Monday, October 14, 2024
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तैमूर के वंशजों ने भारत को पनीर खाना सिखाया: कट्टरपंथियों का झूठ, ऋग्वेद में है सच्चाई

चरक संहिता के आधार पर बीएन माथुर ने लिखा है कि भारत में 'हीट एसिड कागुलेटेड मिल्क' के बारे में ईसा से 300 वर्ष पूर्व का प्रमाण भी मिलता है। कुषाण और सतवाहन काल में इसका जिक्र मिलता रहा है। लेकिन इस्लामी इतिहासकारों ने छेड़छाड़ करके...

आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। हाँ, बिरयानी और ताजमहल के बाद अब पनीर भी मजहबी हो गया है। ट्विटर पर राना सफ़वी ने अनस तनवीर को जन्मदिन की बधाई देते हुए दावा किया कि तैमूरी राजवंश ने भारत को पनीर से अवगत कराया। ये हास्यास्पद इसीलिए है क्योंकि वैदिक काल से लेकर सदियों तक भारत में गायों का महत्व रहा है और यहाँ दूध, दही, घी, मक्खन व छेना खाया जाता रहा है। गाय के उत्पादों से ही पंचामृत बनाने का प्रावधान भी रहा है।

‘फ़ूड फ़ूड’ टीवी चैनल के संस्थापक और भारत के लोकप्रिय शेफ संजीव कपूर पनीर की रेसिपी के बारे में बताते हैं कि ये हमेशा से भारतीय खानपान का हिस्सा रहा है। वो कहते हैं कि पनीर, कॉटेज चीज, चमन, छेना, सफ़ेद चीज- भारत की प्राचीन पुस्तकों में इन सबका वर्णन है। यहाँ तक कि शुरुआती वैदिक साहित्य में पनीर बनाने का वर्णन भी मिलता है। संजीव कपूर ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि कुछ इतिहासकारों की मानें तो पुर्तगाल ने पनीर बनाने की विधि को लोकप्रिय बनाया।

कपूर ने ये भी बताया है कि काफी लोग पनीर को पर्सियनों की देन बताते हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दक्षिण भारत में प्राचीन काल से ही बीन कर्ड और टोफू लोकप्रिय रहा है, जो एक तरह से पनीर का ही प्रकार है। भारत में कई सालों तक विदेशियों के प्रभाव के कारण हम कुछ चीजों को ज़रूर बाहरी नाम से जानते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो चीज भी बाहरी है और उसके बारे में हमारे पूर्वज एकदम अनभिज्ञ थे।

प्राचीन काल में जब भारतखण्ड की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार ही गाय और दुधारू जानवर थे, ऐसे में उन्हें दूध से बनने वाले उत्पादों और उसके प्रयोग की विधि न पता हो, ऐसा कैसे हो सकता है? भारत में दही से मक्खन अलग करने की प्रक्रिया काफ़ी पुरानी रही है। अगर कथित माइथोलॉजी की भी बात करें तो भगवान श्रीकृष्ण के बारे में पुराणों में वर्णित है कि वो बचपन में मक्खन चुरा कर खाया करते थे और मक्खन के घड़े तक पहुँचने के लिए तरह-तरह के यत्न किया करते थे। ऋग्वेद के इस श्लोक को देखिए:

दृते॑रिव तेऽवृ॒कम॑स्तु स॒ख्यम् । अच्छि॑द्रस्य दध॒न्वत॒: सुपू॑र्णस्य दध॒न्वत॑: ॥ (ऋग्वेद, 6.48.18)

इसमें दूध से बनने वाली चीज का जिक्र किया गया है, जिसे इतिहासकार पनीर ही मानते हैं। आज भले ही इसका नाम बदल गया हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि किसी चीज का नाम उर्दू या अंग्रेजी में लोकप्रिय हो जाए तो भारत के लोग इससे एकदम अनभिज्ञ रहे होंगे। वेदों का भी समय-समय पर गड़बड़ अनुवाद और इससे छेड़छाड़ की कोशिश की गई है लेकिन हमारे विद्वानों ने इसका असली मतलब अभी तक संभाल कर रखा है। पहले वेद मौखिक रूप से ही एक से दूसरे जनरेशन तक पास किए जाते थे।

चरक संहिता के आधार पर बीएन माथुर ने लिखा है कि भारत में ‘हीट एसिड कागुलेटेड मिल्क’ के बारे में ईसा से 300 वर्ष पूर्व का प्रमाण भी मिलता है। कुषाण और सतवाहन काल में इसका जिक्र मिलता रहा है। इसे ही आज पनीर के रूप में जानते हैं। कई लोग तो ये भी मानते हैं कि भारत में बंगाल में पहली बार पुतर्गालियों ने दूध फाड़ना सिखाया था जबकि कई इसे ईरान की देन बताते हैं। भारतीय इतिहास को दूसरों का ऋणी बनाने के लिए ये सब किया जाता है।

पश्चिमी भारत में आज भी पनीर को छेना ही कहा जाता है, जिसका रसगुल्ला से लेकर तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाने में उपयोग किया जाता है। कल्याणी चलकर राजा सोमेश्वर-III द्वारा रचित पुस्तक ‘मानसोल्लास’ में बताया गया है कि सबसे पहले दूध को उबाल लें और इसमें कोई खट्टी चीज डाल दें। इसके बाद इसके ठोस भाग को किसी कपड़े से छान कर अलग करने की बात कही गई है। इसके बाद इसमें मसाला मिला कर तैयार करने की विधि बताई गई है।

ये तब की बात है, जब तैमूर का जन्म ही नहीं हुआ था तो तैमूरी डायनेस्टी को तो छोड़ ही दीजिए। पर्शिया से आए जिन लोगों को पनीर को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है, वो तो अधिकतर बकरी और भेड़ के दूध का प्रयोग कर के ये सब बनाया करते थे। असल में भारत को अगर इस्लामी इतिहासकारों ने कुछ दिया है तो वो है हिंसा, बलात्कार और नरसंहार। उन्होंने यहाँ की संपत्ति को लूटा और लोगों को मारा।

‘मानसोल्लास’ में पनीर का वर्णन

असल में जिस तरह से आजकल इस्लामी कट्टरवादी प्रचार कर रहे हैं, कल को वो ये भी कह सकते हैं कि तमिल और संस्कृत की जननी उर्दू ही है। महाभारत सीरियल के संवाद के लिए राही मासूम रजा को भ्राताश्री और पिताश्री जैसे शब्दों को उर्दू के अब्बाजान और भाईजान के आधार पर गढ़ने की बात कही गई। जबकि पंडित नरेंद्र शर्मा को भुला दिया गया, जिन्होंने राही मासूम रजा के साथ मिल कर महाभारत के सिर्फ़ संवाद ही नहीं लिखे थे बल्कि क़दम-क़दम पर उनका मार्गदर्शन भी किया था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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