Tuesday, February 25, 2025
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मराठों ने दिखाया रौद्र रूप, मरते दम तक भागता रहा औरंगजेब: पराक्रम का वो इतिहास जो छत्रपति संभाजी को 40 दिन तक दी गई यातना और हत्या के बाद लिखा गया

महाराष्ट्र के लेखक बशीर कमरुद्दीन मोमिन ने अपनी पुस्तक 'भंगले स्वप्न महाराष्ट्राचे' में उल्लेख किया है कि अगस्त 1689 को सावन में संताजी ने अचानक तुलापुर पर हमला कर दिया। औरंगजेब एक बड़ी सेना के साथ तुलापुर में डेरा डाले हुए था। यह वही स्थान है, जहाँ संभाजी की निर्मम हत्या की गई थी। संताजी ने धनाजी को साथ लेकर मुट्ठी भर मराठों के साथ मिलकर औरंगजेब के शिविर पर हमला कर दिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी पर बनी फिल्म ‘छावा’ आज सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। फिल्म ने संभाजी के जीवन को जन-जन तक पहुँचाया है। देश भर में ऐसा माहौल है कि लोग भावुक होकर आँसू बहाते हुए सिनेमाघरों से निकल रहे हैं। छत्रपति संभाजी की यशस्वी ख्याति सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक स्थापित हो चुकी है। हालाँकि, देश का एक बड़ा वर्ग संभाजी की मृत्यु के बाद मराठों की बहादुरी से आज भी अनजान है।

‘हिंदवी स्वराज्य’ के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब और उसकी मुगल सेना जश्न मनाने में व्यस्त थी, क्योंकि दक्षिण पर विजय पाने का उसका सपना अब साकार हो रहा था। हालाँकि, उनके बेटे संभाजी ने मुगलों को इतना भयभीत कर दिया कि दक्षिण भारत पर विजयका उनका सपना पूरा नहीं हो सका। छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी मुग़ल बहुत खुश थे और दक्कन पर विजय पाने के लिए दृढ़ थे। हालाँकि, इस बार मराठा पराजित होकर भाग गए।

छत्रपति संभाजी के बलिदान से एकजुट हुए मराठा

छत्रपति संभाजी को औरंगजेब ने 40 दिनों तक भयानक यातनाएँ दीं और उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया, लेकिन उन्होंने अपना धर्म त्यागने के बजाय मृत्यु को चुना। छत्रपति संभाजी की नृशंस हत्या के बाद मराठा क्रोधित हो गए और एकजुट होने लगे। मराठा साम्राज्य के सभी मतभेद सुलझ चुके थे और केवल एक ही लक्ष्य बचा था – क्रूर इस्लामी शासक औरंगजेब का विनाश।

मराठा साम्राज्य में कई बहादुर योद्धा थे। संगमेश्वर के किले में जब छत्रपति संभाजी अपने मुट्ठी भर मराठा योद्धाओं के साथ औरंगजेब के सिपहसालार मुकर्रम खान की विशाल मुगल सेना के खिलाफ युद्ध कर रहे थे, तब छत्रपति के साथ एक अन्य मराठा योद्धा भी अपनी बहादुरी दिखा रहा था। उनका नाम माल्होजी घोरपड़े था। इन योद्धाओं ने मुगलों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।

छत्रपति राजाराम का राज्याभिषेक और संताजी की वीरता

घोरपड़े ने मराठा साम्राज्य के लिए एक जीवंत और स्वाभिमानी विरासत छोड़ी। वह जीवित विरासत थे माल्होजी के पुत्र संताजी घोरपड़े। संभाजी की हत्या के बाद औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने मराठा साम्राज्य की राजधानी रायगढ़ पर कब्जा कर लिया। इस दौरान उसने संभाजी की पत्नी यशुबाई और उनके बेटे को बंदी बना लिया। इसके बाद सन 1689 में संभाजी के छोटे भाई राजाराम छत्रपति बने।

संभाजी के राज्याभिषेक के बाद मुगलों की कमर तोड़ने की कवायद शुरू की गई। छत्रपति राजाराम के शासनकाल के दौरान संताजी को मराठा साम्राज्य का सेनापति घोषित किया गया। संताजी के साथ एक अन्य मराठा योद्धा भी था। उनका नाम धनाजी जाधव था। औरंगजेब और मुगल सेना को पूरा विश्वास था कि संभाजी की मृत्यु के बाद मराठों का मनोबल टूट जाएगा, लेकिन हुआ इसका उलटा।

मनोबल टूटने की बजाय मराठे अब औरंगजेब के खून के प्यासे हो चुके थे। ‘हर हर महादेव’ और ‘जय भवानी’ के उद्घोष से मुगल सेना काँप उठी। कहा जाता है कि मुगल, मराठा साम्राज्य के आसपास की नदियों में अपने घोड़ों को पानी पिलाने के लिए भी नहीं रुकते थे। धनाजी के साथ मिलकर संताजी ने मुगलों को लगभग 17 वर्षों तक भ्रम में रखा। उनका एकमात्र लक्ष्य औरंगजेब को ख़त्म करना था।

