Friday, November 15, 2024
Homeरिपोर्टमीडियाजब 'दुकानदार' राजदीप सरदेसाई से डरते थे रवीश कुमार, पिछले दरवाजे से आते थे...

जब ‘दुकानदार’ राजदीप सरदेसाई से डरते थे रवीश कुमार, पिछले दरवाजे से आते थे दफ्तर

खुद को छोड़ सबको गोदी मीडिया बताने वाले रवीश कुमार के लिए किसी दूसरे पत्रकार को खारिज करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन राजदीप के लिए उनके मुँह से निकले शब्द चौंकाने वाले जरूर हैं। एक समय दोनों साथ काम किया करते थे। या यूॅं कहें कि रवीश की ट्रेनिंग ही राजदीप के नेतृत्व में शुरू हुई थी।

वे कुंठा से ग्रसित हैं। मोदी सरकार और बीजेपी को कोसे बिना उनकी कोई बात पूरी नहीं होती। वे टीवी पर ज्ञान बॉंचते हैं और दर्शकों से टीवी नहीं देखने को कहते हैं। वे अख़बारों की रिपोर्टों का हवाला देते हैं और लोगों से अखबार नहीं पढ़ने को कहते हैं। उन्हें लगता है कि मई 2014 के बाद से हिन्दुस्तान में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। वे शाहरुख में अनुराग मिश्रा तलाशते हैं। उनके प्रोपेगेंडा की फेहरिस्त लंबी है।

आप समझ गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रही हूॅं। जी हॉं, सही समझे। बात रवीश कुमार की ही हो रही है। अब रवीश चर्चा में हैं अपने एक पूर्व संपादक को खुलेआम ट्रोल करने के कारण। ये संपादक भी बड़े घाघ हैं और कुंठित रवीश कुमार तैयार करने में उनकी अहम भूमिका रही है। पत्रकारिता की शुरुआत रवीश ने उनके नेतृत्व में ही की थी। बावजूद इसके रवीश कुमार ने राजदीप सरदेसाई को ‘दुकानदार’ और ‘बैलेंसवादी’ कहने में संकोच नहीं किया है।

मंच था न्यूज 24 का। मंथन नामक उसके कार्यक्रम में रवीश कुमार मंच पर थे। उनसे न्यूज 24 के एग्जीक्यूटिव एडिटर मानक गुप्ता ने एक सवाल किया। इसके जवाब में ही रवीश ने राजदीप पर यह टिप्पणी की। नीचे के विडियो में आप उस कार्यक्रम में रवीश को सुन सकते हैं।

34:59 से 39:11 के बीच रवीश और मानक की बातचीत सुनिए

वीडियो में मानक गुप्ता रवीश से सवाल करते हैं, “क्या आप कुछ ज्यादा ही नेगेटिव नहीं हैं? जैसे कल राजदीप आए थे….” इससे पहले कि मानक अपना सवाल पूरा कर पाते, रवीश कुमार, राजदीप का नाम सुनते ही पानी की बोतल नीचे रखते हैं और तड़ाक से जवाब देते हैं, “मानक मैं दुकानदार नहीं हूँ। आप जिनका नाम लेकर आए हैं, मैं बैलेंसवादी नहीं हूँ… ये सच्चाई है कि मीडिया लोकतंत्र की हत्या का आयोजन कर रहा है और यह सकारात्मकता या नकारात्मकता का मामला नहीं है….अगर आप मर्डर को मर्डर नहीं कहेंगे तो फिर आप क्या कहेंगे?”

