Sunday, December 22, 2024
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गाँधी परिवार में खटपट! कॉन्ग्रेस को मँझधार में छोड़ बैंकॉक गए राहुल गाँधी

अचानक से राहुल गॉंधी के बैंकॉक जाने से परिवार के भीतर खटपट के कयासों को फिर से बल मिल गया है। राहुल ऐसे वक्त में बैंकॉक गए हैं जब महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने में करीब दो हफ्ते का ही समय बचा है। दोनों जगहों पर चुनाव प्रचार के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में उनका नाम था।

यूॅं तो गॉंधी परिवार को वह फेविकोल माना जाता है जिसके सहारे पूरी पार्टी चिपकी रहती है। यही वजह है कि आम चुनावों के बाद जब राहुल गॉंधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया तो कॉन्ग्रेसियों ने परिवार के बाहर से अपना नेता चुनने की बजाए फिर से सोनिया गॉंधी के ही हाथों में कमान सौंप दी, जबकि इस्तीफा देते वक्त राहुल ने साफ किया था कि पार्टी का अगला अध्यक्ष परिवार से नहीं होना चाहिए।

लेकिन, अब लगता है कि गॉंधी परिवार के भीतर भी सब कुछ सही नहीं चल रहा है। राहुल के इस्तीफे के बाद उनकी बहन प्रियंका ने भाई की भावनाओं की अनदेखी कर अध्यक्ष बनने के लिए पर्दे के पीछे से किस तरह से लॉबिंग की थी, इसकी खबरें पहले भी सामने आ चुकी है। हालॉंकि आर्टिकल 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद बदले माहौल के कारण उन्होंने आखिरी क्षणों में अपने पॉंव पीछे कर लिए थे।

अब अचानक से राहुल गॉंधी के बैंकॉक जाने से परिवार के भीतर खटपट के कयासों को फिर से बल मिल गया है। राहुल ऐसे वक्त में बैंकॉक गए हैं, जब महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने में करीब दो हफ्ते का ही समय बचा है। दोनों जगहों पर चुनाव प्रचार के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में उनका नाम था।

राहुल के बैंकॉक जाने की खबर शनिवार देर शाम को आई। देखते ही देखते बैंकॉक ट्विटर पर टॉप ट्रेंड करने लगा। राहुल के बैंकॉक जाने पर तंज कसते हुए बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने ट्वीट किया, “क्या आप भी हैरान हैं कि बैंकॉक क्यों ट्रेड कर रहा है।” सोशल मीडिया में कई यूजर्स ने टिप्पणी की कि चुनाव में भाजपा अपने स्टार प्रचारक की कमी महसूस करेगी।

इस खबर के सामने आने से पहले तक कॉंन्ग्रेस की अंदरुनी लड़ाई सुर्खियों में थी। हरियाणा प्रदेश कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि राहुल के करीबी लोगों की राजनीतिक हत्या हो रही है। उनसे पहले मुंबई कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय निरुपम ने भी कहा था कि पार्टी में उन नेताओं को किनारे लगाया जा रहा है जिन्हें राहुल ने आगे बढ़ाया था।

सोनिया ने अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर जब पार्टी की कमान संभाली थी तो उम्मीद की जा रही थी कि नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला थमेगा और भीतरी कलह रुकेगी। लेकिन, हो ठीक इसके उलट रहा है। ​उनके नेतृत्व संभालने के बाद त्रिपुरा कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रद्योत देब बर्मन और झारखंड के अध्यक्ष अजय कुमार ने पार्टी को अलविदा कह दिया।

इसकी बड़ी वजह वे ओल्ड गार्ड बताए जाते हैं जिनसे अपने पूरे कार्यकाल राहुल भी जूझते नजर आए थे। दीगर है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की चेतावनियों के बावजूद राहुल ने तंवर को उनके पद से नहीं हटाया था। लेकिन, सोनिया के आते ही तंवर की छुट्टी हो गई और हुड्डा को आगे किया गया। इससे पहले ओल्ड गार्ड के कारण ही बीते साल मध्य प्रदेश और राजस्थान में राहुल अपने खास माने जाने वाले युवा नेताओं ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट को प्रदेश की कमान नहीं सौंप पाए थे।

कॉन्ग्रेस में ओल्ड गार्ड और न्यू गार्ड की लड़ाई 2007 में राहुल के पार्टी महासचिव बनने के बाद ही शुरू हो गई थी। 2014 के आम चुनावों से पहले राहुल ने युवाओं को पूरे जोर-शोर से आगे भी बढ़ाया था। इनमें मीनाक्षी नटराजन, अशोक तंवर, शनीमोल उस्मान, कनिष्क सिंह, अजय माकन, संजय निरुपम, दिव्या स्पंदना, सुष्मिता देव, शर्मिष्ठा मुखर्जी, मिलिंद देवड़ा, सचिन पायलट, जितेन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई नाम शामिल थे।

शुरुआत में लगा कि ओल्ड गार्ड से राहुल पार पाने में कामयाब भी हो गए। लेकिन, पंजाब में अमरिंदर सिंह के सामने उनके सरेंडर से ओल्ड गार्ड फिर से पार्टी में प्रभावी होने लगे। राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसका नतीजा भी दिखा। 2019 के आम चुनावों में करारी शिकस्त के बाद ओल्ड गार्ड दोबारा मुखर हो गए। और अब सोनिया की वापसी के साथ ऐसा लगता है कि ओल्ड गार्ड राहुल के करीबियों से पुराना हिसाब चुकता करने में लग गए हैं।

इससे कॉन्ग्रेस की मुश्किलों में इजाफा होना तय है। जैसा कि तंवर ने इस्तीफे के बाद कहा, “वास्तव में कॉन्ग्रेस के भीतर ही कुछ लोग हैं जो भारत को कॉन्ग्रेस मुक्त करना चाहते हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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