Thursday, April 25, 2024
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‘जय वाल्मीकि, जय श्रीराम’ – वो नारा, जिससे 52 गाँव के दलितों ने ओढ़ा भगवा, उतार फेंका फर्जी भीमवादियों का नीला गमछा

"फर्जी भीमवादियों ने जानबूझ कर महर्षि वाल्मीकि को नीले कपड़ों में दिखाना शुरू कर दिया था जबकि हमेशा से उन्हें और संत रविदास जैसी विभूतियों को भगवा वस्त्रों में ही दिखाया जाता रहा है। यह एक एजेंडे के तहत किया गया। इसके बाद..."

चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ ‘रावण’ की भीम आर्मी हो या फिर दलितों के हितों का दावा करने वाले अन्य हिन्दू विरोधी संगठन, वो लोगों को ये कह कर बेवकूफ बनाते हैं कि सारे हिन्दू देवी-देवता फर्जी हैं और आर्यों ने हमेशा दलितों का अत्याचार किया है। दलितों और हिन्दुओं को अलग करने की इस साजिश को नाकाम किया है महर्षि वाल्मीकि ने। हरियाणा के गुहाना में हुए एक कार्यक्रम में महर्षि वाल्मीकि की मदद से विहिप और दलितों ने मिल कर फर्जी भीमवादियों के मंसूबों को नाकाम किया।

हाल ही में ख़बर आई थी कि हरियाणा के गुहाना से ‘जय वाल्मीकि, जय श्रीराम’ का नारा दिया गया है। वहाँ एक कार्यक्रम में विहिप के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा था कि अनुसूचित जाति के लोग हिंदू समाज के अटूट अंग हैं और कोई भी साजिश उन्हें अलग नहीं कर सकती। हिंदूवादी नेताओं और विहिप के पदाधिकारियों ने ध्यान दिलाया कि कैसे असदुद्दीन ओवैसी जैसे मौकापरस्त नेता ‘जय भीम, जय मीम’ का नारा देकर दलितों को बरगलाते हैं।

ऑपइंडिया ने इस कार्यक्रम के बारे में और जानकारी जुटाई, जिसके बाद पता चला कि गुहाना के 52 गाँवों में से प्रत्येक से इसमें दो-दो युवकों को बुलाया गया था। ये सभी दलित और वाल्मीकि समुदाय के युवक थे, जिन्होंने भीम आर्मी जैसे संगठनों और फर्जी नारा देने वालों के बहकावे में आकर हिन्दू धर्म से विमुख होना शुरू कर दिया था। हिन्दू धर्म में वापस उनकी श्रद्धा लाने और उन्हें अपनी जड़ों की तरफ लौटाने में काम आए महर्षि वाल्मीकि।

वही महर्षि वाल्मीकि, जो रामायण के रचयिता हैं और भगवान श्रीराम के समकालीन भी। उन्होंने भगवान के अवतरण से पहले ही उनकी पूरी गाथा लिख दी थी। इसके साथ-साथ ‘आनंद रामायण’ और ‘योग वशिष्ठ’ के लेखक के रूप में भी उन्हें जाना गया है। आज भी दलित समुदाय में एक बड़ा वर्ग उन्हें अपना पूर्वज मानता है। भीम आर्मी जैसे संगठन उन्हें हिंदुत्व से अलग कर के देखते हैं और उनके नाम पर दलितों को बरगलाते हैं।

इसके लिए एक उदाहरण देखिए। अक्टूबर 2019 में जब भीम आर्मी का मुखिया ‘रावण’ दंगे करने, सरकारी अधिकारियों के साथ बदतमीजी करने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद था, तब उसने वाल्मीकि जयंती को मुद्दा बनाते हुए आरोप लगाया था कि जेल में होली और दिवाली के उलट इसे मनाने की इजाजत नहीं दी जा रही है, जो भेदभाव को दिखाता है।

इसके साथ ही उसने पूछा था कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल वाल्मीकि के अस्तित्व को नहीं मानते? उसने जेल में वाल्मीकि जयंती के लिए व्यवस्था न किए जाने पर अनशन करने और सीएम केजरीवाल के घर के बाहर धरना देने की धमकी दी थी। हैरानी की बात तो ये है कि वाल्मीकि-वाल्मीकि का रट्टा लगाने वाला ये आदमी एक प्रदर्शन में मंदिर में तोड़फोड़ का आरोपित भी था।

अब वापस हरियाणा के गुहाना की ओर लौटते हैं। हमने इस कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी के लिए विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के इंटरनेशनल जॉइंट सेक्रेटरी डॉक्टर सुरेंद्र जैन से बातचीत की। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया कि दलितों का एक बड़ा वर्ग हिन्दू विरोधी विभाजनकारी संगठनों के प्रभाव में आकर हिंदुत्व से भटक गया था, जिसे वापस लाने के लिए विहिप ने लगातार प्रयास किया।

हालाँकि, वो ‘जय वाल्मीकि, जय श्रीराम’ नारे का पूरा क्रेडिट वाल्मीकि समुदाय को देते हुए कहते हैं कि ये विहिप का नारा नहीं है, अपितु, वाल्मीकि समुदाय ने खुद ये नारा देकर विहिप को यह काम सौंपा। उन्होंने बताया कि इसकी पहल ख़ुद वाल्मीकि समुदाय ने ही की है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे आंबेडकर ने तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से आग्रह किया था कि वो हिन्दू संतों से कह कर इसकी घोषणा करवाएँ कि छुआछूत हिन्दू समाज का हिस्सा नहीं है।

