फैज़ अहमद फैज़ की कविता ‘हम देखेंगे’ को लेकर आजकल एक नई बहस छिड़ी हुई है। इसकी शुरुआत आईआईटी कानपुर द्वारा एक समिति बनाने से हुई। समिति को यह जॉंचने का जिम्मा दिया गया है कि जिस विरोध-प्रदर्शन के दौरान फैज की नज्म का पाठ हुआ उस दौरान संस्थान के किस नियम-कानून का उल्लंघन तो नहीं हुआ। लेकिन, इस बात से वामपंथियों को मिर्ची लग गई। फैज़ को ‘भारत का राष्ट्रभक्त’ साबित करने पर उन्होंने पूरा जोर लगा रखा है। ट्विटर पर जावेद अख्तर सरीखे लोगों ने फैज़ के गुणगान में ट्वीट्स किए। फैज़ की कविताएँ शेयर की गईं।
अब फैज के इस नज्म का मैथिली अनुवाद अचानक से वायरल हो रहा है। इसके पीछे की वजह जानने से पहले ‘हम देखेंगे’ का मैथिली अनुवाद पढ़िए;
हमहूँ देखबै!
देखबे करबै!
एकटा वादा छल सभ स’
अछि बिधिनाक बनायल जे
हमहूँ देखबै!
जुलुमक ई दुष्कर पहाड़
रुइक फाहा सन जेना उड़ि जायत
आ दुखिया जनता के तरबा तर
ई धरती जखन धड़-धड़ धड़कत
सत्ता के मद में चूर जे छथि
हुनका माथा ठनका बजरत
हमहूँ देखबै!
गोसाईं बनल जे बैसल छथि
गरदनियाँ द’ फेकल जयताह
भलमानुष जे सदा उपेक्षित
तोशक पर बैसाओल जयताह
मुकुट हवा में उछलि खसत
आ सिंघासन खंडित होयत
रहि जेतै नाम त’ ओकरे टा
जे सगुण आ निर्गुण दुनू अछि
जे नजरिक संग नजारो अछि
लागत ‘हमहीं ब्रह्म’क जयकारा
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
जनता जनार्दन करत राज
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
यह मैथिली की खूबसूरती है कि ‘हम देखेंगे’ की ‘बुतपरस्ती’ सगुण-निर्गुण ब्रह्म में बदल जाती है। लेकिन, फैज कट्टर पाकिस्तानी थे। यह बात सालों पहले हरिशंकर परसाई दुनिया को बता चुके हैं।
ऑपइंडिया की पड़ताल से पता चला कि हम देखेंगे का यह मैथिली अनुवाद बुतपरस्त मैथिल मजे लेने के लिए वायरल कर रहे हैं। विदेह की धरती से फैज का दूर-दूर तक कोई कनेक्शन नहीं है।