Monday, March 24, 2025
Homeविविध विषयभारत की बातराजा का स्वप्न, विद्यापति-ललिता का प्रेम, विश्ववासु की आराधना… नील माधव ही हैं भगवान...

राजा का स्वप्न, विद्यापति-ललिता का प्रेम, विश्ववासु की आराधना… नील माधव ही हैं भगवान जगन्नाथ, जानिए कांतिलो के उस मंदिर की कथा जहाँ राष्ट्रपति ने की पूजा-अर्चना

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कांटिलो से करीब 5 किलोमीटर दूर कलियापल्ली गाँव में शबर समुदाय के बीच भी समय बिताया। यह वही समुदाय है, जिसका नीलमाधव और जगन्नाथ की कहानी से गहरा जुड़ाव है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार (24 मार्च 2025) को ओडिशा के नयागढ़ जिले में स्थित कांटिलो के प्रसिद्ध नीलमाधव मंदिर में दर्शन और पूजा की। ढोल-नगाड़ों की गूँज और फूलों की मालाओं के बीच राष्ट्रपति ने मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर के गर्भगृह में भगवान नीलमाधव की मूर्ति के सामने वो श्रद्धा से नतमस्तक हुईं और करीब आधे घंटे तक पूजा में लीन रहीं।

महानदी के किनारे बसा नीलमाधव मंदिर चारों ओर से हरियाली और शांति से घिरा हुआ है। नदी का साफ पानी और आसपास के जंगल इस जगह को और भी मनोरम बनाते हैं। राष्ट्रपति ने पूजा के बाद मंदिर के पुजारी परिवार से मुलाकात की और उनकी पीढ़ियों से चली आ रही भक्ति परंपरा की तारीफ की।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कांटिलो से करीब 5 किलोमीटर दूर कलियापल्ली गाँव में शबर समुदाय के बीच भी समय बिताया। यह वही समुदाय है, जिसका नीलमाधव और जगन्नाथ की कहानी से गहरा जुड़ाव है। गाँव में उन्होंने शबर राजा विश्ववासु की एक नवनिर्मित मूर्ति का अनावरण किया। इसके बाद वो विश्ववासु के तपस्थल पर गईं, जहाँ उन्होंने फूल चढ़ाए और कुछ पल मौन रहकर सम्मान प्रकट किया। स्थानीय महिलाओं ने उन्हें पारंपरिक ओडिया वस्त्र भेंट किए, जिसे वो खुशी-खुशी स्वीकार करती नजर आईं।

महानदी के किनारे स्थित नीलमाधव मंदिर (फोटो साभार : X)

नीलमाधव मंदिर: भगवान जगन्नाथ का पौराणिक घर

अब बात करते हैं नीलमाधव मंदिर की उस पौराणिक कहानी की, जो इसे इतना खास बनाती है। ओडिशा के लोगों के लिए यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और प्राचीन परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। यहाँ की हर ईंट, हर पत्थर और महानदी का बहता पानी उस इतिहास को बयान करता है, जो सैकड़ों-हजारों साल पुराना है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान विष्णु के नीलमाधव रूप का प्राचीन घर है, जो बाद में पुरी में जगन्नाथ के रूप में पूजे गए। ओडिया लोककथाओं में इसे भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति का मूल माना जाता है।

यह कहानी सतयुग से शुरू होती है, जब राजा इंद्रद्युम्न ओड्रा देश (आज का ओडिशा) में राज करते थे। वो भगवान विष्णु के परम भक्त थे और हमेशा उनकी कृपा पाने की कामना करते थे। एक रात उन्हें स्वप्न में भगवान विष्णु ने दर्शन दिए। भगवान ने कहा, “मैं महानदी के किनारे एक जगह पर नीलमाधव के रूप में प्रकट हुआ हूँ। वहाँ शबर जनजाति का मुखिया मुझे एक विशाल वृक्ष के नीचे पूजता है। तुम मुझे ढूंढो और पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी) में मेरे लिए एक भव्य मंदिर बनवाओ।” यह सपना राजा के लिए एक दिव्य आह्वान (Divine Calling) की तरह था।

