Thursday, April 25, 2024
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रावण को सीता से ‘प्यार’, राम गलत कर के भी पूजे जाते हैं क्योंकि ‘भगवान’ थे: यही संदेश दे रही ‘रावण लीला’, अब रामायण का अपमान

ये फिल्म एक तरह से सिर्फ ये प्रस्तुत करना चाह रही है कि रावण एकदम सही था और राम ने सब कुछ गलत किया, लेकिन दुनिया में आज राम की पूजा होती है और रावण को जलाया जाता है तो इसका कारण सिर्फ यही है कि राम भगवान थे।

नकारात्मकता के कई वेश होते हैं। कई परतें होती हैं। कई हथकंडे होते हैं। दुष्टता और क्रूरता की एक खासियत ये होती है कि ये हमेशा कुछ मजबूत तर्कों का आवरण ओढ़ कर आती है। नतीजा ये होता है कि नकारात्मकता काफी लुभावनी हो जाती है और सत्य बेचारा अकेला पड़ा होता है। यही कारण है कि ‘रावण’ जैसे किरदारों का गुणगान करने वाले आज भी मिलते हैं। लोगों को अर्जुन नहीं, कर्ण में देवता दिखने लगता है। प्रतीक गाँधी की अगली फिल्म में कुछ यही सब है।

आपने हर्षद मेहता की कहानी पर बनी वेब सीरीज देखी होगी? हंसल मेहता ने इसका निर्देशन किया था। इसमें 90 के दशक में दुनिया का सबसे बड़ा बैंक फ्रॉड करने वाले हर्षल मेहता की खबर दिखाई गई थी, जिनकी असामयिक मौत के बाद कई किस्से चल पड़े थे। रंक से राजा तक की ये कहानी लोगों को पसंद आई। गुजरात के सूरत में पले-बढ़े अभिनेता प्रतीक गाँधी ने किरदार भी जीवंत कर दिया था।

प्रतीक गाँधी के पास सिनेमा के साथ-साथ थिएटर का भी अच्छा अनुभव है और यही चीज उन्हें किरदारों में घुसने में सहायक सिद्ध होती है। उनकी नई फिल्म ‘रावण लीला’ में भी रामायण के मंचन में वो रावण बने सीखते हैं और बड़ी ही संजीदगी से संवाद अदायगी करते हैं। मासूम से दिखने वाले प्रतीक गाँधी ही हैं ये, ऐसा लगता नहीं। फिल्म एक गाँव में उनकी ही प्रेम कहानी और इस नाटक के मंचन के इर्दगिर्द घूमती रहती है।

दशहरा का त्यौहार आने वाला है और इस दौरान गाँव-गाँव में रामलीला का मंचन होगा। हम जो रामायण पढ़ते-सुनते हैं, उसमें तुलसीदास के रामचरितमानस की छाप होती है। ठीक उसी तरह, जैसे दक्षिण में कदम्ब रामायण और बंगाल में कृत्तिवासी रामायण लोकप्रिय है। कृत्तिवासी ओझा की इस रचन पर ही कवि निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’ लिखी थी। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण वध से पहले माँ दुर्गा की आराधना की थी।

‘शिव तांडव’ की रचना का क्रेडिट सामान्यतः रावण को ही दिया जाता है और कहा जाता है कि वो एक बड़ा शिव भक्त था। संगीत व वेदों में उसे सिद्धहस्तता प्राप्त थी, अतः वो विद्वान भी था। लेकिन, एक स्त्री पर बुरी नजर डालने के कारण उसका अंत हुआ। इससे पहले भी वो कई स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार कर चुका था। यही कारण है कि स्वर्ग के देवताओं व ग्रहों तक को जीत लेने वाले रावण का अंत इस तरह से हुआ।

लेकिन, आजकल समस्या तब पैदा होने लगती है जब रावण को ‘महान’ दिखाने के चक्कर में भगवान श्रीराम के किरदार से खेल दिया जाता है और उन्हें नीचा दिखाया जाता है। इस फिल्म में भगवाधारियों को भी गुंडा ही प्रदर्शित किया गया है। ‘नाटक’ के नाम पर नया नैरेटिव देने के चक्कर में गाँवों-कस्बों की रामलीला को कहीं ये फ़िल्में बर्बाद न कर दें, यही डर है। इसमें कॉमेडी व रोमांस का तड़का डाल कर बॉलीवुड का फॉर्मूला तैयार कर लिया जाता है।

