Sunday, November 17, 2024
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यह ‘डर’ अच्छा है आमिर खान, बॉलीवुड की हिंदू घृणा-राष्ट्र विरोधी एजेंडे की कमाई है ‘लाल सिंह चड्ढा’ की दुर्गति: खुद की लगाई आग में जल रहा ‘उर्दूवुड’

असल में लोगों का गुस्सा आमिर खान या उनकी फिल्म से नहीं है। किसी एक सितारे या मूवी से नहीं, बल्कि पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से है। किस तरह से इस इंडस्ट्री ने हिन्दू संस्कृति को बदनाम किया, इससे है।

सोशल मीडिया पर आमिर खान और करीना कपूर की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के बहिष्कार की अपील की जा रही है। बॉयकॉट के इस अभियान के लिए लोगों के पास वाजिब कारण हैं। इसमें सबसे प्रमुख है बॉलीवुड की हिन्दू घृणा। जिस तरह से बॉलीवुड ने हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाने से लेकर ब्राह्मणों को गुंडे और जिक्र के रूप में पेश किया, उससे लोग नाराज हैं। दशकों से चला आ रहा प्रोपेगंडा उनकी समझ में आ गया है।

सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के बाद जिस तरह बॉलीवुड में ड्रग्स के जाल का खुलासा हुआ और जिस तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आईं, उसने भी लोगों के सामने इसकी सच्चाई रखी। इस्लाम को अच्छा दिखाने से लेकर हिन्दू धर्म को बदनाम करने तक, ऐसे अनगिनत दृश्य लोगों के ध्यान में आए। नसीरुद्दीन शाह जैसों के हिन्दू विरोधी बयान हों या शाहरुख़ खान द्वारा असहिष्णुता बढ़ने की बातें करना, लोगों को बॉलीवुड का एजेंडा समझ आने लगा।

आमिर खान का कहना है कि कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें इस देश से प्यार नहीं है। ‘लाल सिंह चड्ढा’ के बहिष्कार के लिए सोशल मीडिया में चल रहे अभियान ने शायद उन्हें डरा दिया है, इसीलिए वो अब फिल्म के साथ कई लोगों के इमोशंस जुड़े होने की दुहाई देते हुए कह रहे हैं कि इसमें बहुत लोगों की मेहनत लगी होती है, सिर्फ एक अभिनेता की नहीं। उन्होंने कहा कि फिल्म देखने के बाद इसे पसंद या नापसंद करने का अधिकार लोगों को है।

आमिर खान को पता होना चाहिए कि फिर किसी भी फिल्म का ट्रेलर क्यों रिलीज किया जाता है। ट्रेलर देख कर लोग एक अंदाज़ा लगाते हैं कि फिल्म कैसी होगी और हॉलीवुड क्लासिक ‘फॉरेस्ट गम्प’ की रीमेक ‘लाल सिंह चड्ढा’ उन्हें अच्छी नहीं लग रही है तो उन्हें बोलने का पूरा अधिकार है। लोगों को फिल्म बिना देखे भी अंदाज़ा लगाने का अधिकार है कि ये अच्छी होगी या बुरी, इसीलिए तो फिल्म से पहले उसके ट्रेलर और गाने रिलीज किए जाते हैं।

आमिर खान को अब बहिष्कार के अभियान से दुःख हो रहा है। उनका कहना है कि ये चीजें उन्हें हर्ट कर रही हैं। उन्होंने इस सोच को गलत बताया कि उन्हें इस मुल्क से प्यार नहीं है। साथ ही कहा कि उन्हें इस देश और यहाँ के लोगों से प्यार है। वैसे फिल्म की रिलीज से पहले इस तरह के प्यार का उमड़ना स्वाभाविक है। उन्होंने लोगों से गुजारिश की है कि वो थिएटर में जाकर ‘लाल सिंह चड्ढा’ देखें, इसका बॉयकॉट न करें। उन्होंने कहा कि OTT से अच्छा सिनेमाघरों में जाकर लोग इस फिल्म को देखें।

आमिर खान इससे पहले किस तरह के बयान दे चुके हैं और कैसी हरकतें कर चुके हैं, ये भी बताना आवश्यक है। उन्होंने ही तो कहा था कि उनकी पत्नी किरण राव को इस देश में डर लगने लगा है। अब उनका और किरण राव का तलाक हो चुका है। अब आमिर खान इससे नाराज़ हैं कि लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं कि उन्हें देश से प्यार नहीं। देश में जिसे डर लगता हो, वो देश से कैसे प्यार कर सकता है? आमिर खान ने अपने उस बयान को बार-बार सही ठहराया।

इसी तरह आप दिसंबर 2014 में आई फिल्म ‘PK’ को ले लीजिए। आमिर खान की इस फिल्म में किस तरह भगवान शिव का मजाक बनाया गया था, ये हम सबने देखा। भगवान शिव बने एक व्यक्ति को बाथरूम में दिखाया गया और आमिर खान उसका पीछा करते हैं। उसे भागते हुए मजाकिया ढंग से पेश किया गया। कहीं वो कुर्सियों के नीचे जाकर छिप रहा होता है तो कहीं त्रिशूल से अजीब हरकतें कर रहा होता है। इस दृश्य का आशय क्या था भला?

