जी हाँ आपने एकदम सही पढ़ा, कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन और फिर अब ‘अनलॉक’ होते-होते CAA की आड़ में दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों में मार-काट के मुजाहिरे का जश्न मनाने वाले गज़वा-ए-हिन्द का जमावड़ा हिन्दू-घृणा और मनोरंजन के बरक्स एक बड़े भारत-विरोधी बाज़ार में अपनी दुकानें फिर से गर्मा चुका है। और इस बार पहली छोटी दुकान नेटफ्लिक्स प्रायोजित ‘सीरियस मैन’ के बाद अमेज़न प्राइम की ‘मिर्ज़ापुर 2’ (Mirzapur 2) नाम से सजी है।
मिर्ज़ापुर क्या है?
मिर्जापुर (Mirzapur 2) भारत के गाँव-देहातों में अनेकों खामियों के बावजूद मजबूत संस्कृति को भद्दे प्रकाश में दिखाने का एक मनोरंजनात्मक ज़हर है। इसका पहला सीज़न भी आप लोगों ने सब्सक्रिप्शन लेकर या बिना सब्सक्रिप्शन के दीगर ज़रियों से देखा ही होगा।
ग़र आप इसको महज पंकज त्रिपाठी के अभिनय तक सीमित कर के देखते हैं तो भुलावे में हैं। मनोरंजन की नज़र से इसके पहले सीज़न में साफ़तौर पर दिखता है कि किस तरह अखंडानंद त्रिपाठी और रति शंकर शुक्ला नाम के दो हिन्दू-ब्राह्मणों के बीच हर क़िस्म की गुंडागर्दी और गन्दगी परोसी गई है।
यह एक सामान्य उदाहरण है जिसे दर्शक को जानना चाहिए। जिहाद-परस्त व जिहाद-समर्थ इसी तर्ज पर नए दौर में तलवार, पेट्रोल बम के साथ साथ मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक जिहाद पर बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहे हैं।
मिर्जापुर दिल्ली दंगों में दिलबर नेगी, अंकित शर्मा व अन्य 5 दर्जन लोगों की मृत्यु का जश्न मनाने वालों का एक विषैला समूह है, जिसमें निर्माता फरहान अख्तर से लेकर कथित अभिनेता अली फ़ज़ल, विक्रांत मेसी सभी हिन्दू-घृणा की अफ़ीम को हर पल खाकर जीते हैं। यह वही अली फ़ज़ल हैं, जिन्हें CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने के नाम पर आगज़नी में देखने में बहुत मज़ा आ रहा था। वेब सीरीज़ में पैसा लगाने वाले फरहान अख्तर से तो सबका तार्रुफ़ है ही।
तो क्या हुआ हम तो पंकज त्रिपाठी के लिए देखने जाएँगे?
आपके जेहन में ऐसा सवाल आता है तो इसका यह पक्ष जान लीजिए। टारगेट ऑडिएंस अधिकतर हिन्दू युवा ही हैं जिनको लुभाने के लिए मिर्जापुर नाम के इस भारतीयता व हिन्दू-विरोधी प्रचार में पंकज त्रिपाठी को रखने के तीन कारण हैं :
- पंकज त्रिपाठी अतीत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अभाविप (ABVP) में सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं जैसा वे खुद कुछ साक्षात्कार में बताते हैं। पंकज त्रिपाठी मसान, वासेपुर जैसी फिल्मों के काऱण युवाओं में लोकप्रिय हैं।
- बॉलीवुड में फैले भाई-भतीजावाद के बीच पंकज त्रिपाठी एक आउटसाइडर हैं और ठीक-ठाक कलाकार हैं, जो पूर्व में इसी प्रकार की कहानी ‘वासेपुर’ में भी सुल्तान का किरदार निभा चुके हैं। 8 सालों के वक्फे में फ़र्क महज़ वासेपुर से मिर्जापुर तक सुल्तान का अखंडानंद ‘त्रिपाठी’ होने का है। प्रतिभावान आउटसाइडर को किसी बड़े दुष्प्रचार का हिस्सा बनाकर ढोल-नगाड़ों के साथ दुष्प्रचार करने का यह नया फॉर्मूला है, जो आने वाले दिनों में और ज्यादा देखने को मिलेगा। हाल की ही गुंजन सक्सेना पर बनी फिल्मइसी बात का एक उदाहरण है।
- पंकज त्रिपाठी, राजेश तैलंग करेक्टर आर्टिस्ट हैं, जिनकी अभिनय कला अली फ़ज़ल और विक्रांत मेसी से कहीं बेहतर है, इसलिए यह वेब सीरीज़ एक भ्रम को टार्गेटेड ऑडिऐंस में कस्बाई बोलचाल इत्यादि जैसे अनेकों तत्व को अपने हिसाब से बोने का काम बखूबी करती है।
वेब सीरीज के माध्यम से हिन्दू-घृणा परोसना और उसे स्थापित करना अब वामपंथी बुद्धिपिशाचों का नया जरिया बन गया है। इसके इन्हें दो तरह के फायदे भी होते हैं – पहला तो जगजाहिर हिन्दू-घृणा, हिंदुत्व के प्रतीकों को अपमानित कर उनसे भयानक छेड़खानी कर नए नैरेटिव को टीवी के माध्यम से स्थापित करना और दूसरा यह कि विवादों के जरिए आसानी से चर्चा का विषय बन जाना। मिर्जापुर से पहले भी ‘पाताल लोक‘ और ‘लैला‘ इसी हिन्दू-घृणा से भरी खुराफात का ही निचोड़ मात्र थे।