Wednesday, April 24, 2024
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‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’: प्राचीन संस्कृत कॉलेज, सरस्वती मंदिर और जैन मंदिरों के खंडहर पर खड़ी है अजमेर की सबसे पुरानी मस्जिद

“अजमेर में अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद मंदिरों के विध्वंस का एक शुरुआती उदाहरण है। पृथ्वीराज की हार के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा देवी सरस्वती के मंदिर और एक विद्यापीठ को तोड़कर बनाया गया मस्जिद।”

भारतीय सभ्यता की समृद्ध संस्कृति को इस्लामी आक्रांताओं ने सदियों तक नष्ट किया। मुगलों के हाथों हुए अत्याचारों के सबसे पुराने उदाहरणों में से एक है ‘अढाई दिन का झोंपड़ा’ मस्जिद। जो कि राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है।

सैकड़ों पर्यटक यहाँ भ्रमण करने के लिए आते हैं, लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम इस स्ट्रक्टचर का इस्तेमाल नमाज पढ़ने के लिए करते हैं। यह जानने के लिए कि यह इस्लामी अत्याचारों का स्पष्ट प्रमाण कैसे है, इसके इतिहास को जानना जरूरी है।

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का इतिहास

आज आप जिसे ‘अढाई दिन का झोंपड़ा‘ मानते हैं, वो मूल रूप से विशालकाय संस्कृत महाविद्यालय (सरस्वती कंठभरन महाविद्यालय) हुआ करता था, जहाँ संस्कृत में ही विषय पढ़ाए जाते थे। यह ज्ञान और बुद्धि की हिंदू देवी माता सरस्वती को समर्पित मंदिर था। इस भवन को महाराजा विग्रहराज चतुर्थ ने अधिकृत किया था। वह शाकंभरी चाहमना या चौहान वंश के राजा थे।

कई दस्तावेजों के अनुसार, मूल इमारत चौकोर आकार की थी। इसके हर कोने पर एक मीनार थी। भवन के पश्चिम दिशा में माता सरस्वती का मंदिर था। 19वीं शताब्दी में, उस स्थान पर एक शिलालेख (स्टोन स्लैब) मिली थी जो 1153 ई. पूर्व की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि शिलालेख के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मूल भवन का निर्माण 1153 के आसपास हुआ था।

हालाँकि, कुछ स्थानीय जैन किंवदंतियों का कहना है कि इमारत सेठ वीरमदेव कला द्वारा 660 ई में अधिकृत किया गया था। यह एक जैन तीर्थ के रूप में बनाया गया था और पंच कल्याणक माना जाता था। उल्लेखनीय है कि इस स्थल में उस समय की जैन और हिंदू दोनों स्थापत्य कला के तत्व मौजूद हैं।

एक मस्जिद के रूप में परिवर्तित करना

कहानी के अनुसार, 1192 ई. में, मुहम्मद गोरी ने महाराजा पृथ्वीराज चौहान को हराकर अजमेर पर अधिकार कर लिया। उसने अपने गुलाम सेनापति कुतुब-उद-दीन-ऐबक को शहर में मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया। ऐसा कहा जाता है कि उसने ऐबक को 60 घंटे के भीतर मंदिर स्थल पर मस्जिद के एक नमाज सेक्शन का निर्माण करने का आदेश दिया था ताकि वह नमाज अदा कर सके। चूँकि, इसका निर्माण ढाई दिन में हुआ था, इसीलिए इसे ‘अढाई दिन का झोंपड़ा’ नाम दिया गया। हालाँकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ एक किंवदंती है। मस्जिद के निर्माण को पूरा करने में कई साल लग गए। उनके अनुसार, इसका नाम ढाई दिन के मेले से पड़ा है, जो हर साल मस्जिद में लगता है।

मस्जिद के केंद्रीय मीनार में एक शिलालेख है जिसमें इसके पूरा होने की तारीख जुमादा II 595 AH के रूप में उल्लेखित है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तारीख अप्रैल 1199 ई है। बाद में, कुतुब-उद-दीन-ऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने 1213 ई में मस्जिद को सुशोभित किया। उन्होंने मस्जिद में एक स्क्रीन वॉल जोड़ा। उत्तरी मीनार पर उसके नाम का तो वहीं दक्षिणी मीनार पर कंस्ट्रक्शन सुपरवाइजर अहमद इब्न मुहम्मद अल-अरिद के नाम का एक शिलालेख है।

फिलहाल, यह बताना आसान नहीं है कि मस्जिद का कौन सा हिस्सा मूल रूप से सरस्वती मंदिर और संस्कृत स्कूल था क्योंकि मस्जिद के निर्माण में लगभग 25-30 हिंदू एवं जैन मंदिरों के खंडहरों का इस्तेमाल किया गया था।

मस्जिद पर सीता राम गोयल की रिपोर्ट

प्रसिद्ध इतिहासकार सीता राम गोयल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेंपल: व्हाट हैपन्ड टू देम’ (‘Hindu Temples: What Happened To Them’) में मस्जिद का उल्लेख किया है। उन्होंने लेखक सैयद अहमद खान की पुस्तक ‘असर-उस-सनदीद’ का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि अजमेर की मस्जिद, यानी अढाई दिन का झोंपड़ा, हिंदू मंदिरों की सामग्री का उपयोग करके बनाया गया था।

मस्जिद पर अलेक्जेंडर कनिंघम की रिपोर्ट

अलेक्जेंडर कनिंघम को 1871 में ASI के महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने ‘चार रिपोर्ट्स मेड ड्यूरिंग द इयर्स, 1862-63-64-65’ में मस्जिद का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। कनिंघम ने उल्लेख किया कि स्थल का निरीक्षण करने पर, उन्होंने पाया कि यह कई हिंदू मंदिरों के खंडहरों से बनाया गया था। उन्होंने कहा, “इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ इसके निर्माण की आश्चर्यजनक गति को दिखाता है और यह केवल हिंदू मंदिरों के तैयार मुफ्त सामग्री के इस्तेमाल से ही संभव था।”