‘PK’ में क्या नहीं था भला? एक हिन्दू लड़की का सरफराज नाम के मुस्लिम लड़के से प्यार करना। ‘सरफराज’ कभी धोखा नहीं दे सकता – ये नैरेटिव गढ़ा गया। इसके बाद एक हिन्दू संत का अपमान। हिन्दू संत को मक्कार और समाज विरोधी दिखाया गया। पूजा-पाठ करने वाले हिन्दुओं को बेवकूफ दिखाया गया। भगवान की मूर्ति किसी काम नहीं आती, ये बताया गया। लेकिन कहीं भी इस्लाम या इसमें जो पैगंबर या गॉड हैं, उन्हें लेकर कुछ नहीं कहा गया।

देश में हिन्दुओं के बलबूते सुपरस्टार बने आमिर खान जब बदले में उन्हीं हिन्दुओं को ‘PK’ जैसी फिल्म देते हैं तो क्या उनकी आलोचना न हो? असल में लोगों का गुस्सा आमिर खान या उनकी फिल्म से नहीं है। किसी एक सितारे या मूवी से नहीं, बल्कि पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से है। किस तरह से इस इंडस्ट्री ने हिन्दू संस्कृति को बदनाम किया, इससे है। लोगों को दिक्कत है कि फिल्मों में आतंकियों के महिमामंडन से लेकर अपराधियों तक को नायक की तरह क्यों पेश किया जाता है?

आमिर खान ने भारत विरोधी तुर्की में जाकर किस तरह वहाँ के राष्ट्रपति से मुलाकात की और वहाँ के पर्यटन को प्रमोट किया, इससे भी उनके अंतरराष्ट्रीय इस्लामी एजेंडे को समझा जा सकता है। पाकिस्तान का यार तुर्की अक्सर कश्मीर राग अलापता है और भारत के मुस्लिमों को भड़काता है। तुर्की की प्रथम महिला एमीन एर्दोगन से आमिर खान 15 अगस्त, 2020 को मिले थे। ‘लाल सिंह चड्ढा’ की शूटिंग वहाँ हुई। आमिर खान की पूर्व पत्नी के संगठन के पाँव वहाँ जमाने को लेकर बातें हुईं।

ऊपर से इनका अहंकार, जो बार-बार सामने आता है। फिल्म की रिलीज से पहले भले ही इनके सुर बदले-बदले लग रहे हों, लेकिन याद कीजिए बरखा दत्त से बात करते हुए करीना कपूर ने क्या कहा था। वही करीना कपूर, जो ‘लाल सिंह चड्ढा’ की मुख्य अभिनेत्री हैं। उन्होंने कहा था, “वही लोग जो हम पर उँगलियाँ उठा रहे हैं, वही नेपोटिज्म वाले स्टार पैदा कर रहे हैं। आप जा रहे हो ना फिल्म देखने? मत जाओ। किसी ने आप पर दबाव नहीं डाला।”

जब दर्शक इनकी फिल्म देखते हैं तो वो उनके लिए सही हैं, लेकिन जब वही दर्शक इनकी आलोचना करे तो वो उसे भला-बुरा कहने लगते हैं। हाल ही में संजय दत्त ने ‘शमशेरा’ के फ्लॉप होने के बाद ऐसा ही किया। ऑडिएंस पर ही ठीकरा फोड़ दिया। फिल्म में उन्हें क्रूर बनाने के लिए त्रिपुण्ड तिलक और शिखा वाला लुक दिया गया था। साथ ही क्रूरता वाले दृश्यों में बैकग्राउंड में संस्कृत श्लोक बजते हैं। ऊपर से जनजातीय समाज बनाम सवर्ण वाली जातिवादी लड़ाई को बढ़ावा दिया गया है। इन सबके बावजूद ये चाहते हैं कि लोग इस फिल्म को देखें?

अगर ये नहीं सुधरेंगे तो जनता इन्हें इनकी औकात बताती रहेगी। दक्षिण भारत की डब फिल्मों का कारोबार कई गुना बढ़ता चला जाएगा और बॉलीवुड का नामोनिशान मिट जाएगा। देश के आम लोगों ने ही उन्हें स्टार बनाया और सब वही उनसे नाराज़ हैं, तो गलत जनता नहीं बल्कि ये स्टार हैं। ये इंडस्ट्री गलत है। तभी उन्हें सफाई देनी पड़ रही है बार-बार। तभी इस इंडस्ट्री को ‘ड्रगीवुड, बुलीवुड और उर्दूवुड’ कहा जा रहा है। कट्टर इस्लामी एजेंडे को हवा देना और नए कलाकारों को किनारे कर स्टार किड्स को आगे बढ़ाने वाली इस इंडस्ट्री को क्या सुधार की ज़रूरत नहीं?

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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