Sunday, November 17, 2024
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राहुल गाँधी, राही मासूम रजा की स्क्रिप्ट नहीं है ‘महाभारत’, शोषित नहीं था वह एकलव्य जिसका अँगूठा दिखा आप भारत को कर रहे बदनाम: पढ़िए कैसे बिछा दी थी यादवों की लाशें

एकलव्य अँगूठे के बिना भी धनुष-तीर का संधान कर सकता था, आज भी इस तकनीक को तीरंदाज अपनाते हैं। आज खेल प्रतियोगिताओं में सामान्यतः अँगूठे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसीलिए आप एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक भी कह सकते हैं।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी फ़िलहाल अमेरिका के दौरे पर हैं। जब-जब वो विदेश जाते हैं, भारत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। कभी वो कहते हैं कि देश में केरोसिन तेल छिड़का हुआ है और आग लगाने के लिए एक छोटी सी चिंगारी काफी है, तो कभी कहते हैं कि मुस्लिमों, दलितों और जनजातीय समाज पर भारत में हमले हो रहे हैं। अब एक बार फिर से उन्होंने भारत देश और हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए इतिहास की एक घटना को गलत तरीके से पेश किया है।

राहुल गाँधी ने ऑस्टिन स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास’ में छात्रों के साथ संवाद करते हुए उनके मन में भारत और हिन्दू धर्म के प्रति घृणा भरी। रविवार (8 सितंबर, 2024) को कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष 3 दिवसीय अमेरिका दौरे पर डलास पहुँचे। इस दौरान ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी उनके साथ थे। छात्रों से बात करते हुए राहुल गाँधी ने पूछा कि क्या उन्होंने एकलव्य की कहानी सुनी है? फिर उन्होंने कहा कि अगर आप भारत में आज क्या हो रहा है इसे समझना चाहते हैं तो इतना जान लीजिए कि रोज लाखों एकलव्य की कहानी चल रही है।

उन्होंने कहा कि वो लोग जिनके पास कौशल है उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जा रहा है। राहुल गाँधी ने कहा कि केवल 1-2 % लोगों को समर्थ बना कर भारत को शक्तिशाली नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने स्किल डेवलपमेंट की बात करते हुए एक अजीबोगरीब उदाहरण भी दिया जो समझ से परे था। बता दें कि अक्सर एकलव्य की कहानी बता कर भारत में एक समूह दलितों और जनजातीय समाज को भड़काता रहता है। आइए, जानते हैं कि एकलव्य की कहानी क्या थी।

एकलव्य की प्रचलित कहानी के जरिए कॉन्ग्रेसी प्रपंच

अक्सर एकलव्य से जुड़ी घटना को बड़े परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जाता है। सिर्फ कहीं सीरियल में कुछ देख लिया, हो गया। न कोई मूल स्रोत तक पहुँचने की कोशिश करता है और न ही कोई उस समय की परिस्थिति और राजनीति को समझने की कोशिश करता है। ये वो दौर था जब हस्तिनापुर पूरे भारतवर्ष पर अपने आधिपत्य को स्थापित करने में लगा हुआ था और खुद हस्तिनापुर साम्राज्य में आंतरिक कलह की पटकथा लिखी जा रही थी। ये वो दौर था जब श्रीकृष्ण को मथुरा को लगातार हो रहे बाहरी हमलों से बचाना था।

सबसे पहले संक्षेप में जान लीजिए कि एकलव्य की क्या कहानी चलती है। कहा जाता है कि एक बार द्रोणाचार्य जंगल में अर्जुन सहित अपने अन्य शिष्यों के साथ जा रहे थे तो एक कुत्ता वहाँ भौंकता हुआ आया। तभी एक लड़के ने अचानक कई तीर उस कुत्ते के मुँह में छोड़े और वो चुप हो गया लेकिन मरा नहीं। द्रोणाचार्य ने देखा तो एकलव्य वहाँ धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। आश्चर्य की बात ये थी कि एकलव्य ने गुरु द्रोण की मूर्ति बना रखी थी, साथ ही उन्हें अपना शिक्षक भी मान लिया था।