कनिंघम ने आगे रिपोर्ट में मस्जिद का दौरा करने वाले ब्रिटिश साम्राज्य के लेफ्टिनेंट-कर्नल जेम्स टॉड का हवाला दिया। टॉड ने कहा था कि पूरी इमारत मूल रूप से एक जैन मंदिर हो सकती है। हालाँकि, उन्होंने उन पर चार-हाथ वाले कई स्तंभ भी पाए जो स्वभाविक रूप से जैन के नहीं हो सकते थे। उन मूर्तियों के अलावा, देवी काली की एक आकृति थी।

उन्होंने आगे कहा, “कुल मिलाकर, 344 स्तंभ थे, लेकिन इनमें से दो ही मूल स्तंभ थे। हिंदू स्तंभों की वास्तविक संख्या 700 से कम नहीं हो सकती थी, जो 20 से 30 मंदिरों के खंडहर के बराबर है।

हिंदू मूर्तियों का ‘संरक्षण’

रिपोर्टों के अनुसार, 1990 के दशक तक, मस्जिद के अंदर कई प्राचीन हिंदू मूर्तियाँ बिखरी हुई थीं। 90 के दशक में, एएसआई ने उन्हें संरक्षित करने के लिए एक सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर दिया। मूर्तियों को कैसे संरक्षित किया गया, इसके बारे में हाल ही में एक ट्विटर यूजर ने बताया। उन्होंने हाल ही में इस जगह का दौरा किया था।

एक ट्वीट थ्रेड में, ट्विटर यूजर धार्मिक स्टांस ने परिसर के अंदर एक बंद कमरे की कुछ तस्वीरें क्लिक कीं। उन्होंने कहा, “ASI ने परिसर में कुछ कमरों को सील कर दिया है। उनके दरवाजों के दरारों में से मुझे जो कुछ दिखा, उसे आप भी जूम करके देखें।” ट्विटर यूजर द्वारा दिए गए फोटो और वीडियो उन कमरों के अंदर बंद प्राचीन मूर्तियों की दयनीय स्थिति को दिखाता है।

वीडियो और तस्वीरें मार्च 2022 में क्लिक की गईं हैं। तस्वीरों को जूम करने पर, हिंदू संस्कृति की मूर्तियाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। कमरे के पत्थरों में से एक को ASI द्वारा AJR5 AJP/92/99 के रूप में चिह्नित देखा जा सकता है।

अन्य नेटिजन्स द्वारा उल्लेख

2015 में, लोकप्रिय हैंडल ‘रिक्लेम टेंपल’ ने मस्जिद के बारे में पोस्ट किया और लिखा, “अढाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर का एक शानदार जैन मंदिर था, जब तक कि इस्लामिक आक्रमणकारी गोरी ने इसे मस्जिद में परिवर्तित नहीं किया।”

एक अन्य ट्विटर यूजर neutr0nium ने मस्जिद पर एक थ्रेड डाला। उन्होंने उल्लेख किया कि 18 वीं शताब्दी में मराठा राजा दौलत राव सिंधिया द्वारा एक मस्जिद में परिवर्तित होने और पुनर्निर्मित होने के बाद इसे लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया था। हालाँकि, यह एक मस्जिद बनी रही। 1947 में, एएसआई ने साइट पर कब्जा कर लिया।

उन्होंने उल्लेख किया कि साइट पर एएसआई द्वारा इसके इतिहास की व्याख्या करने वाला कोई सूचना बोर्ड नहीं लगाया गया है। उन्होंने कहा, “एएसआई बोर्ड सिर्फ यह बताता है कि यह कुतुबदीन द्वारा निर्मित एक मस्जिद है और अजमेर का सबसे पुराना स्मारक है।” यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह स्पष्ट होने के बावजूद कि पहले एक संस्कृत स्कूल और हिंदू एवं जैन मंदिर था, एएसआई साइट पर कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है। इसे सिर्फ एक मस्जिद बताया गया है।”

लेखक संजय दीक्षित ने लिखा, “अजमेर में अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद मंदिरों के विध्वंस का एक शुरुआती उदाहरण है। पृथ्वीराज की हार के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा देवी सरस्वती के मंदिर और एक विद्यापीठ को तोड़कर बनाया गया मस्जिद।”

मस्जिद बनाने के लिए हिंदू मंदिरों का विध्वंस

भारत में ऐसे हजारों स्थल हैं जहाँ मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों और अन्य मुस्लिम संरचनाओं का निर्माण किया गया। इन संरचनाओं का निर्माण या तो मंदिर की सामग्री से किया गया है या फिर यह मंदिर की साइट पर स्थित है। बाबरी विवादित ढाँचा (भव्य राम मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को सौंप दी गई), ज्ञानवापी विवादित ढाँचा (वाराणसी में विवादित संरचना), और शाही ईदगाह (कृष्ण मंदिर परिसर के अंदर मथुरा की विवादित संरचना) कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। इतिहासकार सीता राम गोयल ने अपनी पुस्तक हिंदू टेम्पल्स: व्हाट हैपन्ड टू देम में लगभग 1,800 ऐसे स्थलों का दस्तावेजीकरण किया है। पुस्तक के बारे में संक्षिप्त जानकारी यहाँ पढ़ी जा सकती है।

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Anurag
Anurag
B.Sc. Multimedia, a journalist by profession.

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