Friday, May 3, 2024
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सेक्स और हिन्दू धर्म का मजाक – बॉलीवुड के हर कंटेंट में यही मसाला: ‘हिप्स एन्ड बूब्स’ से लेकर ‘बिग बॉस’ में चुम्मा-चाटी तक, भारतीय संस्कृति से दूर भागती है इंडस्ट्री

TRP और व्यूज की चाहत में 'बिग बॉस OTT' लाया गया और फिर इसमें भी वही मसाला परोसा गया - चुम्मा वाला। लिपलॉक और सेक्स सीन के नाम पर अब बॉलीवुड की फिल्मों का प्रमोशन होने लगा है। कोई कामधाम करने वाले हीरो को लाखों की गाड़ियों में चलते हुए और एन्जॉय करते हुए दिखाया जाता है - क्या वास्तविकता में ऐसा संभव है?

आम लोगों को ज्ञान देने के मामले में भारत की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे बॉलीवुड भी कहा जाता है – वो सबसे आगे हैं। लेकिन, जब उदाहरण सेट करने की बात आती है तो वो इसके उलट काम करते हैं। जैसे, आपको आम तौर पर बॉलीवुड की अभिनेत्रियाँ महिलाओं के बारे में बात करती हुई मिल जाएँगी और फेमिनिज्म का बीड़ा उठाए कई फ़िल्मी हस्तियाँ मिल जाएँगी। लेकिन, ये वही लोग हैं जिनके गिरोह ने हमेशा से फिल्मों के जरिए महिलाओं एक उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं दिखाया गया है।

महिलाओं के बेहूदा चित्रण में बॉलीवुड सबसे आगे रहा है। आप बॉलीवुड के गानों को ही उठा लीजिए। आजकल गानों के बोल और संगीत से ज्यादा चर्चा इस बात की रहती है कि अभिनेत्री को इसमें कितने कम कपड़े पहने हुए दिखाए जाएँगे। अभिनय और कला के ज़्यादा चर्चा इस बात की रहती है कि किस अभिनेत्री ने बिकनी में इंस्टाग्राम पर तस्वीर अपलोड की है। ‘पठान’ फिल्म को ही ले लीजिए, जानबूझकर दीपिका पादुकोण को भगवा बिकनी में दिखाया गया और इस पर कंट्रोवर्सी पैदा की गई।

बॉलीवुड में लंबे समय तक काम करने वाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के एक बयान को देख लीजिए। ‘मिस वर्ल्ड’ रह चुकीं प्रियंका चोपड़ा अमेरिका में गायक निक जोनास के शादी के बाद वहीं रहती हैं और हॉलीवुड में भी सक्रिय हैं। प्रियंका चोपड़ा का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमें वो कहती दिख रही हैं कि बॉलीवुड फ़िल्में केवल ‘हिप्स और बूब्स (जाँघों और स्तन)’ तक ही सिमटी हुई हैं। ये वीडियो एमी अवॉर्ड्स 2016 का है। वीडियो में प्रियंका चोपड़ा डांस करते हुए बताती हैं कि कैसे बॉलीवुड में सिर्फ ‘Hips & Boobs’ चलता है।

इसके बाद कुछ बॉलीवुड के फैंस प्रियंका चोपड़ा की आलोचना करने लगे और कहने लगे कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के साथ कई दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका मजाक बनाया जाए। कोई कुछ फिल्मों के नाम गिनने लगा तो किसी ने कह दिया कि प्रियंका चोपड़ा ने भारतीय क्लासिक नृत्य के बारे में नहीं सुना है। कुछ ने प्रियंका चोपड़ा पर व्यक्तिगत हमला करते हुए उन्हें ही फेक बता दिया और उनके मेकअप और व्यवहार पर सवाल उठा दिए

जबकि ज़रूरत ये है कि बॉलीवुड को हम आत्ममंथन करने के लिए मजबूर करें। कितनी बॉलीवुड फिल्मों में आपने भारत के विभिन्न इलाकों के लोक-नृत्यों की प्रस्तुति देखी है? आंध्र प्रदेश की कुचिपुड़ी, असम का बीहू, बिहार का बिदेसिया, हरियाणा का झूमर, हिमचाल प्रदेश का झोरा, जम्मू कश्मीर का रउफ, कर्नाटक का यक्षगान, केरल की कथकली, महाराष्ट्र की लावणी, ओडिशा का गोतिपुआ, बंगाल का लाठी, राजस्थान का घूमर, तमिलनाडु का भरतनाट्यम, उत्तर प्रदेश की कजरी, उत्तराखंड का भोटिया, मध्य प्रदेश का जवारा, छत्तीसगढ़ का गौर मारिया, गोवा का देक्खनी, झारखंड का सरहुल, अरुणाचल प्रदेश का बुइया, मणिपुर का डोल चोलम, मिजोरम का छेरव, नागालैंड का रेंगमा, त्रिपुरा का होजागिरी, सिक्किम का छाम और लक्षद्वीप का लावा – कितनी फिल्मों में ऐसे नृत्य आपको देखने मिलते हैं?