फिर द्रोणाचार्य ने उससे बातचीत की और अंत में गुरु-दक्षिणा माँगी। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को आशीर्वाद दे रखा था कि इस पृथ्वी पर उससे बड़ा धनुर्धर कोई नहीं हो पाएगा। उन्हें लगा कि एकलव्य कहीं अर्जुन से बड़ा न बन जाए, इसीलिए उन्होंने उसका अँगूठा माँग लिया। इसके बाद एकलव्य उतना अच्छा धनुर्धर नहीं रहा। कहानी ये चलती है कि द्रोणाचार्य का ये कृत्य ‘ब्राह्मणवाद’ में आता है और एकलव्य जनजातीय समाज से घृणा का शिकार बना। क्या सचमुच ऐसा ही था? आइए, समझते हैं।

जब एकलव्य की वीरता देख दंग रह गए पांडव और द्रोणाचार्य

मूल महाभारत में ये कथा किस रूप में है, सबसे पहले हमें ये समझना होगा। अर्जुन बचपन से ही महान धनुर्धर बन गए थे। एक बार द्रोणाचार्य ने रसोइए को बुला कर कहा था कि वो कभी भी अँधेरे में अर्जुन को भोजन न परोसे। वो द्रोणाचार्य के भी प्रिय बन गए थे। एक बार हवा चलने के कारण दीपक बुझ गया और अर्जुन अभ्यास के कारण अँधेरे में भी भोजन करने लगे, उनका हाथ सीधा थाली से मुँह तक जाता था। इससे इन्हें पता चला कि अँधेरे में भी अभ्यास किया जा सकता है।

इसी तरह अगर आप महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के बारे में पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि उनके नाम में ‘चाँद’ और फिर ‘चंद’ ही इसीलिए जुड़ा था क्योंकि सेना की अपनी नौकरी के दौरान वो चाँदनी रात में हॉकी का अभ्यास किया करते थे। जहाँ तक एकलव्य की बात है, वो भी बड़ा धनुर्धर था और उसने धनुर्विद्या के अभ्यास के लिए जंगल में ही द्रोणाचार्य की प्रतिमा तक गढ़ रखी थी। वह द्रोणाचार्य में श्रद्धा रखता था, साथ ही एकचित्त से अभ्यास करता था। अस्त्रों के विमोचन, आदान और संधान में वो दक्ष होने लगा।

उसी दौरान कौरव और पांडव, दोनों ही वन में विचरण कर रहे थे। एक व्यक्ति अपने कुत्ते के साथ जल आदि लेकर उनके साथ चल रहा था। उस कुत्ते ने एकलव्य को देखा और भौंकने लगा। इस दौरान बताया गया है कि एकलव्य का शरीर काला था, अंग मलिन थे। उसने मृग की छाल पहन रखी थी। महाभारत में एकलव्य के लिए ‘निषाद पुत्र’ और ‘व्याध पुत्र’ शब्द का प्रयोग किया गया है। यानी, निषाद और शिकारी का बेटा। खैर, इस पर हम आगे भी बात करेंगे। एकलव्य ने कुत्ते को भौंकते हुए देख कर एक साथ 7 बाण उसके मुँह में चलाए।

कुत्ता शांत हो गया और फिर पांडवों के पास वापस गया। ये सभी लज्जित हो गए कि आखिर वो कौन है जिसने शब्द के आधार पर कुत्ते के मुँह में बाण चलाया और इतनी फुर्ती दिखाई। एकलव्य को महाभारत में ‘वनवासी’ भी कहा गया है। वो दिन-रात लगातार बाण चला-चला कर अभ्यास कर रहा था। पांडवों के पूछने पर उसने अपना परिचय हिरण्यधनु के पुत्र और द्रोणाचार्य का शिष्य बताया। वापस लौट कर शिष्यों ने द्रोणाचार्य को सारी बातें बताईं। अर्जुन ने एकांत में द्रोणाचार्य से इस संबंध में बात की।