इसके बाद ये बातचीत यही नहीं रुकती। रवीश का जवाब सुनने के बाद मानक कहते हैं कि सिर्फ़ राजदीप सरदेसाई ही नहीं, बल्कि कई पत्रकार मानते हैं कि मीडिया दो हिस्सों में बँट गया है। रवीश उनसे असहमति जताते हैं और कहते हैं कि ये सब पूरी तरह से गलत है, यहाँ कोई बैलेंस नहीं है।

खुद को छोड़ सबको गोदी मीडिया बताने वाले रवीश कुमार के लिए किसी दूसरे पत्रकार को खारिज करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन राजदीप के लिए उनके मुँह से निकले शब्द चौंकाने वाले जरूर हैं। एक समय दोनों साथ काम किया करते थे। ये बात और है कि उन दिनों राजदीप खुद को चेहरा बना चुके थे, जबकि रवीश पत्रकारिता में अपनी जमीन तलाशने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

नीचे 13 मार्च 2014 का एक विडियो है। इसमें रवीश कुमार एनडीटीवी में अपनी यात्रा को लेकर बात कर रहे हैं। अपने ही चैनल यानी एनडीटीवी के एक प्रोग्राम में रवीश की एनडीटीवी यात्रा साझा की गई थी। वे बता रहे हैं कि आखिर कैसे एनडीटीवी से जुड़ने के बाद उन्होंने काम सीखा और किन-किन लोगों ने उनकी मदद की।

6:50 से 7:10 के बीच में राजदीप को लेकर रवीश के अनुभव सुनिए

बारी-बारी से सहकर्मियों के बारे में बात कर रहे रवीश राजदीप की चर्चा भी करते हैं। बताते हैं कि राजदीप से बहुत डर लगता था। उनके डर के कारण वे पीछे के गेट से दफ्तर में आते थे। वे बताते हैं कि नताशा (एक सहकर्मी) उनसे मजाक में कहा करती थी तुम चूहा हो डरते हो राजदीप से। और राजदीप भी। बिना बात के कोई एडिटर इतना गुस्सा करता है क्या। एक दिन तो राजदीप मेरे बाल को लेकर गुस्सा हो गए कि ये रिपोर्टर के बाल हैं या देवानंद के। तुम रिपोर्टर बनने आए हो या फिर देवानंद।

हालॉंकि विडियो में रवीश ने यह नहीं बताया है कि यह घटना कब की है। शायद यह उस समय का वाकया होगा जब रवीश कथित तौर पर जेएनयू के एक प्रोफेसर का सिफारशी पत्र लेकर एनडीटीवी में दाखिल हुए थे। उस समय वे प्राइम टाइम एंकर नहीं थे। चिट्ठिया छॉंटा करते थे और राजदीप एडिटर हुआ करते थे। मानक के साथ बातचीत में भी रवीश ने कहा है कि राजदीप उनके एडिटर रहे हैं।

रवीश कुमार नहीं समझ पा रहे जामिया की लाइब्रेरी में क्यों भागे ‘छात्र’: बताने की कृपा करें

बात रवीश कुमार के ‘सूत्रों’, ‘कई लोगों से मैंने बात की’, ‘मुझे कई मैसेज आते हैं’, वाली पत्रकारिता की

प्राइम टाइम एनालिसिस: रवीश कुमार कल को सड़क पर आपको दाँत काट लें, तो आश्चर्य मत कीजिएगा

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

अंग्रेज अफसर ने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को दी चिट… 500 जनजातीय लोगों पर बरसने लगी गोलियाँ: जब जंगल बचाने को बलिदान हो गईं टुरिया की...

अंग्रेज अफसर ने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को चिट दी जिसमें लिखा था- टीच देम लेसन। इसके बाद जंगल बचाने को जुटे 500 जनजातीय लोगों पर फायरिंग शुरू हो गई।

कश्मीर को बनाया विवाद का मुद्दा, पाकिस्तान से PoK भी नहीं लेना चाहते थे नेहरू: अमेरिकी दस्तावेजों से खुलासा, अब 370 की वापसी चाहता...

प्रधानमंत्री नेहरू पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर सौंपने को तैयार थे, यह खुलासा अमेरिकी दस्तावेज से हुआ है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -