जहाँगीर चौथा मुग़ल बादशाह था। अब ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि उससे पहले क्रमशः बाबर, हुमायूँ और अकबर ने दिल्ली की गद्दी पर राज़ किया था। ये सब तो हमारी पाठ्य पुस्तकों का एक अहम हिस्सा रही हैं। नवंबर 1605 से अक्टूबर 1627 तक राज़ करने वाले जहाँगीर के 22 वर्षों के शासन में इतिहास में काफी उपलब्धियाँ गिनाई जाती हैं। लेकिन, माँ ज्वालामुखी मंदिर में गाय काटने वाली बात छिपा ली जाती है।
इस घटना पर चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि जहाँगीर को धार्मिक रूप से एक उदार राजा के रूप में किताबों में पढ़ाया जाता है। बताया जाता है कि वो सुन्नी होने के बावजूद शिया मुस्लिमों से घृणा नहीं करता था, अब्दुर्रहीम खानखाना का शिष्य होने के कारण उनके सूफी व्यक्तित्व का उस पर भी प्रभाव था, वो अपने अब्बा अकबर के दीन-ई-लाही को पसंद करता था, और अक्सर हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई धर्मगुरुओं को बुला कर बड़े प्यार से उनकी चर्चाओं को सुनता था।
लेकिन, यही इतिहासकार ये नहीं बताते कि किस तरह जहाँगीर हमेशा अपने दरबार में बैठे कट्टर इस्लामी मौलानाओं को खुश करने में लगा रहता था। आपको प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) के पातालपुरी मंदिर के बारे में पता होगा। यहीं पर अकबर ने अपना किला भी बनवाया था। पातालपुरी मंदिर के अधिकतर हिस्सों को जहाँगीर व उसके बेगमों के आदेश के बाद नष्ट कर दिया गया था। इतना ‘उदार’ था जहाँगीर!
असल में अकबर ने हिन्दुओं के खिलाफ ‘छिपी छुरी का अत्याचार’ की नीति अपनाई थी, जिसके कारण उसने इतिहास में अपनी ‘उदार’ वाली छवि चमकाने की भरसक कोशिश की। इस कारण उस समय मुस्लिमों का एक कट्टरवादी समूह उससे नाराज़ हो गया था, लेकिन उसे यकीन था कि जहाँगीर उन्हीं नीतियों को खुलेआम अपनाएगा, जिन्हें अकबर छिप कर लागू करता था। लेकिन, इतिहासकारों को सिर्फ यही दिखता है कि अब्दुर्रहीम खानखाना वैष्णव से प्रभावित थे, इसीलिए कल को वो कहीं जहाँगीर को विष्णुभक्त न साबित कर दें।
असल में जहाँगीर ने जब हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा पर हमला किया था, तो उसने ज्वालामुखी मंदिर को भी तहस-नहस किया था। वो सन् 1620 का समय था, जब ये घटना हुई। उसने काजी और अपने अन्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि इस्लाम के कानून के हिसाब से सारे काम किए जाएँ। ज्वालामुखी मंदिर परिसर में उसने किले पर कब्ज़ा किया, खुत्बा पढ़ा गया और फिर वहाँ एक गाय की हत्या की गई।
ये सब जानबूझ कर किया गया था। जहाँगीर ने खुद लिखा है कि उसने वहाँ पर ऐसी-ऐसी चीजें करने का आदेश दिया, जो मंदिर परिसर में अब तक कभी नहीं हुई थी। उसने ये लिखा है कि ये सब उसकी उपस्थिति में हुआ। अजमेर के पास पुष्कर में जब उसने भगवान विष्णु के अवतार वराह की पूजा करते हुए लोगों को देखा तो वो आक्रोशित हो गया और उसने वराह मंदिर को ध्वस्त करने के आदेश दिए।
उसने कहा कि दशावतार की हिन्दू ‘कहानी’ पर उसे भरोसा नहीं है, इसीलिए भगवान वराह की प्रतिमा को खंड-खंड कर के तालाब में डुबो दिया जाए। जम्मू कश्मीर के राजौरी में जब जहाँगीर ने देखा कि कुछ हिन्दुओं ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी तो वो क्रोधित हो उठा। वो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाया कि इन मुस्लिम लड़कियों ने हिन्दू धर्म में दीक्षित होकर हिन्दुओं से शादी की थी। उसने ऐसे सभी हिन्दुओं को कड़ा दंड देने का आदेश दिया।
