Friday, March 29, 2024
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‘अंग्रेजों के वफादार सिख किसानों ने ही सिख क्रांतिकारियों को पकड़वाया’: उस वायसराय ने बताया था, जो बोस के हमले में बच निकला

उसने बताया था कि 1914-15 की ठंड के दौरान अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों और कनाडा से 7000 सिख पंजाब लौटे और स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार की 'ज्यादती' शुरू की, लेकिन जब अंग्रेजों की सरकार ने उनका दमन शुरू किया तो उनके सारे प्रयास विफल हो गए। आखिर ये कैसे संभव हुआ? लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग का उत्तर था - सिख किसानों की वजह से।

जब यहाँ अंग्रेजों का राज था, तब भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अगले वर्ष जन्मे लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग को नवंबर 1910 में भारत का गवर्नर जनरल बना कर भेजा गया था और वो अप्रैल 1916 तक इस पद पर रहा। अपना कार्यकाल पूरा कर वो वापस ब्रिटेन के केंट लौटा और वहीं शानों-शौकत की ज़िंदगी व्यतीत करते हुए अगस्त 1944 में 86 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। लेकिन, अगर रास बिहारी बोस सफल हो जाते तो वो दिसंबर 23, 1912 को ही मारा जाता, लेकिन एक हमले में बच जाने के कारण उसकी उम्र 32 वर्ष और बढ़ गई।

जब वो हाथी से जा रहा था, तब दिल्ली में ठण्ड के मौसम में बोस ने उस पर बम फेंका था। छाता लिए खड़ा उसका नौकर तो मारा गया, लेकिन लॉर्ड हार्डिंग बच निकला। उसके हाथ-पाँव में चोटें आईं और उसका कंधा फट गया। उसकी पत्नी भी इस हमले में बच निकली और हाथी व महावत को भी कुछ नहीं हुआ। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘दिल्ली कांस्पीरेसी केस’ के रूप में भी जाना जाता है।

मई 1916 में जब वो इंग्लैंड पहुँचा था तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने उसका इंटरव्यू लिया था, जिसमें उसने भारत में काम करने के दौरान अपने अनुभवों के बारे में बात की थी। इस इंटरव्यू से एक चीज साफ़ है कि जो भी अंग्रेजों का साथ देते थे या उनके कहे अनुसार आंदोलन चलाते थे, उन्हें वो बुद्धिजीवी होने का दर्जा दिया करते थे। रास बिहारी बोस ने ही INA (इंडियन नेशनल आर्मी) की स्थापना की थी और वो ‘ग़दर पार्टी’ में भी सक्रिय थे।

ग़दर की ये योजना तो सफल नहीं हो पाई क्योंकि विश्व युद्ध के समय जब अंग्रेजों के अधिकतर सैनिक देश से बाहर थे, तब भारतीय देशभक्त विभिन्न बटालियनों में शामिल होकर भारत को स्वतंत्र कराएँ, क्योंकि कई क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए थे। लेकिन, रास बिहार बोस ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसियों को चकमा देते हुए जापान भागने में कामयाब रहे। बाद में उन्होंने INA की बागडोर महान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी।

लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग मानता था कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या कम ही है, जो अंग्रेजों के साथ वफादार नहीं हैं। उसका कहना है कि 30 करोड़ की भारतीय जनसंख्या में कई धर्मों-समुदायं के लोग हैं और वो विभिन्न प्रकार की राजनीतिक शिक्षाओं और विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्रांतिकारियों के विषय में उसका कहना था कि ये लोग अराजक तत्व हैं जिनका उद्देश्य नई सत्ता की स्थापना नहीं, बल्कि वर्तमान सत्ता को नुकसान पहुँचाना है।

अमेरिकी जनता के सामने अंग्रेजों का प्रोपेगंडा फैलाते हुए उसने दावा किया था कि भारतीय क्रांतिकारी संगठनों, जैसे ‘ग़दर पार्टी’ के पीछे जो लोग हैं वो बुद्धिजीवी नहीं हैं। उसे क्रांतिकारियों को अर्द्ध-शिक्षित बताते हुए कहा था कि ‘ग़दर पार्टी’ का खबर विदेश में छपता है और ये गुप्त रूप से सक्रिय है, तो इसका मतलब ये नहीं कि ये अराजक नहीं हैं। उसने अमेरिका और पश्चिमी कनाडा के कुक्न ‘पागल लोगों’ और जर्मनी को इस संगठन के पीछे बताया था।

उसका कहना था कि इसके मुखिया लाला हरदयाल जर्मन वॉर मिनिस्ट्री में कार्यरत थे और उन्हें जापान से भी समर्थन मिला था। उसने दावा किया था कि ये पार्टी प्रभाव और संख्याबल के मामले में छोटी है और इसकी अधिकतर शक्तियाँ बंगाल में ही हैं, जहाँ ये पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों की हत्या की फिराक में रहता है। दिल्ली के चाँदनी चौक पर खुद पर हुए हमले के बारे में बताते समय वो मुस्कुराता था।