प्रतीक गाँधी की ‘रावण लीला’ का ट्रेलर

इन चीजों को अक्सर ‘आर्टिस्टिक लिबरटी’, अर्थात कला के आधार पर निर्देशक द्वारा ली गई स्वतंत्रता के रूप में दिखाया जाता है। लेकिन, जिस चीज से आस्था जुड़ी होती है लोगों की, उसे छूने से पहले तथ्यों को खँगाल लेना ज़रूरी है, अध्ययन आवश्यक है। ये काम आज के निर्माता-निर्देशक नहीं करते। फिल्म के ट्रेलर को देख कर सहज ही अंदाज़ा लग जाता है कि इसमें ‘रावण’ और ‘सीता’ की प्रेम कहानी दिखाई गई है।

अर्थात, रावण व सीता का किरदार निभाने वाले अभिनेता-अभिनेत्री अपने निजी जीवन में एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं। इसका असर यदा-कदा ‘रामलीला’ के मंचन के दौरान उनके दृश्यों पर भी पड़ता है। वैसे, ये ट्रेंड नया नहीं है। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और पंकज कपूर अभिनीत ‘जाने भी दो यारों’ के अंतिम दृश्य में भी रामायण व महाभारत का मजाक बनाया गया है। दूसरे मजहबों के साथ इसका एक प्रतिशत भी ‘लिबर्टी’ लेने पर इनके खिलाफ देश भर में ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगने लगेंगे।

निजी ज़िंदगी में रावण का किरदार निभाने वाला अभिनेता राम का पात्र अदा करने वाले से पूछता है कि तुमने भी तो सूर्पनखा का अपमान किया, नाक काटी (जो लक्ष्मण ने किया था), इसकी प्रतिक्रिया में रावण ने राम की स्त्री का अपमान किया और उसके ही परिजन ‘शहीद’ होते गए। सवाल ये है कि फिर भी दुनिया राम को सही क्यों मानती है? यहाँ ‘राम’ जवाब देते हैं – ‘क्योंकि मैं भगवान हूँ।’

यानी, ये फिल्म एक तरह से सिर्फ ये प्रस्तुत करना चाह रही है कि रावण एकदम सही था और राम ने सब कुछ गलत किया, लेकिन दुनिया में आज राम की पूजा होती है और रावण को जलाया जाता है तो इसका कारण सिर्फ यही है कि राम भगवान थे। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ है और 400 वर्ष पुरानी लड़ाई का अंत हुआ है, देश की राजनीति में भी राम मुद्दा बने हुए हैं, ऐसे में ये फिल्म संदिग्ध एहसास देती है।

प्रतीक गाँधी की फिल्म ‘रावण लीला’ का टीजर

इस फिल्म के ट्रेलर में राम और रावण का किरदार निभाने वाले अभिनेताओं को एक ही महिला पर फिदा होते हुए दिखाया गया है और वो है सीता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री। नाटक के रिहर्सल के समय सीता हरण का दृश्य फिल्माने के समय हँसी न आने वाले चुटकुले का भी प्रयोग किया गया है, जिसमें एक व्यक्ति कहता है – ‘तू लोटा लेकर जोर से बोलेगा – माते! घर में संडास है क्या? जोर की आई है।’

यानी, रामायण जैसे पवित्र ग्रन्थ व कथा का मंचन में भी संडास और मूत्रालयों को व्हाट्सएप्प चुटकुलों पर सवार कर के लाना एक मजबूरी है बॉलीवुड की हिन्दूफ़ोबिया को आगे बढ़ाने के लिए, वरना फिल्म कैसे चलेगी? आप सोचिए, क्या पैगंबर मुहम्मद या येशु मसीह की कहानियों में इस तरह की फूहड़ चीजें घुसने की हिमाकत कोई फ़िल्मकार कर सकता है? कभी नहीं। कुरान-बाइबिल के एक शब्द के भी अपमान की हिम्मत नहीं इनमें।

फिर रामायण ही क्यों? क्योंकि हिन्दू सहिष्णु हैं। ‘तांडव’ और ‘पाताल लोक’ जैसी वेब सीरीज में हिन्दू धर्म का जम कर मजाक बनाया जाता है। आमिर खान की ‘पीके’ में तो भगवान शिव को ही अपमानजनक अवस्था में दिखा दिया जाता है। अब रावण के महिमामंडन के चक्कर में ये दिखाया जा रहा है कि भगवान राम ने गलत कार्य किए और वो सिर्फ इसीलिए बच गए, क्योंकि वो भगवान थे। ये तो ट्रेलर है, 1 अक्टूबर को पूरी फिल्म आने के बाद ही पता चलेगा कि और क्या-क्या इसमें परोसा जा रहा है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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