Wednesday, October 9, 2024
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सो सब तव प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई: 2047 तक विकसित भारत की लक्ष्य प्राप्ति के लिए युवाओं को हनुमान जी का संदेश

हनुमान जी की भाँति ही हमें भी समाज के प्रति अपने दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना चाहिए। युवा शक्ति को हनुमान जी की पूजा से अधिक उनके चरित्र को आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिससे भारत को उच्चतम नैतिक मूल्यों वाले देश के साथ- साथ 'कौशल युक्त' भी बनाया जा सके।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सर्वोत्तम सेवक, सखा, सचिव और भक्त हनुमान जी थे। प्रभु राम की भारतीय जनमानस में जिस प्रकार पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार उनके प्रिय सेवक हनुमान जी की भी पूजा की जाती है। हनुमान जी को रुद्रावतार भी माना जाता है। इनकी पूजा पूरे भारत और दुनिया के अनेक देशों में इतने अलग-अलग तरीकों से की जाती है तथापि इन्हें ‘जन देवता’ की संज्ञा दी जा सकती है।

गोस्वामी तुलसीदास जी तो हनुमान जी के लिए कहते हैं:

अर्थात अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कांतियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।

हनुमान जी अतुल बल के स्वामी थे। उनके अंग वज्र के समान शक्तिशाली थे। अत: उन्हें ‘वज्रांग’ नाम दिया गया, जो बोलचाल में बजरंग बन गया। यह बजरंग केवल गदाधारी महाबली ही नहीं हैं, बल्कि विलक्षण और बहुआयामी मानसिक और प्रखर बौद्धिक गुणों के अद्भुत धनी भी हैं। यदि कोई उनसे विश्राम की बात करता तो उनका उत्तर होता था- मैंने श्रम ही कहाँ किया, जो मैं विश्राम करूं? उनके चित्र व्यायामशालाओं में जिस भक्तिभाव के साथ लगाए जाते हैं, उतनी ही श्रद्धा के साथ प्रत्येक शिक्षा और सेवा संस्थान में भी लगाए जाने चाहिए।

छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य निर्माण की विस्तृत लेकिन गहरी नींव रखने के लिए उनके गुरु समर्थ श्री रामदास द्वारा गाँव-गाँव में अनगढ़े पत्थरों को सिन्दूर लगाकर हनुमान जी के रूप में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की गई। आज से लगभग 300 वर्षों से अधिक पहले यह महान राष्ट्रीय उपक्रम हुआ।

केवल भारत ही नहीं, सारे संसार के लिए किसी आदर्श व्यक्तित्व के चयन की समस्या आ जाए तो हनुमान जी का जीवन निश्चित रूप से सर्वाधिक प्रेरक सिद्ध हो सकता है। वे राम-सेवा अर्थात सात्विक सेवा के शिखर पुरुष ही नहीं थे बल्कि अनंतआयामी व्यक्तित्व विकास के महाआकाश थे।

अखंड ब्रह्मचर्य और संयम की साधना से जो तेजस् और ओजस् उन्होंने अर्जित किया था, वह अवर्णनीय है। बालपन से ही वे सूर्य साधक बन गए थे। सूर्य को उन्होंने अपना गुरु स्वीकार किया था। उनकी दिनचर्या सूर्य की गति के साथ संचालित होती थी। आगे जाकर सौर-अध्ययन के कारण वे एक अच्छे खगोलविद् और ज्योतिषी भी बने। एक शिशु के रूप में वे ज्यादा ही चंचल तथा उधमी थे। किसी शीलाखंड पर गिरने से उनकी ठुड्डी (हनु) कट गई गई थी, जिससे उनका हनुमान नाम पड़ गया। एक जैन मान्यता के अनुसार वे एक ऐसी जाति और वंश में पैदा हुए थे, जिसके ध्वज में वानर की आकृति बनी रहती थी।

धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों की अनिवार्यता बताई गई है- बल, बुद्धि और विद्या। यदि इनमें से किसी एक गुण की भी कमी हो, तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता है। सबसे पहले तो साधना के लिए बल जरूरी है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता है। दूसरा, साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए। इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता है। तीसरा अनिवार्य गुण विद्या है। विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।

हनुमान जी के जीवन में इन तीनों गुणों का अद्भुत समन्वय मिलता है। इन्हीं गुणों के बल पर वे जीवन की प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं। रामकथा में हनुमान जी का चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है। प्रभु श्रीराम के आदर्शों को मूर्त रूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है किन्तु सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमान जी की शक्ति और विजय का कांड है। यह अतिसुंदर है, इसलिए सुंदरकांड नाम पड़ा। इस कांड में हनुमान जी का लंका प्रस्थान, लंका दहन और लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। इस सोपान के मुख्य घटनाक्रम हैं: हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी।

