं, नाबालिग की उम्र अगर 12 वर्ष से अधिक और 16 वर्ष या उससे कम है तो सजा के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम 20 वर्ष की कड़ी कैद का प्रावधान है।
POCSO एक्ट के तहत पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के नियम
यौन अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए आमतौर पर इसमें FIR दर्ज होते ही आरोपित/आरोपितों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। गिरफ्तारी के साथ ही पुलिस अपनी जाँच भी आगे जारी रखती है। चार्जशीट फाइल होने तक इसमें आरोपित को जमानत नहीं मिलती है।
अधिवक्ता आनंद विजय का कहना है कि POCSO अधिनियम में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि FIR दर्ज होते ही आरोपित को गिरफ्तार करना अनिवार्य है। यह पुलिस का विशेषाधिकार है कि वह जाँच में अगर किसी तरह का अवरोध आरोपित की ओर से नहीं पाती है तो उसे तत्काल नहीं भी गिरफ्तार करेगी।
संज्ञेय अपराध होने के बावजूद बृजभूषण सिंह की क्यों नहीं हो रही गिरफ्तारी?
हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे गंभीर मामलों में पुलिस आमतौर पर FIR दर्ज होते ही आरोपित को गिरफ्तार कर लेती है। अगर पुलिस को लगता है कि आरोपित अगर बाहर रहता है तो वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है, गवाहों को धमका सकता है, देश छोड़कर भाग सकता है, अन्य किसी तरह का अपराध कर सकता है या फिर जाँच को प्रभावित कर सकता है तो वह आरोपित को गिरफ्तार करती है।
अगर पुलिस को लगता है कि आरोपित ऊपर बताए गए मामलों में से किसी भी तरह का हस्तक्षेप या मामले को प्रभावित नहीं करेगा तो वह उसे गिरफ्तार नहीं भी कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति सम्मानित है या संवैधानिक पद है तो पुलिस आमतौर पर आरोपित को गिरफ्तारी करने से पहले शिकायत की गंभीरता से जाँच करती है और उसकी सत्यता के आधार पर ही आरोपित को गिरफ्तार करने या नहीं करने के आगे का फैसला लेती है।
एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था, “अगर जाँच अधिकारी के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि अभियुक्त फरार हो जाएगा या समन की अवहेलना करेगा और वास्तव में उसने जाँच में सहयोग किया है तो हम आरोपित को गिरफ्तार करने की अधिकारी पर एक मजबूरी की सराहना करने में विफल हैं।”
सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि संज्ञेय अपराध में भी गिरफ्तारी तब तक अनिवार्य नहीं है, जब तक कि केस के जाँच अधिकारी को ऐसा नहीं लगता हो। इसलिए दिल्ली पुलिस के जाँच अधिकारी को बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी जरूरी नहीं लग रही है।
बताते चलें कि बुधवार (31 मई 2023) को यह बात सामने आई थी कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जाँच में अभी तक दिल्ली पुलिस को कुछ भी सबूत नहीं मिला है, जिनके आधार पर उन्हें गिरफ़्तार किया जा सके। दिल्ली पुलिस के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से यह खबर सामने आई थी। हालाँकि, पहलवानों के दबाव और मीडिया में बहसबाजी को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने बाद में कहा कि जाँच अभी जारी है।
क्या सांसद होने की वजह से बच रहे हैं WFI चीफ?
सांसद विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। इसलिए प्रोटोकॉल के अनुसार, संसद परिसर के भीतर अध्यक्ष या सभापति की अनुमति के बिना किसी आरोपित सांसद को दीवानी या आपराधिक मामले में ना ही कानूनी समन दिया जा सकता है और ना ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके लिए अध्यक्ष या सभापति की अनुमति जरूरी है। इसके अलावा, सत्र के शुरू होने से 40 दिन पहले और खत्म होने के 40 बाद भी उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है
आमतौर पर यह स्थिति संसद सत्र के दौरान होती है, जब उसमें भाग लेने के लिए सांसद परिसर में होते हैं। अगर कोई भी सांसद बाहर होता है तो अध्यक्ष या सभापति को सूचित करके गिरफ्तार करने का प्रावधान नहीं है। हालाँकि, भ्रष्टाचार के मामले में ऐसा नहीं है। भ्रष्टाचार के मामलों में सांसदों पर मुकदमा चलाने से पहले लोकसभा स्पीकर अथवा राज्यसभा के चेयरमैन से अनुमति लेनी पड़ती है।
बृजभूषण शरण सिंह के मामले में ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ किस पर?
इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 के सेक्शन 101 में ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ का जिक्र है। आमतौर पर मुकदमा दायर करने वाले पर अपराध को साबित करने की जिम्मेदारी होती है। हालाँकि, पॉक्सो एक्ट में इसके उल्टा है। इसमें जिस पर मुकदमा दायर होता है, उस पर खुद को बेगुनाह साबित करने की जिम्मेदारी होती है।
वहीं, ड्रग्स तस्करी से जुड़े NDPS एक्ट और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े PMLA एक्ट में भी जब सरकारी एजेंसी केस दर्ज करती है तो आरोपित को साबित करना होता है कि वह निर्दोष है। अन्य मामलों में आरोप लगाने वाले को सबूत देना होता है कि आरोपित ने ही अपराध किया है।
इसलिए POCSO एक्ट के तहत एक मामले में बृजभूषण शरण सिंह को साबित करना होगा कि वे निर्दोष हैं, जबकि दूसरे FIR में आरोप लगाने वाली पहलवानों को साबित करना होगा कि बृजभूषण शरण सिंह दोषी हैं।
अगर ऊपर के मामलों को ध्यान से देखें तो यह स्पष्ट है कि POCSO के तहत मुकदमा दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी जरूरी नहीं है और ना ही सांसद होने की वजह से इसका बृजभूषण शरण सिंह को फायदा मिल रहा है। विपक्षी दलों, खाप पंचायतों, पहलवानों आदि द्वारा भाजपा सांसद की तुरंत गिरफ्तारी की माँग दरअसल दबाव की राजनीति के साथ-साथ भारतीय कुश्ती संघ में होने वाले अध्यक्ष पद से भी जुड़ा है।
क्यों चाहते हैं पहलवान बृजभूषण शरण की तुरंत गिरफ्तारी?
बृजभूषण शरण सिंह साल 2011 से ही भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। इस तरह वे इस पद पर तीन बार रह चुके हैं और उन्होंने भारतीय कुश्ती संघ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी है, जिसकी तारीफ खुद आरोप लगाने वाले पहलवान भी करते आए हैं। बृजभूषण सिंह पहलवानों को समर्थन दे रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंदर हुड्डा को भी एक अध्यक्ष पद के चुनाव में हरा चुका हैं।
नियमों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति कुश्ती संघ का सिर्फ तीन बार अध्यक्ष रह सकता है। इस तरह यह चार साल के तीन कार्यकाल बृजभूषण शरण सिंह पूरे कर चुके हैं। हालाँकि, महासंघ में उनके दबदबे से इनकार नहीं किया जा सकता। आरोप लगाने वाले पहलवान भी कह चुके हैं कि बृजभूषण सिंह अगर अध्यक्ष नहीं रहेंगे तो उनका ही कोई सहयोगी रहेगा।
दरअसल, पहलवान जानते हैं कि अगर बृजभूषण शरण सिंह बाहर रहते हैं तो दीपेंद्र हुड्डा या उनके किसी चहेते को फिर अध्यक्ष पद नहीं मिल सकता है। इसलिए जाँच जारी रहने के बावजूद पहलवान बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी किसी कीमत पर चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव होने से पहले बृजभूषण शरण सिंह जेल चले जाएँ, ताकि इस चुनाव में उनका प्रभाव ना रहे।
मंत्रालय ने 13 मई 2023 को कहा था कि अगले 45 दिनों में अध्यक्ष पद का चुनाव होगा। इस तरह जून के अंत में यह चुनाव होने हैं। अध्यक्ष पद का चुनाव होने तक यह दबाव जारी रहने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि अगर कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव आज हो जाए तो कल से पहलवानों का धरना खत्म हो जाएगा, क्योंकि इसके लिए उनका कोई मकसद नहीं बचेगा।
बताते चलें कि जनवरी में पहलवानों के आरोपों के बाद खेल मंत्रालय ने बृजभूषण सिंह के हाथ से महासंघ की कमान लेकर एक समिति को सौंप दिया था। इसके साथ ही समिति ने जाँच करके भारतीय ओलंपिक संघ (IOC) को रिपोर्ट भी सौंप दी। इस दौरान पहलवानों की ओर से किसी तरह की कोई हलचल नहीं हुई।
16 अप्रैल 2023 को बृजभूषण सिंह ने कुश्ती महासंघ में नई भूमिका निभाने की ओर इशारा किया था। उन्होंने कहा था कि कई लोग हैं जो अब उनसे आँख नहीं मिला पाएँगे। अगर वे खेलना चाहते हैं तो प्रक्रिया सभी के लिए समान होगी। कुश्ती संघ किसी भी पहलवान को ओलंपिक ट्रायल से छूट नहीं देगा, चाहें उसने ओलंपिक कोटा ही क्यों नहीं जीता हो। इसके ठीक एक सप्ताह बाद यानी 23 अप्रैल को धरने पर बैठ गए।
पहलवानों की लगातार बदलती रहीं माँगें
बृजभूषण सिंह पर आरोप लगाते हुए पहलवानों ने जनवरी में भी धरना दिया था। इस दौरान खेल मंत्री मंत्रालय ने उनसे कई राउंड बातचीत की थी। उस दौरान पहलवानों ने भारतीय ओलंपिक संघ को पत्र लिखा बृजभूषण शरण सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने समेत चार मुख्य माँगें रखी थीं। ये थीं-
1- यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जाँच के लिए कमेटी गठित की जाए।
2- WFI के अध्यक्ष से इस्तीफा लिया जाए।
3- WFI को भंग किया जाए।
4- कुश्ती महासंघ को चलाने के लिए पहलवानों की देख-रेख में एक नई कमेटी बनाई जाए।
महिला पहलवानों ने तब तक भाजपा सांसद के खिलाफ FIR कराने की कोशिश नहीं की थी। इसको लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया जा रहा था कि जिनका यौन शोषण होता है, वे पहले पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज कराते हैं और फिर कार्रवाई नहीं होने पर प्रदर्शन करते हैं। हालाँकि, पहलवान बिना शिकायत दर्ज कराए ही धरने पर बैठकर अपनी माँगें मनवा रहे थे।
इन माँगों में लगभग तीन माँगें मान ली गई थीं। केंद्रीय खेल मंत्री ने पीटी ऊषा के नेतृत्व में एक जाँच कमिटी गठित थी। इसके साथ ही कुश्ती संग के काम को तत्काल देखने के लिए पहलवानों की सहभागिता वाली कमिटी भी बनाई। इस दौरान बृजभूषण शरण सिंह को कुश्ती संघ के काम से अलग रखा गया। हालाँकि, WFI चीफ ने अपने पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था।
कमिटी की रिपोर्ट में पहलवानों को जैसे ही पता चला की बृजभूषण सिंह के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं तो उन्होंने दोबारा बवाल शुरू कर दिया। उन्होंने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि यौन शोषण की शिकायत करने के लिए वे दिल्ली पुलिस के पास गई थीं, लेकिन पुलिस ने शिकायत दर्ज नहीं की। इस मामले को लेकर पहलवान सुप्रीम कोर्ट में गए।
PT ऊषा से बदतमीजी, देश के खिलाफ नारे, मोदी तेरी कब्र खुदेगी
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दिल्ली पुलिस ने दो FIR दर्ज की। इसके बाद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों द्वारा FIR दर्ज करने की माँग को दिल्ली पुलिस ने माँग ली तो पहलवान विनेश फोगाट ने कहा था कि उन लोगों को दिल्ली पुलिस पर भरोसा नहीं है। फोगाट ने कहा, “हमारी माँग है कि उन्हें (WFI अध्यक्ष) जेल में डाला जाए। उन्हें हर एक पद से हटाया जाए। सांसद पद से भी इस्तीफा दें।”
वहीं, प्रदर्शन कर रहे बजरंग पूनिया ने कहा, “उनको (बृजभूषण सिंह को) तुरंत जेल मे डाला जाना चाहिए। हम पुलिस की FIR का इंतजार कर रहे हैं कि किन धाराओं में केस दर्ज होता है। हमारा फोन केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने नहीं उठाया।”
पहलवान साक्षी मलिक के साफ लग रहा है कि पहलवान दिल्ली पुलिस को सहयोग नहीं करेंगे और ना ही इस मामले में अपना बयान दर्ज कराएँगे। साक्षी ने कहा, “हम अपना बयान सुप्रीम कोर्ट में दर्ज कराएँगे। उनको (बृजभूषण शरण सिंह) को जेल में डालने और सभी पदों से हटाने के बाद ही हमारा प्रदर्शन खत्म होगा।”
बाद में भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी ऊषा ने कहा था कि पहलवान धरना देकर भारत की छवि को धूमिल कर रहे हैं। उन्होंने पहलवानों की आलोचना करते हुए इसे अनुशासनहीनता बताया था। IOC ने पहलवानों को एथलीट कमीशन में आने के लिए कहा।
इस पर पहलवान साक्षी मलिक ने पीटी उषा पर ही सवाल दाग दिया। साक्षी मलिक ने गुरुवार (27 अप्रैल 2023) को कहा, “मैं पीटी उषा का सम्मान करती हूँ। उन्होंने हमें प्रेरित किया है, लेकिन मैं मैम से पूछना चाहती हूँ कि महिला पहलवानों ने आगे आकर उत्पीड़न का मुद्दा उठाया है। क्या अब हम विरोध भी नहीं कर सकते?
इसके बाद पीटी ऊषा जब जंतर मंतर पर उनसे मिलने गईं तो पहलवानों के समर्थकों ने उनसे बदतमीजी, धक्का-मुक्की की। कुछ-कुछ रिपोर्ट में तो यहाँ तक कहा कि पहलवानों की एक समर्थक महिला ने उन पर थप्पड़ चला दिया। इसके बाद पीटी ऊषा की डबडबाई आँखों वाली तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं।
इसके बाद पहलवान जंतर मंतर पर कभी विपक्षी नेताओं को बुलाते तो कभी खाप पंचायतों को तो कभी देशद्रोही तत्वों को। जंतर मंतर पर ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी, हमें चाहिए आजादी’ जैसे नारे लगाए गए। खाप पंचायतों ने दिल्ली को टैक्टरों से पाट देने की धमकी दी। केंद्र को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। इस तरह ये तरह-तरह सरकार पर अपना दबाव बनाते आ रहे हैं। पहलवानों ने यहाँ तक कह दिया था कि उनके लिए खाप का आदेश सबसे पहले है।