अर्जुन ने याद दिलाया कि गुरु द्रोण ने कहा था कि अर्जुन से बड़ा धनुर्धर उनका कोई शिष्य नहीं होगा, इसके बावजूद आपका दूसरा शिष्य (एकलव्य) मेरे से नहीं बल्कि सभी से श्रेष्ठ प्रतीत होता है। इसके बाद द्रोणाचार्य अर्जुन को लेकर वन में गए और जटाधारी एकलव्य को अभ्यास करते हुए देखा। एकलव्य ने द्रोणाचार्य के पाँव छूकर उन्हें प्रणाम किया। उसने द्रोणाचार्य को बताया कि वो उनका ही शिष्य है। द्रोणाचार्य ने कहा कि अगर तुम मेरे शिष्य हो तो मुझे गुरु-दक्षिणा दो।

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, एकलव्य ने सहर्ष इस माँग को स्वीकार किया और पूछा कि उन्हें क्या चाहिए। द्रोणाचार्य ने उससे दाहिनी हाथ का अँगूठा माँग लिया। एकलव्य के लिए ये माँग कठोर थी, फिर वो प्रसन्नचित्त था और उसने अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण कर बिना दुःख माने अपनी दाहिनी हाथ का अँगूठा उन्हें काट कर दे दिया। इसके बाद भी एकलव्य शेष उँगलियों का इस्तेमाल कर ही बाण चलाने लगे, लेकिन उनकी धनुर्विद्या में अब पहले सी तीक्ष्णता नहीं रही।

महाभारत वर्णित है कि इसके बाद द्रोणाचार्य प्रसन्न हुए कि कोई अर्जुन को नहीं हरा पाएगा। क्या एकलव्य सचमुच गरीब था? नहीं। एकलव्य के पिता हिरण्यधनु निषादराज थे। उनका अपना राज्य था। साथ ही जरासंध के साथ उनकी संधि थी। द्रोणाचार्य केवल कौरवों-पांडवों के गुरु ही नहीं थे बल्कि हस्तिनापुर के रणनीतिकारों में से भी थे, सेनापतियों में से थे। ऊपर से एक गरीब ब्राह्मण को दोस्त द्रुपद द्वारा धोखा दिए जाने के बाद हस्तिनापुर में भीष्म पितामह ने शरण दी थी और कार्यभार व पद सौंपा था।

द्रोणाचार्य जहाँ का रोटी खाते थे, उस राज्य के प्रति निभाई वफादारी

ऐसे में वो हस्तिनापुर के प्रति वफादार थे। उनके ये कार्य भी था कि हस्तिनापुर के खिलाफ पनपने वाले दुश्मनों का वो सफाया करें, और युद्ध में संवेदनाओं के लिए बहुत जगह नहीं होती। जरासंध न सिर्फ हस्तिनापुर का दुश्मन था, बल्कि श्रीकृष्ण का भी दुश्मन था। भीम ने मल्लयुद्ध में उसे हराया था। जरासंध के मित्र होने का अर्थ हुआ हस्तिनापुर का दुश्मन और द्रोणाचार्य ने केवल अर्जुन के लिए ये फैसला नहीं लिया, बल्कि जिस हस्तिनापुर ने उन्हें सब कुछ दिया था उसका प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन करते हुए ये फैसला लिया।

इसमें जाति का कहीं से कुछ लेना-देना नहीं है और न ही इसका वर्णन है। उस समय की कूटनीति के हिसाब से ये फैसला लिया गया था। कई जगह ये भी जिक्र मिलता है कि एकलव्य अँगूठे के बिना भी धनुष-तीर का संधान कर सकता था, आज भी इस तकनीक को तीरंदाज अपनाते हैं। आज खेल प्रतियोगिताओं में सामान्यतः अँगूठे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसीलिए आप एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक भी कह सकते हैं। यानी, द्रोणाचार्य के मन में भी एकलव्य के प्रति सहानुभूति रही होगी, तभी उन्होंने उससे सिर्फ अँगूठा ही माँगा था, छल से उसकी हत्या नहीं की थी।

यदुवंशियों का हत्यारा थे एकलव्य, जरासंध का अनुचर

एकलव्य ने जरासंध की तरफ से मथुरा पर आक्रमण भी किया था, कई यादव योद्धाओं को उसने मार गिराया था। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण को भी अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए उससे युद्ध करना पड़ा। पुराणों में इसका भी जिक्र मिलता है कि कैसे कृष्ण-बलराम का जरासंध के साथ भयानक युद्ध हुआ था। युद्ध में एक बार एकलव्य गदा प्रहार से अचेत भी हो गया था, जिसके बाद शकुनि के पुत्र उलूक ने उसे बचाया। वहीं एकलव्य ने युद्ध में फँसे हुए जरासंध की अपनी सेना सहित मदद की थी।