हनुमान जी का संवाद कौशल विलक्षण है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण अशोक वाटिका में जब वे पहली बार माता सीता से मिलते हैं, तब दिखाई देता है। यह कौशल आज के युवा उनसे सीख सकते हैं। वे अपनी बातचीत से न सिर्फ उन्हें भयमुक्त करते हैं, बल्कि उन्हें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि वे श्रीराम के ही दूत हैं:

इसी तरह समुद्र लाँघते वक्त देवताओं के कहने पर जब सुरसा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही, तो उन्होंने अतिशय विनम्रता का परिचय देते हुए उस राक्षसी का भी दिल जीत लिया। वह हनुमान जी का बुद्धि कौशल व विनम्रता देख दंग रह गई और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा कर दिया। यह प्रसंग सीख देता है कि केवल साम‌र्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है, विनम्रता से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।

महावीर हनुमान ने अपने जीवन में आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया। लंका में रावण के उपवन में हनुमान जी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रयोग किया। हनुमान जी चाहते तो वे इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे उसका महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया।

हनुमान जी के जीवन से हम शक्ति व साम‌र्थ्य के अवसर के अनुकूल उचित प्रदर्शन का गुण भी सीख सकते हैं। तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में लिखते हैं- ‘सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा।’ सीता माता के सामने उन्होंने स्वयं को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहाँ वह पुत्र की भूमिका में थे, लेकिन संहारक के रूप में वे राक्षसों के लिए काल बन गए।

अवसर के अनुसार स्वयं को ढाल लेने की हनुमान जी की प्रवृत्ति अद्भुत है। जिस वक्त लक्ष्मण रणभूमि में मूर्छित हो गए, उनके प्राणों की रक्षा के लिए वे पूरा पर्वत ही उठा लाए, क्योंकि वे संजीवनी बूटी नहीं पहचानते थे। अपने इस गुण के माध्यम से वे हमें तात्कालिक विषम स्थिति में विवेकानुसार निर्णय लेने की प्रेरणा देते हैं।

हनुमान जी हमें भावनाओं का संतुलन भी सिखाते हैं। उनका व्यक्तित्व आत्ममुग्धता से कोसों दूर है। सीता माँ का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुँचे हनुमान जी की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। जब श्रीराम ने उनसे पूछा- “हनुमान! त्रिभुवनविजयी रावण की लंका को तुमने कैसे जला दिया?” तब प्रत्युत्तर में हनुमानजी ने जो कहा, उससे भगवान राम भी हनुमान जी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए।

“सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।”

भारतीय-दर्शन में सेवाभाव को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह सेवाभाव ही हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करता है। अष्ट चिरंजीवियों में से एक महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं और उनके ऊपर ‘राम से अधिक राम के दास’ की उक्ति चरितार्थ होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- जब लोक पर कोई विपत्ति आती है, तब वह त्राण पाने के लिए मेरी अभ्यर्थना करता है, लेकिन जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारण के लिए पवनपुत्र का स्मरण करता हूँ। हनुमान जी के जीवन का एक ही मंत्र था:

जिस प्रकार हनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं, उसी प्रकार हम सभी को भारत माता का सेवक बनना होगा। आज यह समस्त संसार आशा भरी दृष्टि से हमारे भारतवर्ष की ओर देख रहा है। ऐसे में भारत जैसे युवा देश में युवाओं की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। हनुमान जी की भाँति ही हमें भी समाज के प्रति अपने दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना चाहिए। युवा शक्ति को हनुमान जी की पूजा से अधिक उनके चरित्र को आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिससे भारत को उच्चतम नैतिक मूल्यों वाले देश के साथ- साथ ‘कौशल युक्त’ भी बनाया जा सके।

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Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay is a Research Scholar in Hindi Literature, Department of Hindi, University of Calcutta. She obtained Graduation in Hindi (Hons) from Vidyasagar College for Women, University of Calcutta. She persuaded Masters in Hindi & M.Phil in Hindi from Department of Hindi, University of Calcutta. She holds a degree in French Language from School of Languages & Computer Education, Ramakrishna Mission Swami Vivekananda's Ancestral House & Cultural Centre. She had also obtained Post Graduation Diploma in Translation from IGNOU, Regional Centre, Bhubaneswar. She is associated with Vivekananda Kendra Kanyakumari & other nationalist organisations. She has been writing in several national dailies, anchored and conducted many Youth Oriented Leadership Development programs. She had delivered lectures at Kendriya Vidyalaya Sangathan, Ramakrishna Mission, Swacch Bharat Radio, Navi Mumbai, The Heritage Group of Instituitions and several colleges of University of Calcutta.

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