आज हम आपको भारत के एक ऐसे क्षेत्र के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक है। वो – दादरा एवं नगर हवेली, जो केंद्रशासित प्रदेश ‘दादरा एवं नगर हवेली और दमन और दीव’ का हिस्सा है। पहले ‘दादरा एवं नगर हवेली’ भी केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था, लेकिन फिर इसे और ‘दमन व दीव’ को जोड़ दिया गया। जनवरी 2020 में ये निर्णय औपचारिक रूप से लागू किया गया। इसकी आज़ादी में RSS की बड़ी भूमिका थी।
लेकिन, क्या आपको पता है कि दादर, नगर हवेली, दमन और दीव ये चारों के चारों कभी पुर्तगाल के कब्जे में हुआ करते थे? वही पुर्तगाल, जिससे गोवा को भी आज़ाद कराया गया था। भारत में व्यापार के लिए आई यूरोपीय ताकतों ने यहाँ के अलग-अलग इलाकों में अपना अधिपत्य जमा लिया था। इसमें ब्रिटिश, फ्रेंच और पुर्तगीज प्रमुख थे। महाराष्ट्र और गुजरात के बीच स्थिति इस क्षेत्र में गुजरती और मराठी ही प्रमुख भाषा है।
आज हम आपको बताएँगे कि कैसे ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)’ ने ‘दादरा एवं नगर हवेली’ को पुर्तगाल से स्वतंत्र कराने में बड़ी भूमिका निभाई। ‘दादरा एवं नगर हवेली’ देश के उन क्षेत्रों में से था, जिसे 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता नहीं नसीब हुई थी। पुर्तगाल इस क्षेत्र पर तब तक शासन करता था, जब तक इसकी स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र विद्रोह नहीं हुआ। फिर यहाँ के सबसे बड़े शहर व मुख्यालय में 2 अगस्त, 1954 को तिरंगा लहराया।
दादरा एवं नगर हवेली का भूगोल
किसी इलाके के इतिहास को समझने से पहले वहाँ के भूगोल को समझना आवश्यक है। आज सिलवासा कई विनिर्माण कंपनियों का हब बन रहा है, जिन्होंने अपने-अपने यूनिट्स वहाँ लगाए हैं। पश्चिमी भारत में स्थित ‘दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव’ कुल 4 जिलों से मिल कर बना है। ये इलाके बॉम्बे हाईकोर्ट की ज्यूरिडिक्शन में आते हैं। नक्शा देखने पर आपको ये इलाके गुजरात का ही हिस्सा प्रतीत होंगे।
भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर स्थित ये क्षेत्र महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर स्थित है। ये एक पहाड़ी इलाका है, खासकर इसके उत्तर-पूर्वी और पूर्वी क्षेत्र। मुख्य रूप से ये ग्रामीण क्षेत्र है, जहाँ 62% से भी अधिक आदिवासी निवास करते हैं। लेकिन, पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल्स व रिसॉर्ट्स की कमी नहीं है। सह्याद्रि की सुंदर पहाड़ियाँ और दमन गंगा नंदी व इसकी तीन सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में चार चाँद लगाती हैं।
ढोडिया, कोकणा, वारली, कोली, काठोडी, नइका और डुबला इस क्षेत्र में निवास करने वाले प्रमुख समूह हैं। 11 अगस्त, 1961 को इसे औपचारिक रूप से भारत के एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अंगीकार किया गया था। इस प्रदेश का 40% हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ है, जो इसे प्रकृति के और नजदीक लाता है। गर्मी के मौसम में यहाँ पारा उतना ज्यादा नहीं जाता, लेकिन समुद्र के किनारे होने के कारण नमी ज़रूर होती है।
