देश में कश्मीरी पंडितों को लेकर एक बार फिर नई बहस छिड़ गई है। लिबरल गिरोह इसे ‘मुट्ठी भर आतंकियों’ की करतूत बता कर समुदाय विशेष को बचाने का प्रयास कर रहा है। जबकि सच्चाई ये है कि कश्मीरी पंडितों को समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों ने घाटी से निकाल बाहर किया। उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, कइयों को बेरहमी से काट डाला गया और कइयों को तो शरण देने के नाम पर धोखा दिया गया। आज कश्मीरी पंडितों को ही उल्टा कट्टरपंथियों से सॉरी बोलने को कहा जा रहा है। सवाल ये है कि अपना सबकुछ लुटा कर पिछले 30 वर्ष से अपने ही देश में शरणार्थी बन कर रह रहे कश्मीरी पंडित कट्टरपंथियों से सॉरी क्यों बोलें?
इसी क्रम में आकाश नामक ट्विटर यूजर ने एक घटना के बारे में बताया। ये घटना उस समय की है, जब वो 2012 में अपनी माँ के साथ कश्मीर गए थे। हब्बा कदल में उनकी माँ का पैतृक निवास हुआ करता था, जहाँ वो लोग दोबारा गए। आकाश की माँ पड़ोसियों से भी मिलने को उत्सुक थीं, जिनमें एक अहमद नाम का दूधवाला भी शामिल था। कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाए जाने के बाद आकाश की माँ के पास किसी पड़ोसी के कोई कांटेक्ट नंबर वगैरह भी नहीं था।
आकाश बताते हैं कि जब उनकी माँ अपने पैतृक आवास पर पहुँचीं तो वहाँ सभी लोगों ने उन्हें पहचान लिया। वो सभी नाम से उन्हें पुकारते थे। 23 साल बाद भी उन्हें सबकुछ याद था। लेकिन, एक गौर करने वाली बात ये है कि उनमें से किसी ने भी ऐसा जाहिर नहीं किया कि वो उन्हें जानते हैं। आकाश की माँ इसके बाद गलियों से होते हुए अहमद से मिलने पहुँचीं। उस वक़्त रमजान का महीना था। अहमद अपने बेटे के साथ घर से निकल रहा था, तभी उसने आकाश और उसकी माँ को देखा। उसने आकाश की माँ को पहचान लिया और जाहिर भी किया वो उन्हें जानता है।
अहमद और उसका बेटा उस समय नमाज़ के लिए निकल रहे थे। उसने आकाश की माँ को सलाम किया और नमाज़ के लिए निकल गया। इसके बाद आकाश की माँ ने दिलशादा नामक एक महिला को पुकारा, जो बाहर निकलीं और उन्हें देखते ही रोने लगी। आकाश कहते हैं कि आजकल कश्मीर के किसी भी युवा को कश्मीरी पंडितों के बारे में कुछ भी पता नहीं है। दिलशादा जिस तरह से रो रही थी, उससे पता चल रहा था जैसे आकाश की माँ से मिल कर वो काफ़ी इमोशनल हो गई है।
अहमद और दिलशादा के घर से निकलने के बाद गाड़ी में आकाश की माँ ने कुछ ऐसा बताया, जो चौंकाने वाला था। आकाश की माँ ने बताया कि दिलशादा अपने परिवार वालों को कश्मीरी पंडितों के विरुद्ध भड़काया करती थी। आकाश को अचानक से विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने अभी-अभी दिलशादा को रोते हुए देखा था। बकौल आकाश की माँ, 1989 में इसी महिला ने पूरे मोहल्ले में अफवाह फैला दी थी कि समुदाय विशेष के लोगों को मारने के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने मोहल्ले की पानी सप्लाई में ज़हर मिला दिया है।
Because EVIL, even when it is behind genocides, mass murders and horrendous, horrific crimes, is often so banal, so stupid, and so, so, so very idiotic.
— Aakash (@Ateendriyo) January 19, 2020
Evil appeals to an idiotic mind, to the sorta mind that sees battles of 7th and 8th century Middle East in 20th century Kashmir
ये सोचने लायक बात है कि ज़हरीले पानी से किसी मोहल्ले के एक ही मजहब वाले लोग ही क्यों मरेंगे? उसका असर हिन्दुओं पर क्यों नहीं होगा? ये बानगी है उन अफवाहों की, जिनके कारण कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार की सारी हदों को पार कर दिया। दिलशादा एक ऐसी महिला थी, जो अपने बच्चों व परिजनों पर चिल्लाती थी कि वो बाहर जाएँ, सरकारी एजेंसियों के ख़िलाफ़ पत्थरबाजी करें, विरोध प्रदर्शन करें और उनके परिवार वालों को घाटी से बाहर खदेड़ डालें।
वही महिला, जो आकाश की माँ को देख कर ऐसे रो रही थी, जैसे उसका कोई अपना बिछड़ा हुआ बरसों बाद मिला हो। आकाश लिखते हैं कि कश्मीरी कट्टरपंथियों के भीतर वहाँ के हिन्दुओं के प्रति घृणा का भाव पहले से ही पनप रहा था। जब वो अपनी माँ के साथ दिल्ली लौट रहे थे, तब श्रीनगर एयरपोर्ट पर उन्हें भूख लगी। तब उन्होंने पास के एक कैफे में जाकर सैंडविच आर्डर किया और 100 रुपए दिए। वहाँ लोगों ने उनकी तरफ अजीब नज़रों से घूरा क्योंकि वो रमज़ान का महीना था और उस समय दिन में लोग रोजा रखते थे। बावजूद इसके कि आकाश ने स्थानीय भाषा का प्रयोग किया, उस कैफ़े वाले ने उन्हें जो कहा वो कश्मीरी कट्टरपंथियों की सोच के बारे में बहुत कुछ कहता है।
I quickly added, “fut’vout mye’lya” (can I get change).
— Aakash (@Ateendriyo) January 19, 2020
He smiled even more broadly.
“Tohi chiv mehmaan sae’ny, ky’azy mye’lav n’a”
(You’re our guest here, surely you’ll get change)
खुले पैसे माँगने पर कैफे वाले ने कहा कि वो ज़रूर देगा क्योंकि वो लोग ‘अतिथि’ हैं। वो जानता था कि आकाश और उनकी माँ कश्मीर में अतिथि नहीं हैं लेकिन फिर भी उसने जानबूझ कर ऐसा कहा। आकाश के मन में अचानक से कश्मीर से भगा दिए गए और मार डाले गए सम्बन्धियों के विचार आने लगे। उस कैफे वाले ने क्या यही याद दिलाने के लिए ऐसा कहा था? ख़ैर, इन घटनाओं से ये तो समझ आता ही है कि पंडितों के ऊपर जो जुल्म हुए, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती।