90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर हुआ हत्याचार एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे चाहकर भी भुला पाना असंभव है। रातों-रात खुद को बचाने के लिए कश्मीर में अपना घर, संपत्ति छोड़कर भागे लोगों के मन में आज भी उस रात की टीस बाकी है, जब उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी का शिकार होते अपनी आँखों के सामने बर्बरता से अपने लोगों को जिंदा जलते-मरते देखा और जिन्हें इंसाफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते 30 साल हो गए।
बीते साल 14 नवंबर 2019 को ऐसी ही अनगिनत कहानियों को अपने दिल में समेट कर भारतीय स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ टॉम लैंटॉस एचआर द्वारा आयोजित यूएस कॉन्ग्रेस की बैठक के लिए वॉशिंगटन डीसी पहुँचीं थीं। हालाँकि वहाँ जाने से पहले ही उन्होंने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दे दी थी कि आयोजन में वह सिर्फ़ कश्मीर से जुड़ी उन कहानियों के बारे में बात करने वाली हैं, जिन्हें लोगों ने कभी नहीं सुना होगा या फिर जिन्हें बताने से हमेशा बचा गया। लेकिन जब उन्होंने वहाँ बोलना शुरू किया और कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की आवाज बनीं… तो मानो जैसे सब सिहर गए।
On my way to Washington DC for Congressional hearing on Human Rights organized by Tom Lantos HR Commission. Armed with nothing but truth, I hope to tell the stories that have hitherto been unheard or have been deliberately not told. Satyameva Jayate. https://t.co/hdg16p7gJC
— Sunanda Vashisht (@sunandavashisht) November 14, 2019
बतौर कश्मीर के हालातों की चश्मदीद, उन्होंने आयोजन में बोलना प्रारंभ किया। इस दौरान घाटी में पसरे इस्लामिक कट्टरपंथ के कारण उन्होंने कश्मीर की तुलना सीरिया से की। उन्होंने 30 साल पहले का समय याद करते हुए कहा कि उन लोगों ने ISIS के स्तर की दहशत और बर्बता कश्मीर में झेली है। इसलिए उन्हें खुशी है कि आज इस तरह मानवाधिकारों की बैठक यहाँ हो रही हैं, क्योंकि जब मेरे जैसों ने अपने घर और अपनी जिंदगी सब गँवा दी थी, तब पूरा विश्व शांत था।
अपना गुस्सा जाहिर करते हुए सुनंदा वशिष्ठ ने लोगों से पूछा कि आखिर तब मानवाधिकार के वकील कहाँ थे, जब हमारे अधिकार हमसे छीने गए।
“कहाँ थे वो लोग जब 19 जनवरी 1990 की रात घाटी के हर मस्जिद से एक ही आवाज आ रही थी कि हमें कश्मीर में हिंदू औरतें चाहिए, लेकिन बिना किसी हिंदू मर्द के।”
उस रात की पीड़ा को जाहिर करते हुए सुनंदा ने आगे पूछा, “इंसानियत के रखवाले उस समय कहाँ थे जब मेरे दादाजी रसोई की चाकू और जंग लगी कुल्हाड़ी लेकर हमें मारने के लिए हमारे सामने केवल इसलिए खड़े थे, ताकि वो हमें उस बर्बरता से बचा सकें, जो जिंदा रहने पर हमारा आगे इंतजार कर रही थी।”
बैठक में उन्होंने बताया था कि उनके लोगों को आतंकियों ने उस रात केवल 3 विकल्प दिए थे। या तो वे कश्मीर छोड़कर भाग जाएँ, या फिर धर्मांतरण कर लें या फिर उसी रात मर जाएँ। सुनंदा वशिष्ठ के अनुसार उस रात करीब 4 लाख कश्मीरी हिंदुओं ने दहशत में आकर अपनी घर- संपत्ति सब जस का तस छोड़ दिया और खुद को बचाने के लिए वहाँ से भाग निकले।
उनके मुताबिक, आज 30 साल बाद भी वह कश्मीर स्थित उनके घर नहीं जा पाती। क्योंकि वहाँ उनका स्वागत ही नहीं होता। उन्हें आज भी वहाँ अपनी आस्था मानने की आजादी नहीं है। उनके घर को दूसरे समुदाय के लोगों ने घेर लिया है और घरों पर सिर्फ कब्जा नहीं हुआ बल्कि उन्हें जलाया जा चुका है।
कश्मीर पर बात करते हुए उन्होंने उस अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल को भी याद किया, जिसका मजहब इस्लाम न होने के कारण ISIS ने उसका सिर कलम कर दिया था, लेकिन फिर भी उसके आखिरी शब्द थे- “मेरे पिता एक यहूदी थे, मेरी माता एक यहूदी थी और मैं भी एक यहूदी ही हूँ।”
इस दौरान अपनी तुलना डेनियल पर्ल से करते हुए सुनंदा ने उनके आखिरी शब्दों को अपनी स्थिति बयान करने के लिए इस्तेमाल किया और कहा, “मेरे पिता एक कश्मीरी हैं, मेरी माता कश्मीरी हिंदू हैं और मैं भी एक कश्मीरी हिंदू ही हूँ। ”
इस बैठक में आपबीती सुनाते हुए भारतीय स्तंभकार ने दावा किया कि कश्मीर में उनका और उनके लोगों का पूरा जीवन कट्टरपंथ इस्लाम के कारण बर्बाद कर दिया गया। वे इस दौरान गिरिजा टिक्कू जैसी औरतों का भी जिक्र करती नजर आईं, जिनका अपहरण करके क्रूरता के साथ मार दिया। जिनके साथ सामूहिक बलात्कार हुए और जिन्हें टुकड़ों में काटकर फेंक दिया गया। उन्होंने बीके गंजू जैसे लोगों के बारे में भी बात की। जिन्हें अपने पड़ोसियों पर विश्वास करने के बदले सिर्फ़ विश्वासघात मिला। जिन्हें कंटेनर में ही गोली मार दी गई और उनकी पत्नी को खून से सने चावल (वो भी पति के ही खून से सने) खाने को मजबूर किया गया।
बता दें कि सुनंदा द्वारा यूएस कॉन्ग्रेस की बैठक में कही गई इन बातों के लिए उन्हें खूब सराहा गया था। स्वयं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उनके वीडियो को शेयर कर उन्हें शाबाशी दी थी। उन्होंने लिखा था कि ये वो आवाज है, जो सुनी जानी चाहिए।
Well done @sunandavashisht. The voice of those who need to be heard. Human rights can not be limited in its coverage. #Article370 #KashmirInUSCongress https://t.co/FPPbIQsDfE
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) November 15, 2019