जहाँगीर ने मेवाड़ के विरुद्ध युद्ध को भी ‘जिहाद’ बताया था। काँगड़ा पर हमले को भी उसने ‘जिहाद’ करार दिया था, जबकि विक्रमजीत नाम का एक राजा उसके साथ लड़ने गया था। उसने कांगड़ा पर कब्जे के बाद किले में मस्जिद के निर्माण की भी आधारशिला रखी। वो काँगड़ा में ये देख कर भौंचक हो गया था कि न सिर्फ बड़ी संख्या में हिन्दू, बल्कि दूर-दूर से कई मुस्लिम भी माँ ज्वालामुखी की पूजा के लिए आते हैं।
उसने माँ ज्वालामुखी की प्रतिमा को एक ‘काला पत्थर’ कह कर सम्बोधित किया था। इसी तरह गुजरात में उसने सारे जैन मंदिरों को बंद किए जाने और जैन संतों के आश्रमों पर लोगों के जाने पर पाबंदी लगा दी थी। उसने इसके पीछे नैतिकता का बहाना बनाते हुए अपने आदेश में कहा था कि श्रद्धालुओं की बहन-बेटियाँ इन जैन संतों के आश्रम में जाती हैं। हालाँकि, इस आदेश को लागू करने में मुगलों के पसीने छूट गए।
जहाँगीर का सबसे बड़े बेटे का नाम खुसरो था। उसने सन् 1606 में अपने अब्बा के खिलाफ ही बगावत कर दी थी। इस दौरान अमृतसर में उसने गुरु अर्जुन देव से भी मुलाकात की थी। वो सिखों के पाँचवें गुरु थे। जहाँगीर को जैसे ही इसका पता चला, उसने गुरु अर्जुन देव पर 2 लाख रुपए का जुरमाना लगा दिया। ऐसा न करने पर उन्हें बेरहमी से मार डाला गया था। उधर खुसरो ने लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया था।
जहाँगीर लाहौर के लिए निकला और भैरोंवाल के युद्ध में उसने खुसरो को हरा दिया। इसके बाद उसे दिल्ली लाकर हाथी पर बिठा कर लोगों के सामने परेड कराया गया। इस दौरान उसके अगल-बगल उसके लोगों को बिठाया गया था। जब भी कोई चौक-चौराहा आता, उसके एक व्यक्ति की आँतों में सूली घोंप कर उसे उठा दिया जाता था और फेंक दिया जाता था। इस तरह खुसरो के सामने ही उसका साथ देने वालों को सार्वजनिक रूप से भयानक मौत दी गई।
इतना ही नहीं, उसने ईसाईयों के साथ भी क्रूरता की नीति अपनाई थी। पुर्तगालियों से युद्ध के समय सारे चर्च बंद कर दिए गए थे क्योंकि जहाँगीर चर्चों को ध्वस्त करवा देता था। वाराणसी में राजा मानसिंह द्वारा बनवाए गए एक मंदिर को उसने ध्वस्त करवाया था। उसने खुद लिखा है कि उस मंदिर को ध्वस्त करवा कर उसने मस्जिद की नींव रखी, वो भी मंदिर के ही मैटेरियल से। जहाँगीर के माँ के हिन्दू होने की बात कह उसका बचाव करने वाले उसकी करनी को अक्सर छिपा देते हैं।
Mughal Emperor Jahangir describes in his own book how he destroyed the famous Varah Temple and hermitages at Pushkar.
— Divya Kumar Soti (@DivyaSoti) June 6, 2018
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असल में जहाँगीर ने ही हिन्दुओं पर अत्याचार के कई उदाहरण कायम किए, जिन पर उसका बेटा शाहजहाँ वो पोता औरंगजेब चला। इतिहासकार अक्सर ये नैरेटिव फैलाते हैं जहाँगीर के दरबार में फलाँ हिन्दू प्रथा थी, ये त्योहार मनाए जाते थे – लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि मुगलों के दरबार में कई हिन्दू भी बड़े-बड़े पदों पर होते थे। ये हारे हुए या समर्पण करने वाले लोग होते थे। मुगलों का महिमामंडन ऐसे ही लोगों द्वारा आज भी बदस्तूर जारी है।
जहाँगीर के बारे में कई इतिहासकारों ने माना है कि वो शराबी था। उसने शराब पीने के मामले में अपने सारे पूर्वजों के रिकॉर्ड्स तोड़ दिए थे और 1605 में गद्दी पर बैठने के साथ उसका ये शौक और परवान चढ़ा। वो शराब का इतना शौक़ीन था कि एक बार बैठता था तो 20 कप डबल डिस्टिल्ड दारू पी जाता था। बता दें कि जब भी शराब को गर्म किया जाता है और उसे भाप में बदल कर फिर से वापस शराब बनाया जाता है, तो इसे डिस्टिल करना कहते हैं।