उसने हँसते हुए कहा था कि अपने पूर्ववर्तियों की तरह भारत का पिछले वायसराय (वो खुद) भी इन ‘षड्यंत्रों’ का भुक्तभोगी रहा है। उसने दावा किया था कि वो 4 वर्षों में उस घटना के दौरान हुए घावों से पूरी तरह उबर चुका है और उसके साथ जो भारतीय नौकर था, वो भी अब ठीक है। उसने ये भी बताया था कि इस मामले में शामिल लोगों को अंग्रेजों की सरकार ने सज़ा-ए-मौत दे दी है। आइए, उनके नाम भी जान लेते हैं।

बसंत कुमार विश्वास, जिन्हें मात्र 20 वर्ष की आयु में ही फाँसी पर चढ़ा दिया गया। भाई बाल मुकुंद, जो 32 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए फाँसी पर झूल गए। इन दोनों के अलावा अमीर चंद और अवध बिहारी को मौत की सज़ा दी गई। लाला हनुमंत सहाय को आजीवन कारावास की सज़ा देकर कालापानी भेज दिया गया। ये हमला तब हुआ था, जब ब्रिटिश इंडिया की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली ट्रांसफर किया जा रहा था।

बाद में लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग ने बताया था कि इस हमले में उसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा, लेकिन उसकी बीवी को कुछ नहीं हुआ। सिर्फ ‘Picric Acid (C6H3N3O7) के कारण उसकी ड्रेस ख़राब हो गई थी। लेकिन, लॉर्ड हार्डिंग की पीठ, पाँव और सिर में गहरी चोट लगी। उसके कंधे के माँस फट गए। लेकिन, भारत के ‘बुद्धिजीवी नेताओं’ के बारे में उसने जो कहा, वो आज जानने लायक है। आप समझ जाएँगे कि ये नेता कौन थे। उसने कहा:

“जब से प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ, तभी शिक्षित राजनीतिक वर्ग ने भारत को लेकर जितनी भी राजनैतिक समस्याएँ थीं, उन्हें किनारे रख दिया। वो ब्रिटिश सरकार के क्रियाकलापों में बाधा नहीं पहुँचाना चाहते थे, जो पहले से ही दिक्कतों का सामना कर रही थी। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में भारतीय सदस्यों की संख्या ज्यादा थी, फिर भी हमारी इच्छानुसार बिल पास हुए। उन सदस्यों ने जो स्पीच दिए, उनमें जिम्मेदारी की झलक दिखी। वहाँ स्वतंत्रता चाहते वाले शिक्षित नेता जानते थे कि भारत अकेले खड़ा नहीं हो सकता, इसीलिए वो और उदार हो गए और उन्होंने समझदारी का परिचय दिया।”

भारत की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में न सिर्फ सेना लड़ने गई थी, बल्कि देश के संसाधनों का भी दोहन किया गया व बंदूकों बारूद से लेकर सभी प्रकार की वस्तुएँ यहाँ से भेजी गईं। ये सब संभव कैसे हुआ? इसके जवाब में तब वायसराय रहे लॉर्ड हार्डिंग ने कहा था कि उसने देश भर के नेताओं से बात कर के उन्हें स्थिति के बारे में समझाया, जिसके बाद वो इसके लिए तैयार हो गए। फ्रांस, मिस्र, चीन, मेसोपोटामिया, पूर्वी अफ्रीका और कैमरून में भारत के 3 लाख सैनिक लड़े।

इसी इंटरव्यू से खुलासा हुआ था कि मात्र 73,000 अंग्रेजों ने 32 करोड़ की जनसंख्या वाले देश पर कब्ज़ा कर रखा था। एक समय तो ऐसा था, जब यहाँ मात्र 10-15 हजार ब्रिटिश मौजूद थे और वो पूरे देश पर राज कर रहे थे। लॉर्ड हार्डिंग की शब्दों में, ये सब भारत में अंग्रेजों के वफादारों के कारण संभव हुआ। उसका कहना था कि यहाँ के कई ग्रामीण तो क्रांतिकारियों के बारे में पुलिस को गुप्त रूप से सूचना भी दिया करते थे।

इसके लिए उसने एक उदाहरण दिया, जिसका जिक्र आज की तारीख में आवश्यक है। उसने बताया था कि 1914-15 की ठंड के दौरान अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों और कनाडा से 7000 सिख पंजाब लौटे और स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार की ‘ज्यादती’ शुरू की, लेकिन जब अंग्रेजों की सरकार ने उनका दमन शुरू किया तो उनके सारे प्रयास विफल हो गए। आखिर ये कैसे संभव हुआ? लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग का उत्तर था – सिख किसानों की वजह से।

उसका कहना था, “पंजाब में अनगिनत सिख किसान हैं। उन्होंने उन सिख क्रांतिकारियों को पकड़-पकड़ कर ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया। हमें उनके बारे में सूचनाएँ दी।” उसका कहना था कि स्थानीय स्तर पर अंग्रेजों के प्रति जो ‘वफादारी का भाव’ था, उसके कारण ये संभव हो पाया। हालाँकि, इस इंटरव्यू में उसने चीजों को अमेरिका की जनता के सामने भारत के विरुद्ध अंग्रेजी नैरेटिव बनाने के लिए पेश किया था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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