उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में विस्तारीकरण का कार्य कई महीनों से चल रहा है। इसी दौरान मंगलवार (10 अगस्त 2021) को खुदाई के दौरान एक विशाल शिवलिंग और भगवान विष्णु की प्रतिमा मिली। इसके अलावा मंदिर के दक्षिणी भाग में जमीन से लगभग 4 मीटर नीचे एक प्राचीन दीवार भी मिली है, जो लगभग 2,100 साल पुरानी मानी जा रही है। हालाँकि, पुरातत्व विभाग की टीम द्वारा इस शिवलिंग की जाँच की जा रही है, जिसके बाद यहाँ स्थित प्राचीन मंदिर के बारे में रहस्य सुलझाया जा सकेगा।
विस्तारीकरण के कार्य में लगे मजदूरों ने शिवलिंग मिलने की जानकारी समिति को दी, जिसके बाद इसकी सूचना पुरातत्व विभाग को दी गई। बुधवार की सुबह उज्जैन पहुँचे पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने खुदाई में मिली प्रतिमाओं का अध्ययन किया। पुरातत्व अधिकारी ध्रुवेंद्र जोधा ने शिवलिंग के बारे में बताया कि यह शिवलिंग लगभग 5 फुट का है। यह जितना जमीन के ऊपर है उतना ही जमीन के अंदर भी है।
जोधा के अनुसार, 9वीं-10वीं शताब्दी का यह जलाधारी शिवलिंग परमारकालीन है। इसके अलावा शिवलिंग के आसपास जो ईंटें दिखाई दे रही हैं, वे गुप्तकालीन यानी 5वीं शताब्दी की बताई जा रही हैं। इसके साथ ही यहाँ पर 10वीं शताब्दी की एक चतुर्भुजी भगवान विष्णु की प्रतिमा भी मिली है, जो स्थानक मुद्रा में है।
महाकाल मंदिर के विस्तारीकरण के कार्य के दौरान मंदिर के उत्तरी हिस्से में 11वीं-12वीं शताब्दी का मंदिर जमीन के नीचे दबा हुआ है, जिसमें स्तम्भ खंड, शिखर के भांग, रथ का भांग, भरवाई कीचक ये सब शामिल हैं। इसके अलावा महाकाल मंदिर के दक्षिणी भाग में जमीन से 4 मीटर नीचे एक प्राचीन दीवार मिली है, जिसकी आयु लगभग 2,100 वर्ष मानी जा रही है। मंदिर की वास्तुकला और कलाकारी काफी सुंदर बताई जा रही है। हालाँकि, मंदिर के भूमिगत होने के विषय में फिलहाल कोई जानकारी नहीं मिली है।
कुछ दिनों पहले यहाँ मानव कंकाल भी मिले थे। विस्तारीकरण कार्य में चल रही खुदाई के दौरान यहाँ मंदिर के अवशेषों के साथ मानव हड्डियाँ और जानवरों की हड्डियाँ भी मिली थीं। पुरातत्व एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब मंदिरों पर आक्रमण किया जा रहा था, उसी समय के ये मानव कंकाल हो सकते हैं। इन कंकालों के अध्ययन से यह पता चल पाएगा कि ये कंकाल मुगलकालीन इस्लामिक आक्रमण के हैं या उनसे पहले आए मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के समय के।
हालाँकि, अधिक संभावना मुगलकालीन की ही जताई जा रही है, जब मुगल कट्टरपंथियों ने आक्रमण करके न केवल मंदिरों में लूटपाट और उनका विध्वंस किया था, बल्कि मंदिर के भक्तों और साधुओं का बड़े पैमाने पर नरसंहार भी किया था।