बिहार के अलग-अलग प्रांतों में एक नहीं बल्कि दर्जन भर लोकनृत्य आपको मिल जाएँगी लेकिन कभी बॉलीवुड ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की कोशिश नहीं की। भारत की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री के रूप में लंबे समय तक काबिज रहने के बावजूद बॉलीवुड ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। हाँ, गुजरात का गरबा और पंजाब का भांगड़ा ज़रूर दिख जाता है लेकिन इसे भी गलत तरीके से पेश किया जाता रहा है। अगर बॉलीवुड ने इन परंपरागत लोकनृत्यों को गंभीरता से लिया होता तो इनमें से अधिकतर आज विप्लुत होने की कगार पर नहीं होती।

इसके उलट बॉलीवुड ने क्या चुना? जो पश्चिमी फ़िल्में दिखा रही थीं, उसे ही बॉलीवुड ने आधुनिक मान कर उसकी नक़ल करनी शुरू कर दी। यानी, अमेरिका और यूरोप अपनी फिल्मों के जरिए अपनी स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देते रहे और भारत की मनोरंजन इंडस्ट्री ने भी उनकी ही संस्कृति को बढ़ावा देने का बीड़ा उठा लिया। भारतीय वाद्ययंत्रों का प्रयोग कम होता चला गया। विदेश में गाने फिल्माए जाने लगे। कम कपड़ों में लड़कियों को उपभोग की वस्तु की तरह पेश किया जाने लगा। फिर यही सब चलता रहा।

भारतीय पहनावे और पोशाकों को बॉलीवुड ने अपनी फिल्मों में जरा भी स्थान नहीं दिया। हाल ही में आई ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ को ही देख लीजिए। करण जौहर की फिल्म और प्रेम कहानी के अलावा फैमिली ड्रामा के नाम पर इसे खूब प्रचारित किया गया, लेकिन ट्रेलर में क्या दिखा? वही, अपनी छाती उघाड़ कर चलता हुआ एक लड़का, हीरो के सिक्स पैक एब्स पर फोकस और रेन डांस। अब तो स्थिति ये हो गई है कि बॉलीवुड की हर वेब सीरीज गलियों और सेक्स के बिना पूरी ही नहीं होती।

इस संबंध में सलमान खान ने बड़ी-बड़ी बातें की थी और कहा था कि वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ हो। इसकी भी पोल खुल गई। TRP और व्यूज की चाहत में ‘बिग बॉस OTT’ लाया गया और फिर इसमें भी वही मसाला परोसा गया – चुम्मा वाला। लिपलॉक और सेक्स सीन के नाम पर अब बॉलीवुड की फिल्मों का प्रमोशन होने लगा है। कोई कामधाम करने वाले हीरो को लाखों की गाड़ियों में चलते हुए और एन्जॉय करते हुए दिखाया जाता है – क्या वास्तविकता में ऐसा संभव है?

JioCinema पर आ रहे ‘बिग बॉस ओटीटी’ के दूसरे सीजन का एक वीडियो खूब वायरल हुआ। इसमें लेबनीज एक्टर जैद हदीद ने भारतीय अभिनेत्री आकांक्षा पुरी को जम कर किस किया। बाद में सलमान खान ने ऑडिएंस से माफ़ी माँगते हुए कह दिया कि वो इस तरह के कंटेंट को अपने शो में समर्थन नहीं करते। आकांक्षा पुरी को शो से निकाला भी गया। लेकिन, इसके नाम पर ‘बिग बॉस ओटीटी’ को बेचने की कितनी कोशिश की गई ये तो सभी ने देखा।