अगर आपको वन्यजीव पसंद हैं और आप जंगलों में पर्यटन पसंद करते हैं तो ‘वसोना लायन सफारी’ और ‘सतमालिया हिरन अभ्यारण्य’ आपके लिए एक अच्छा चुनाव हो सकता है। साथ ही आप कौंचा के ‘हिमयवान हेल्थ रिसोर्ट’ में जाकर प्रकृति के साथ नजदीकी का लाभ उठा सकते हैं। अगर आप इतिहास प्रेमी हैं तो सिलवासा के ट्राइबल म्यूजियम एक अच्छी जगह है। नक्षत्र गार्डन और दुधानी का एक्वासीरीन टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स भी पर्यटकों के लिए पसंदीदा जगह है।
दादरा एवं नगर हवेली की आज़ादी और उसमें RSS की भूमिका
दादरा एवं नगर हवेली में जो सशस्त्र विद्रोह हुआ, उसी आंदोलन के क्रांतिकारियों ने इसे भारत का हिस्सा बनना चुना। उन्होंने इन द्वीपों का भारत में विलय करने की चाहत जताई थी। हालाँकि, पुर्तगाल इसके बावजूद भी इसे छोड़ने से इनकार कर रहा था और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में लग गया था। इसीलिए, भारतीय गणराज्य में औपचारिक रूप से इसका विलय होने में ज़्यादा समय लग गया।
पुर्तगाल ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के दावे को ठुकरा दिया था और अपने हक़ में पैरवी की थी। गोवा और दादरा एवं नगर हवेली की स्वतंत्रता में अंतर ये है कि इसकी आज़ादी के लिए भारतीय सेना को प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ये भी आपको जानना चाहिए कि दादरा एवं नगर हवेली में स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाने वाले और क्रांति करने वाले अधिकतर RSS के ही स्वयंसेवक थे।
दादरा (479 स्क्वायर किलोमीटर) में पुर्तगालियों ने 1783 में कब्ज़ा किया था और इसके दो साल बाद ही उसने नगर हवेली (8 स्क्वायर किलोमीटर) को भी अपना गुलाम बना लिया। 42,000 की जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में 72 गाँव थे। इनमें से अधिकतर वारली जनजाति के लोग थे। तब धरमपुर के राजा का इस क्षेत्र में शासन हुआ करता था। पुर्तगाली कब्जे के बाद दोनों पक्षों में काफी बार संघर्ष हुआ।
जब गोवा में 1930 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन ने जोर पकड़ी तो उसके बाद दादरा एवं नगर हवेली में भी लोगों ने आज़ादी के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। 2 अगस्त, 1954 को सिलवासा में ‘आज़ाद गोमांतक पार्टी’ ने कुछ अन्य संगठनों के साथ मिल कर तिरंगा झंडा फहराया। इसमें RSS के 200 प्रमुख सदस्य थे। हालाँकि, इनमें से अब बहुत कम ही ऐसे हैं जो आज भी जीवित हैं। लेकिन, इनका सम्मलेन होता रहता है।
RSS ले दिग्गज नेता और पत्रकार केआर मलकानी ने अपनी पुस्तक ‘The RSS Story’ में लिखा है कि किस तरह नाना काजरेकर और सुधीर फड़के के नेतृत्व में 200 RSS स्वयंसेवकों ने दादरा एवं नगर हवेली को आज़ाद कराया। इसके लिए उन्हें पुर्तगाल के 175 सैनिकों से भिड़ना पड़ा था, जो राइफल और स्टेंगनस से लैस थे। न सिर्फ दादरा एवं नगर हवेली, बल्कि गोवा की आज़ादी में भी RSS स्वयंसेवकों ने बड़ी भूमिका निभाई।
पुर्तगाल की सेना की फायरिंग में कई स्वयंसेवकों की जान चली गई थी और कई घायल भी हुए थे। पुणे में अगस्त 2011 में एक आयोजन भी हुआ था, जिसमें RSS के उन स्वयंसेवकों का सम्मान हुआ था। तब इस आंदोलन के 55 क्रांतिकारी जीवित थे। उन्हें बुला कर सम्मानित किया गया था और बलिदानियों को याद किया गया था। ‘दादरा एवं नगर हवेली मुक्ति संग्राम समिति’ ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था।
