Wednesday, April 24, 2024
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सालासर बालाजी धाम: ‘इकलौते’ हनुमान जी, जिनकी है दाढ़ी-मूँछें, माता अंजनी को खुद से किया था दूर

पूरे भारत भर में (संभवतः) यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ हनुमान जी की दाढ़ी-मूँछों वाली प्रतिमा स्थापित है। हनुमान जी के कहने पर ही माता अंजनी, अपने पुत्र से कुछ दूरी पर विराजमान हुईं क्योंकि...

पूरे भारत में हनुमान जी के कई अनूठे मंदिर स्थापित हैं। ऑपइंडिया ने मंदिरों की श्रृंखला में एक ऐसे हनुमान मंदिर के बारे में आपको बताया था, जहाँ हनुमान जी की नारी स्वरूप में पूजा होती है। अब आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जहाँ दाढ़ी और मूँछों वाले हनुमान जी पूजे जाते हैं और संभवतः यह पूरे भारतवर्ष का इकलौता ऐसा मंदिर है। तो आइए आपको ले चलते हैं राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी धाम, जहाँ विराजमान हनुमान जी अपने भक्त को दिए हुए वचन को पूरा करने एक गाँव में खेत में प्रकट हुए थे।

मंदिर का इतिहास

सालासर बालाजी धाम का इतिहास 18वीं शताब्दी के मध्य का है। मोहनदास नाम के संत हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उन्हें वचन दिया कि जल्दी ही वो मूर्ति रूप में प्रकट होंगे। आखिर वह दिन आ गया। 1754 में नागौर जिले के आसोटा नामक गाँव में एक जाट अपने खेत में हल चला रहा था, तब उसके हल से कोई कठोर पत्थर जैसी वस्तु टकराई। उस जाट किसान ने जब धरती से उस वस्तु को निकाला तो वह कुछ और नहीं बल्कि हनुमान जी की अद्भुत प्रतिमा थी।

जिस दिन खेत में हनुमान जी प्रकट हुए, उसी रात उन्होंने आसोटा गाँव के एक ठाकुर को स्वप्न देकर आदेशित किया कि उन्हें सालासर धाम पहुँचाया जाए। इसी समय हनुमान जी ने अपने परम भक्त मोहनदास को भी सूचना दी कि उनकी प्रतिमा बैलगाड़ी में आ रही है और जब बैलगाड़ी सालासर धाम पहुँच जाए तो उसे छोड़ दिया जाए। बैलगाड़ी जहाँ भी स्वयं रुकेगी, वहाँ ही उनके मंदिर का निर्माण कराया जाए। हनुमान जी के आदेशानुसार जहाँ बैलगाड़ी खुद ही रुक गई, उसी स्थान पर वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया गया।

जब जाट किसान ने धरती से हनुमान जी की प्रतिमा को बाहर निकाला था, तब उसकी पत्नी चूरमा लेकर आई हुई थी। दोनों ने हनुमान जी को चूरमा का प्रसाद समर्पित किया, जिसके बाद से ही सालासर धाम में हनुमान जी को चूरमा का भोग लगाया जाता है। पूरे भारत भर में (संभवतः) यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ हनुमान जी की दाढ़ी-मूँछों वाली प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि हनुमान जी को उनके परम भक्त मोहनदास ने दाढ़ी-मूँछों में ही प्रकट होने का निवेदन किया था।

सालासर में हनुमान जी के निवास करने के बाद माता अंजनी भी सालासर धाम आईं। लेकिन दोनों ने साथ में निवास न करने का निर्णय लिया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि भक्तों को इस समस्या का सामना न करना पड़े कि पहले किसकी पूजा की जाए। कहा जाता है कि हनुमान जी के कहने पर ही माता अंजनी, अपने पुत्र से कुछ दूरी पर विराजमान हुईं। दरअसल इसके पीछे मान्यता है कि सालासर के हनुमान जी अपने भक्तों की सभी समस्याओं का निवारण करने के लिए प्रसिद्ध हुए।

ऐसे में उनके पास उन स्त्रियों का आगमन भी होने लगा, जिन्हें यौन अथवा संतान संबंधी समस्याएँ थीं। ऐसे में ब्रह्मचारी हनुमान जी ने माता अंजनी को इन समस्याओं के निवारण के लिए मंदिर से कुछ दूर पर विराजमान होने की प्रार्थना की, जिसे माता अंजनी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके बाद माता अंजनी पंडित पन्नालाल नाम के व्यक्ति की तपस्या स्थली पर विराजमान हुईं, जो माता के अनन्य भक्त थे।

मंदिर के विषय में कुछ अन्य जानकारियाँ

मंदिर में सन् 1754 में श्रावण शुक्ल नवमी के दिन हनुमान जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। मंदिर में ही मोहनदास महाराज की समाधि भी है, जहाँ मंदिर की स्थापना के समय से ही अखंड धूनी जल रही है। सालासर बालाजी धाम में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुँचते हैं, जो अपनी समस्याओं के निवारण के लिए हनुमान जी से आशीर्वाद माँगते हैं और मंदिर में नारियल बाँधते हैं। मंदिर में बाँधे गए नारियलों की संख्या लाखों में बताई जाती है।

मंदिर के संचालन का जिम्मा मोहनदास की बहन कान्ही बाई के वंशजों के पास है। वर्तमान में मंदिर के प्रबंधन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। यही कारण है कि मंदिर प्रबंधन, मंदिर के रखरखाव के साथ सामाजिक कार्यों और यात्रियों की व्यवस्थाओं में भी जुटा रहता है। मंदिर में मनाए जाने वाले त्यौहारों और यात्रा करने वालों भक्तों के लिए सुविधाओं का इंतजाम मंदिर की समिति ही करती है।

सालासर बालाजी धाम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हर्षोल्लास के साथ एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी तिथि को हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। इसके अलावा मंदिर में पितृपक्ष की त्रयोदशी को मोहनदास का श्राद्ध दिवस भी मनाया जाता है। हनुमान प्रकटोत्सव, शरद पूर्णिमा, श्रीरामनवमी और दीपावली भी यहाँ के प्रमुख त्यौहार हैं।

कैसे पहुँचें?

सालासर के बालाजी धाम का नजदीकी हवाईअड्डा राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित है, जो यहाँ से लगभग 185 किलोमीटर (किमी) दूर है। सालासर, चुरू जिले में स्थित है। चुरू जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 75 किमी है लेकिन मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ है, जो मंदिर से लगभग 24 किमी दूर है। इसके अलावा सालासर धाम से सीकर रेलवे स्टेशन की दूरी 57 किमी है।

सालासर, जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए राजस्थान राज्य परिवहन की बसें राज्य के कोने-कोने से उपलब्ध रहती हैं। इसके अलावा जयपुर, बीकानेर और पिलानी से सालासर पहुँचने के लिए परिवहन के अन्य साधन भी आसानी से उपलब्ध हैं।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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