हिंदू स्वराज्य से मराठा साम्राज्य बना शक्तिशाली

छत्रपति संभाजी की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य में अराजकता फैल गई। पूरा साम्राज्य अस्त-व्यस्त हो गया। तब छत्रपति राजाराम ने संताजी को हिंदवी स्वराज बहाल करने का आदेश दिया। उस समय मराठों के पास मुगलों जितनी बड़ी सेना नहीं थी और ना ही धन था। उस समय सेनापति संताजी ने हिंदवी स्वराज्य को पुनर्जीवित किया और इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की।

औरंगजेब के शिविर पर हमला, जान बचाकर भागा

महाराष्ट्र के लेखक बशीर कमरुद्दीन मोमिन ने अपनी पुस्तक ‘भंगले स्वप्न महाराष्ट्राचे’ में उल्लेख किया है कि अगस्त 1689 को सावन में संताजी ने अचानक तुलापुर पर हमला कर दिया। औरंगजेब एक बड़ी सेना के साथ तुलापुर में डेरा डाले हुए था। यह वही स्थान है, जहाँ संभाजी की निर्मम हत्या की गई थी। संताजी ने धनाजी को साथ लेकर मुट्ठी भर मराठों के साथ मिलकर औरंगजेब के शिविर पर हमला कर दिया।

इस युद्ध का वर्णन करते हुए मुगल ‘इतिहासकार’ काफ़ी ख़ान (मोहम्मद हाशिम) लिखते हैं कि तुलापुर के युद्ध के बाद संताजी का डर मुगल सैनिकों में दहशत फैला रहा था। जो भी मुगल सैनिक संताजी के सामने आता, वह या तो मारा जाता था या उसे पकड़ लिया जाता था। स्थिति ऐसी थी कि संताजी का नाम सुनते ही मुगल सेना में भगदड़ मच जाती थी।

तुलापुर में मराठों के अचानक आक्रमण से मुगल जोर-जोर से चिल्लाने लगे, “हुजूर, मराठा आ रहे हैं!” एक ओर संताजी मुगल सेना का नाश कर रहे थे। वहीं, मुगल सेना के सैनिक औरंगजेब को बचाने के लिए पीछे-पीछे आ रहे थे। मराठे मुगल शिविर में गहराई तक घुस गए थे। उन्होंने इतने मुगलों का कत्लेआम किया कि औरंगजेब को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।

औरंगजेब तो बच गया, लेकिन उसने भी पूरी मुगल सल्तनत की नाक कटवा दी। कई इतिहासकारों का यह भी कहना है कि मराठा हमले के दौरान औरंगजेब अपनी बेटी के तंबू में भाग गया था। इसके बाद मराठों ने औरंगजेब के तम्बू पर रखे दो स्वर्ण कलशों को काट दिया और सिंहगढ़ की ओर चल पड़े। इस घटना के बाद मराठों ने रायगढ़ पर भी हमला किया।

इतियाद खान को हराने के बाद मराठा लगातार आगे बढ़ रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि मुगल सरदार जुल्फिकार भी रायगढ़ में रहता था। यह वही सरदार था जिसने छत्रपति संभाजी की पत्नी यशुबाई को कैद कर लिया था। मराठों ने जुल्फिकार की सेना को पराजित कर दिया और अपने साथ बहुमूल्य खजाने और पाँच हाथी लेकर पन्हाला पहुँच गए।

गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर मराठों ने मुगलों का मनोबल पूरी तरह तोड़कर रख दिया था। अब बारी थी मुकर्रम खान की, जिसने छल से छत्रपति संभाजी को कैद कर लिया था। मुकर्रम खान को औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोंकण प्रांत का गवर्नर नियुक्त किया था। दिसंबर 1689 में मराठों ने मुकर्रम खान की सेना को घेर लिया और मुगलों की लाशों का ढेर लगा दिया।

एक भीषण युद्ध में संताजी ने मुकर्रम खान का पीछा किया और उसे मार डाला। मुकर्रम की दुर्दशा देखकर मुगल सेना उसे लेकर जंगल में भाग गई, जहाँ मुकर्रम खान की तड़प-तड़प कर मौत हो गई। इस तरह मुकर्रम खान की हत्या करके मराठों ने छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या का बदला ले लिया। इस घटना ने मराठों का मनोबल और ऊँचा कर दिया।

महाराष्ट्र में हो गई औरंगजेब की मृत्यु

इन सब घटनाओं के बाद औरंगजेब भी डरकर भाग रहा था। वह सह्याद्रि की पहाड़ियों में छिप गया था। लगातार 27 वर्षों तक मराठों ने औरंगजेब को भागने पर मजबूर कर दिया था। आखिरकार मराठों के हाथों मुगलों की लगातार हार के दर्द से उबरकर औरंगजेब की महाराष्ट्र में मौत हो गई। ऐसा कहा जाता है कि उसकी मृत्यु महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुई थी।

गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलकर ‘छत्रपति संभाजीनगर’ कर दिया है। औरंगजेब का अंत सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे मुगल साम्राज्य का अंत था। मराठा साम्राज्य के वीर योद्धाओं ने मुगलों में इतना भय पैदा कर दिया था कि औरंगजेब अंत तक मराठों से भागकर अपनी जान बचाता रहा। दूसरी ओर, मराठे दिन-प्रतिदिन अधिक शक्तिशाली होते जा रहे थे।

संदर्भ:-

(ये खबर मूल रूप से गुजराती में राज्यगुरु भार्गव ने लिखी है. इस लिंक को क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं)

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