इतिहासकार बाबासाहब पुरंदरे भी उन क्रांतिकारियों में शामिल थे। अमित शाह ने भी 2019 में संसद की बहस के दौरान पुरंदरे के साथ-साथ सुधीर फड़के और सैनिक स्कूल के अधिकारी प्रभाकर कुलकर्णी का नाम लेते हुए कहा था कि इन्होंने दादरा एवं नगर हवेली की स्वतंत्रता में बड़ी भूमिका निभाई थी। तब तृणमूल सांसद सुगत रॉय ने इसके क्रेडिट नेहरू को देने की माँग की थी, जिस पर केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि कई हस्तियाँ इसमें शामिल थी, अकेले कोई शाह या नेहरू ने इसे आजाद नहीं कराया था।
अंत में आपको एक रोचक तथ्य से अवगत कराते हैं। क्या आप जानते हैं कि दादरा एवं नगर हवेली का भारत में विलय के लिए एक IAS अधिकारी को एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बनाना पड़ा था, ताकि वो विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर सके? पुर्तगाली आक्रांताओं से इसे औपचारिक रूप से आजाद कराने के लिए यही तरीका अपनाया गया था। संविधान के दसवें संशोधन के जरिए फिर इसे भारत का केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।
सबसे पहले तो दारद एवं नागर हेवली के गाँवों में बैठकें शुरू हुईं। जनजातीय समूहों को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त पानी ही थी। राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे राजनेताओं ने इस तरह के आंदोलनों को पूरा समर्थन व संरक्षण दिया। RSS ने जनजातीय समूह के नेताओं को भी इकट्ठा किया और आजादी की लड़ाई में उन्हें साथ लिया। 1954 में लता मंगेशकर ने भी क्रांतिकारियों के लिए एक कार्यक्रम किया था।
22 जुलाई, 1954 को ‘यूनाइटेड फ्रन्ट ऑफ गोअंस (UFG)’ ने दादरा पुलिस थाने पर हमला किया। एक सब-इन्स्पेक्टर इस लड़ाई में मारा गया। इसके अगले ही दिन इसे आजाद घोषित कर दिया गया। 28 जुलाई को पुर्तगाल के पुलिसकर्मियों ने आत्म-समर्पण कर दिया। इसके बाद एक-एक कर सभी गाँव भारत के पक्ष में गोलबंद होते चले गए और 2 अगस्त को सिलवासा में भी तिरंगा लहराया। 1954 से 1961 तक ये ‘स्वतंत्र दादरा एवं नगर हेवली का वरिष्ठ पंचायत’ के रूप में अस्तित्व में रहा।
पुर्तगाल इस मामले को लेकर ‘अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)’ में चला गया था। क्रांतिकारियों ने तब भारत से मदद माँगी और केंद्र सरकार ने IAS अधिकारी केजी बदलानी को वहाँ प्रशासक बना कर भेजा। ‘वरिष्ठ पंचायत’ पहले ही भारत में विलय को लेकर फैसला ले चुका था। उसने बदलानी को अपना प्रधानमंत्री चुना, जिसके बाद वो जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष हो गए। फिर उन्होंने 11 अगस्त, 1961 को विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए।
हालाँकि, कश्मीर में मिले धक्के के बाद जवाहरलाल नेहरू को तब तक समझ आ चुका था कि देशहित के मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र में दौड़ लगाने से कोई फायदा नहीं है, इसीलिए अनुच्छेद-370 की तरह कोई और प्रावधान अस्तित्व में आने से बच गया। इसी तरह सिक्किम भी आजादी के कई वर्षों बाद भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ था। नेहरू की गलती के कारण जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से पर अभी भी पाकिस्तान का अवैध कब्जा है।