उन्होंने तुरंत अपने सबसे भरोसेमंद ब्राह्मण विद्यापति को नीलमाधव को खोजने की जिम्मेदारी सौंपी। विद्यापति ने लंबी यात्रा शुरू की। वो जंगलों, पहाड़ों और नदियों को पार करते हुए शबर जनजाति के राज्य में पहुँचे। वहाँ शबर मुखिया विश्ववासु अपने कबीले के साथ रहते थे। विद्यापति ने विश्ववासु से दोस्ती की और उनके यहाँ आश्रय माँगा। विश्ववासु ने उन्हें अपने घर में जगह दी। कुछ दिनों बाद विद्यापति का दिल विश्ववासु की खूबसूरत बेटी ललिता पर आ गया। दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और जल्द ही उनकी शादी हो गई।

विद्यापति ने देखा कि विश्ववासु हर दिन सुबह-शाम जंगल में गायब हो जाते थे। वो उत्सुक हुए और ललिता से इसका राज पूछा। ललिता ने बताया कि उनके पिता जंगल में एक गुप्त जगह पर नीलमाधव की पूजा करते हैं, जो उनके कबीले का सबसे बड़ा रहस्य है। विद्यापति ने ललिता से अनुरोध किया कि वो अपने पिता से उन्हें नीलमाधव के दर्शन करवाने को कहें। ललिता ने बहुत मनुहार की और आखिरकार विश्ववासु मान गए। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि विद्यापति की आँखों पर पट्टी बाँधी जाएगी, ताकि वो उस जगह का रास्ता न देख सकें।

अगले दिन विश्ववासु विद्यापति को लेकर जंगल के गहरे हिस्से में गए। विद्यापति की आँखों पर पट्टी थी, लेकिन वो चतुर थे। उन्होंने अपनी जेब में सरसों के बीज छुपा रखे थे और रास्ते में उन्हें धीरे-धीरे गिराते गए। जब वो उस गुप्त स्थान पर पहुँचे, तो पट्टी हटी और विद्यापति ने नीलमाधव की दिव्य मूर्ति देखी। एक विशाल वृक्ष के नीचे रखी वह लकड़ी की मूर्ति अलौकिक प्रकाश से चमक रही थी। दर्शन के बाद वो वापस लौट आए, लेकिन उनके मन में अब वह छवि बस गई थी।

विद्यापति ने राजा इंद्रद्युम्न को सब बताया। राजा अपने सैनिकों और सेवकों के साथ उस जगह पर पहुँचे। सरसों के बीज अब छोटे-छोटे पौधों में बदल चुके थे, जो रास्ता दिखा रहे थे। लेकिन जब वो वहाँ पहुँचे, तो नीलमाधव की मूर्ति गायब थी। विश्ववासु ने बताया कि भगवान नहीं चाहते कि उनकी पूजा का स्थान सबको पता चले। यह सुनकर राजा का दिल टूट गया। वो निराश और उदास होकर वापस लौट आए।

लेकिन इंद्रद्युम्न ने हार नहीं मानी। उन्होंने भोजन और जल त्याग दिया और महानदी के किनारे कठोर तप शुरू कर दिया। दिन-रात वो भगवान विष्णु को याद करते रहे। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि आसपास के लोग भी उनके साथ प्रार्थना करने लगे। कई दिनों की तपस्या के बाद भगवान विष्णु फिर प्रकट हुए। उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। अब मैं पुरी के समुद्र तट पर ‘दारु ब्रह्म’ यानी पवित्र लकड़ी के रूप में प्रकट होऊँगा। वहाँ मेरे लिए एक भव्य मंदिर बनवाओ, जहाँ मैं जगन्नाथ के रूप में पूजा जाऊँगा।”

भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं नीलमाधव

कुछ दिनों बाद पुरी के समुद्र तट पर एक विशाल लकड़ी का लट्ठा बहता हुआ आया। उसे देखते ही लोगों को लगा कि यह कोई साधारण लकड़ी नहीं है। राजा उसे महल में लाए और मूर्तियाँ बनाने का काम शुरू करने का आदेश दिया। तभी भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े बढ़ई के रूप में वहाँ आए। उन्होंने कहा, “मैं इन लकड़ियों से मूर्तियाँ बनाऊँगा, लेकिन मेरी एक शर्त है। जब तक मैं काम करूँ, कोई भी कमरे में नहीं आएगा और दरवाजा नहीं खोलेगा।” राजा ने उनकी शर्त मान ली।

विश्वकर्मा ने काम शुरू किया। कमरे से हथौड़े और छेनी की आवाजें आने लगीं। सात दिन बीत गए, लेकिन काम पूरा होने का नाम नहीं ले रहा था। रानी और राजा अधीर हो गए। रानी ने कहा, “क्या पता वो बढ़ई ठीक से काम कर भी रहा है या नहीं?” आखिरकार उनकी सब्र की सीमा टूट गई और उन्होंने दरवाजा खोल दिया। अंदर का नजारा देखकर वो हैरान रह गए। विश्वकर्मा गायब हो चुके थे और वहाँ तीन मूर्तियाँ खड़ी थीं – जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा। लेकिन इन मूर्तियों के हाथ-पैर अधूरे थे। फिर भी उनकी आँखें और मुस्कान इतनी जीवंत थीं कि वो अधूरी होते हुए भी पूर्ण लग रही थीं।

राजा ने इन मूर्तियों को पुरी के भव्य मंदिर में स्थापित करवाया। आज भी ये मूर्तियाँ वहाँ विराजमान हैं और दुनिया भर से आए भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। लेकिन राजा ने शबर जनजाति को भी नहीं भुलाया। ललिता और उसके कबीले को ‘दैतापति’ का दर्जा दिया गया। ये दैतापति आज भी जगन्नाथ मंदिर में विशेष सेवक हैं। हर 12 साल में जब ‘नव कालेबर’ होता है, यानी मूर्तियों को बदला जाता है, तो नीम के पेड़ों का चयन दैतापतियों को सपने में बताया जाता है। इन पेड़ों पर शंख, चक्र और गदा जैसे विष्णु के चिह्न होते हैं।

नीलमाधव मंदिर आज भी उस प्राचीन कथा को अपने सीने में समेटे हुए है। यहाँ की शांति, महानदी का बहता पानी और जंगल की हरियाली इसे एक तीर्थ से कहीं ज्यादा बनाती है। यह ओडिशा की आत्मा है, जहाँ आदिवासी परंपराएँ और वैष्णव भक्ति का अनोखा मेल देखने को मिलता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यहाँ आना इस मंदिर के गौरव को और बढ़ाता है। उनके इस दौरे ने न सिर्फ कांटिलो, बल्कि पूरे ओडिशा के लोगों के दिलों में खुशी और गर्व का भाव भर दिया।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जिस महरंग की एक आवाज पर घरों से निकल आते हैं लाखों बलोच, उसे देशद्रोह के केस से डरा रही पाकिस्तानी फौज: जानिए कैसे...

महरंग बलोच को क्वेटा डिस्ट्रिक्ट जेल में रखा गया है। उनकी कजिन अस्मा बलोच ने बताया कि परिवार को उनसे मिलने या खाना देने की इजाजत नहीं दी जा रही।

जिस क्लब से एकनाथ शिंदे को कहा ‘गद्दार’, वहाँ पहुँच गया BMC का ‘हथौड़ा’: बोले नीतेश राणे- हमें कुणाल कामरा जहाँ भी मिलेगा, हम...

हैबिटेट क्लब ने तोड़फोड़ के बाद एक बयान भी जारी किया है। हैबिटेट क्लब ने कामरा के वीडियो पर माफी माँगी है और बताया है कि वह इसमें किसी भी तरह नहीं जुड़ा हुआ था।
- विज्ञापन -