आकांक्षा पुरी ने शो से निकलने के बाद कहा है कि वो तो बस अपना टास्क पूरा कर रही थीं और ये किस भी उसी टास्क का हिस्सा था, जिससे उनकी टीम को उस दिन जीत मिली। उन्होंने कहा कि वो तो टास्क पूरा करने के लिए पूजा भट्ट और साइरस ब्रोचा को किस करने के लिए भी तैयार थीं। वैसे ये आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि आजकल कई वेब सीरीज में ये आम बात हो गई है। ‘उल्लू’ एप के कंटेंट्स हो या हॉटस्टार पर ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’, लेस्बियन रोमांस नया नॉर्मल है।

आकांक्षा पुरी का कहना है कि जैद हदीद के साथ उनका किस 30 सेकेंड्स चलना था लेकिन बाद में वो बह गए और लगातार किस करने लगे। आकांक्षा पुरी ने सफाई दी है कि उनके मन में जैद हदीद के लिए कोई फीलिंग्स नहीं थीं, इसीलिए उन्होंने अपने होठों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था। इसके बाद जैद ने उन्हें ‘बैड किसर’ तक कह दिया। उन्होंने जैद पर दोष मढ़ते हुए कहा कि ये एक सिंपल सा टास्क था, लेकिन वो पूरे पैशन के साथ किस करने लगे।

शो से बाहर निकलने के बाद आकांक्षा को शादी, किस और हुकअप के लिए अलग-अलग विकल्प दिए और इंटरव्यू में उनकी राय माँगी गई तो उन्होंने सलमान खान से शादी की इच्छा जता दी। हुकअप के संबंध में उन्होंने कहा कि ये जितने ज्यादा लोगों से हो उतना अच्छा है। ऐसे ही लोग लाखों फॉलोवर्स लेकर इंस्टाग्राम पर युवाओं के आदर्श बनते हैं और युवा वही करते हैं, जो ये करते और कहते हैं। तभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की एक नई ब्रीड खड़ी हो गई हो जो आजकल ‘सक्सेस मन्त्र’ भी बाँटती है।

आजकल बॉलीवुड के विमर्श का वो समूह थोड़ा ऊपर आया है, जिसे अब तक दबा कर रखा गया था। इसी का परिणाम है कि हमें ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फ़िल्में देखने को मिलीं और ये ब्लॉकबस्टर हुईं। इन दोनों के अलावा भी इस्लामी धर्मांतरण और आतंकवाद की समस्या से लेकर भारतीय इतिहास और संस्कृति पर कई फ़िल्में बनीं। अंत में बॉलीवुड ने राष्ट्रवाद के युग के दोहन का भी निर्णय लिया और रामायण के नाम पर ‘आदिपुरुष’ परोस दी।

इसमें हनुमान जी से ‘जलेगी तेरे बाप की’ जैसे डायलॉग्स बुलवाए गए, माँ सीता के कपड़ों का ध्यान नहीं रखा गया और भगवान श्रीराम के व्यवहार को ही बदल दिया गया। मनोज मुंतशिर, जिन्होंने फिल्म के डायलॉग्स लिखे थे, ऐसे सवालों पर निर्देशक से पूछने की सलाह देने लगे। फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई। सैफ अली खान को रावण के रूप में दिखाया गया। पुष्पक विमान की जगह चमगादड़ ने ले ली और सोने की लंका डरावनी और काली हो गई। ये है इन लोगों के रिसर्च का स्तर।

ऐसे समय में जब हॉलीवुड में एक से बढ़ कर एक फ़िल्में बनती आई हैं, जिसने दुनिया भर की अलग-अलग समस्याओं को फिल्मों के जरिए उकेरा है – बॉलीवुड बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड पर ही अटका हुआ है। इनके लिए हर फिल्म लव स्टोरी है, लड़का-लड़की की कहानी है और सब कुछ इसी के इर्दगिर्द चलता है। एक लड़का और एक लड़की रोमांस करते हैं तो ब्रह्मास्त्र अपने नियम बदल लेता है – रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की फिल्म में यही दिखाया गया।

अगर उदाहरण देने की बात आए तो एक एक प्रोपेगंडा के बॉलीवुड में कई उदाहरण मिल जाएँगे। किस तरह ‘OMG’ फिल्म के जरिए हिन्दू धर्म को बदनाम किया गया, ये किसी से छिपा नहीं है। ‘पाताल लोक’ में एक पुजारी को गन्दी गालियाँ बकते हुए और मांस भक्षण करते हुए दिखाया गया। ‘तांडव’ में हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाया गया। ‘PK’ फिल्म में भगवान शिव का जो चित्रण हुआ, क्या दूसरे मजहबों के आराध्यों को उस तरह से प्रदर्शित करने की हिम्मत भी की जा सकती है?