जब जरासंध युद्ध में फँस गया था, तब एकलव्य ही था जो उसे लेकर रथ से युद्धभूमि से दूर ले भागा था। इस युद्ध में कृष्ण-बलराम की जीत हुई थी, लेकिन बड़ी संख्या में मथुरा की यादव सेना को क्षति पहुँची थी।आज जो यादव श्रीकृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं, क्या वो इस बात को स्वीकार करेंगे कि एकलव्य ने यदुवंश के कई वीरों को सदा के लिए भूमि पर लिटा दिया था। क्या राहुल गाँधी इसका जिक्र करेंगे? राही मासूम रज़ा द्वारा लिखी गई महाभारत के सीरियल को देख कर नहीं बल्कि पुस्तकें पढ़ कर राय बनानी चाहिए।

कुछ जगह ये भी जिक्र मिलता है कि एकलव्य, हिरण्यधनु का सिर्फ दत्तक पुत्र था। वो श्रीकृष्ण का रिश्तेदार था, ऐसे में उसके यदुवंशी होने की संभावना भी जताई जाती है। एकलव्य ने पौंड्रक के साथ मिल कर भी मथुरा पर आक्रमण किया था। श्रीकृष्ण जब ‘रणछोड़’ बने थे और एक पर्वत में छिप गए थे, तब वहाँ आग लगा कर उन्हें मार डालने की साजिश में भी वो शामिल था। बलरामजी ने उन्हें पराजित किया था, अंत में युद्ध में ही श्रीकृष्ण के हाथों उसका वध हुआ।

अपने बेटे तक को द्रोणाचार्य ने नहीं सिखाया ब्रह्मास्त्र

जहाँ तक गुरु द्रोणाचार्य की बात है, उन्होंने तो पात्रता और अपात्रता के संबंध में अपने बेटे तक से समझौता नहीं किया। उन्होंने अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र के संधान का तो ज्ञान दिया, लेकिन संहार का नहीं। कर्ण भी उनका ही शिष्य था, लेकिन यहाँ से उसे ब्रह्मास्त्र मिलने की आशा नहीं थी तो वो चला गया। वो महेंद्र पर्वत पर परशुराम जी के पास गया। इससे साफ़ है कि द्रोणाचार्य की वफादारी राष्ट्र के प्रति थी, वो जातिवादी नहीं थे बल्कि एक कूटनीतिज्ञ थे, एक रणनीतिकार के रूप में उन्होंने ये फैसला लिया।

द्रोणाचार्य ने तो कई राज़ अपने बेटे तक को नहीं बताए थे, ऐसे में एकलव्य का आगे बढ़ जाना वो कैसे स्वीकार करते क्योंकि वो हस्तिनापुर के लिए खतरा बन सकता था। हस्तिनापुर का कुलगुरु होने के कारण उन्होंने सोचा कि उनकी विद्या का प्रयोग उनके ही खिलाफ होगा जिनके लिए वो काम करते हैं, तो ये अधर्म हो जाएगा। जरासंध अधर्मी था और धर्म-परायण राजाओं का शत्रु भी। उसने कई राजकुमारों को बंदी बना कर रखा था। द्रोणाचार्य ने बिना अँगूठे के धनुर्विद्या का जो प्रयोग सिखाया, वो आज तक चला आ रहा है।

बड़ी बात देखिए, अँगूठा कट जाने के बाद भी एकलव्य ने मथुरा की सीमा में हाहाकार मचा दिया था। उसका स्पष्ट मानना था कि जरासंध ही उसका राजा रहा है और वो उसके प्रति वफादार रहेगा। श्रीकृष्ण को ये भी पता था कि एकलव्य अगर महाभारत के युद्ध में शामिल हुआ तो कौरवों का पलड़ा बहुत भारी हो जाएगा। एकलव्य के बेटे ने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया था और भीम के हाथों मारा गया था। महाभारत के युद्ध में तो भीष्म और द्रोण सब मारे गए, यानी जो भी योद्धा अधर्म का साथ देगा उसे मरना पड़ेगा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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