साथ ही उन्होंने हरियाणा के गुहाना में वाल्मीकि मंदिर परिसर में बन रहे समरसता भवन की भी बात की, जिसका निर्माण जल्द ही पूरा हो जाएगा। डॉक्टर जैन ने बताया कि फर्जी भीमवादियों ने जानबूझ कर महर्षि वाल्मीकि को नीले कपड़ों में दिखाना शुरू कर दिया था जबकि हमेशा से उन्हें और संत रविदास जैसी विभूतियों को भगवा वस्त्रों में ही दिखाया जाता रहा है। उन्होने कहा कि ये एक एजेंडे के तहत किया गया।

डॉक्टर जैन ने कहा कि विहिप शुरू से ही समाज में छुआछूत ख़त्म करने का काम कर रहा है। गुहाना में हुए कार्यक्रम के बारे में उन्होंने जानकारी दी कि उसमें और भी लोगों को बुलाया जाता लेकिन चूँकि कार्यक्रम को सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन करते हुए संपन्न कराना था, इसीलिए 52 गाँवों से दो-दो लोग ही बुलाए गए थे। उन्होंने महर्षि वाल्मीकि और भगवान श्रीराम को एक-दूसरे का पूरक करार दिया।

इसके बाद हमने रिटायर्ड न्यायाधीश पवन कुमार से संपर्क किया, जो उस कार्यक्रम का अहम हिस्सा थे और वाल्मीकि महासभा कमिटी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया कि लगभग एक दशक पहले हुए एक संघर्ष में एक दलित युवक की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद दलितों और कथित उच्च-जाति के लोगों के बीच की खाई बढ़ी और इसी का फायदा उठा कर कुछ संगठनों ने दलितों का इस्तेमाल किया।

वो बताते हैं कि कई दलितों को मिशनरियों ने लुभा कर ईसाई मजहब में धर्मान्तरण करा दिया। उन्होंने बताया कि इसी घटना के बाद से दलित समुदाय के लोग हिन्दू धर्म और इसकी विचारधारा से दूर जाने लगे। उन्होंने बताया कि उन्हें अपनी जड़ों की तरफ वापस लाने के लिए काफी दिनों से प्रयास चल रहा था। हिन्दू संगठन उन्हें समझाने में लगे थे कि कैसे विभाजनकारी ताकतें उनका इस्तेमाल कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि दलितों को ये सच्चाई बताई गई कि जो भी लोग और संगठन उन्हें हिन्दू धर्म से विमुख करने में लगे हुए हैं, उनके मंसूबे राजनितिक हैं और वो राजनीतिक फायदे के लिए ही ऐसा कर रहे। उन्हें समझाया गया कि ऐसे संगठनों का देश की एकता और अखंडता से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि दलितों को मुख्यधारा में लाने के लिए और देश की अखंडता बनाए रखने के लिए ये प्रयास किए गए।

पूर्व जज ने बताया कि भीम आर्मी के चंगुल में आए अन्य दलितों को भी चिह्नित कर उन्हें हिन्दू धर्म की मुख्यधारा में वापस लाने का प्रयास जारी है। उन्होंने दलित युवक की हत्या वाले मामले को भी फिर से खोलने के लिए हरियाणा सरकार से अपील करते हुए कहा कि योग्य जाँच एजेंसी को इसकी जाँच दी जाए क्योंकि दोषियों को सजा मिलने के बाद ही पीड़ितों को शांति मिलती है और उनका रोष कम होता है।

पूर्व जज पवन कुमार ने कहा कि जब हम अपने ही लोगों का ख्याल नहीं रखेंगे तो उनके भटकने की सम्भावना ज्यादा है और वो दूसरों के प्रभाव में आ जाते हैं। उन्होंने आशा जताई कि गुहाना के वाल्मीकि मंदिर में बनने वाला समरसता भवन भी कोरोना आपदा ख़त्म होते-होते तैयार हो जाएगा। साथ ही उन्होंने हिन्दू समाज के अन्य वर्गों को भी दलितों के साथ सही बर्ताव करने की सलाह दी, ताकि वो किसी और चंगुल में न फँसें।

विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारियों ने ये भी जानकारी दी कि दिल्ली में उनके द्वारा जितने भी रामलीला कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, उन सबकी शुरुआत वाल्मीकि पूजन से होती है और परदे पर महर्षि वाल्मीकि को दिखाया जाता है। इसी तरह अयोध्या के राम मंदिर परिसर में भी महर्षि वाल्मीकि का मंदिर होगा, उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस तरह महर्षि वाल्मीकि आज हिन्दू समाज के पुनरुत्थान का कार्य दिव्यलोक से ही कर रहे हैं।

हाल ही में हमने बताया था कि कैसे विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने 5000 ऐसे पुजारियों को प्रशिक्षित कर विभिन्न मंदिरों में नियुक्त किया है, जो एससी-एसटी (दलित) समुदाय से आते हैं। संगठन के निवेदन के बाद विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने पैनल में इन पुजारियों को जगह दी है। खासकर दक्षिण भारत में संगठन को इस कार्य में खासी सफलता मिली है। अकेले तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में एससी-एसटी (दलित) समुदाय के 2500 पुजारियों को प्रशिक्षित किया गया है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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