आपको उस घटना के बारे में पढ़ना चाहिए, जब कैसे फिल्म निर्माता फराह खान, अभिनेत्री रबीना टंडन और कॉमेडियन भारती सिंह को सिर्फ इसीलिए वेटिकन सिटी के प्रतिनिधि बिशप के सामने उपस्थित होकर हस्तलिखित माफ़ी माँगनी पड़ी थी, क्योंकि उन्होंने बाइबिल के कुछ शब्दों का मजाक बना दिया था। यहाँ तो हर एक फिल्म में रामायण-महाभारत की कहानियों को ही गलत तरीके से एक्सप्लेन करने की कोशिश की जाती है और साथ ही उनका रेफरेंस भी गलत तरीकों से दिया जाता है।

आप सोचिए, आजकल के बच्चे रील्स बनाने के नाम पर कम से कम कपड़े पहन कर मोबाइल फोन के सामने अश्लील फ़िल्मी गानों पर ही नाच करते हुए क्यों दिखते हैं, वो स्थानीय लोकनृत्य या फिर लोकगीतों की प्रैक्टिस करते क्यों नहीं दिखते? क्योंकि बॉलीवुड ने उनके मन में बिठा दिया है कि कपड़े उतार कर अश्लील गानों पर डांस करना ही ‘कूल’ और ‘मॉडर्न’ है, बाकी सब तो पुरानी चीजें हैं जिन्हें हमें छोड़ देना है, वरना हम पुराने खयालातों के कहाएँगे।

हॉलीवुड फिल्मों को देखिए, कैसे वो पश्चिमी संस्कृति को लेकर दुनिया भर में जाते हैं और दुनिया के कई फिल्म इंडस्ट्रीज पर उनका प्रभाव है। ‘Apollo 13’ (1995) फिल्म के जरिए चाँद पर जाने की अमेरिकी प्रयास को दिखाया गया। ‘Dances With Wolves (1990)’ में अमेरिका के मूलनिवासियों के जीवन को दिखाया गया। ‘Do The Right Thing (1989)’ में स्ट्रीट पर रहने वाले लोगों का जीवन दिखा। ऐसी अनगिनत फ़िल्में हैं। लेकिन, भारत में ऐसा कुछ नहीं होता।

यहाँ अगर भारत की कहानी पर भी फिल्म बनाई जाती है तो प्रेरणा अमेरिका से ही लेकर आते हैं ये लोग। ‘आदिपुरुष’ में एवं को फर और बेल्ट पहनाया जाता है। वानर सेना को चिम्पांजी बना दिया जाता है। रावण के किरदार को डरावना बना दिया जाता है। रावण भारतीय वाद्ययंत्र नहीं बल्कि गिटार बजाता है। जब सब कुछ यहाँ की किताबों में वर्णित है, गाँव-गाँव में रामलीला होती है, तो ऐसे में प्रेरणा लेने के लिए ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ सीरीज में घुसना सही है क्या?

कुल मिला कर बात ये है कि बॉलीवुड फिल्मों की 2 ही रेसिपी होती है – अश्लीलता और हिन्दू धर्म का मजाक। कम कपड़ों में हीरोइनें और हिन्दू देवी-देवताओं का कॉमिक चित्रण। जब इस पर आवाज उठाई जाएगी, तो आपको या तो महिला विरोधी बता दिया जाएगा या फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी का विरोधी। माँ काली को सिगरेट फूँकने दिखाने और और भगवान शिव को त्रिशूल लेकर भागते हुए दिखाने वाले भला भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना क्या जानें?

बॉलीवुड जब हॉलीवुड से ही कंटेंट चुरा रहा है तो उसे ये भी सीखना पड़ेगा कि अपनी संस्कृति और परंपरा को बढ़ावा कैसे देते हैं। अपने देश की नीतियों, उपलब्धियों और सरकार के नैरेटिव को कैसे इस तरह आगे बढ़ाते हैं कि सामने वाले को पता तक नहीं चलता और वो उसका अनुसरण करने लगता है। ये ‘हिप्स-बूब्स’ और हिन्दू धर्म के अपमान से निकल कर बॉलीवुड को दिखाना पड़ेगा कि भारतीय परिधान, नृत्य और कलाएँ भी ‘कूल’ और ‘मॉडर्न’ हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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