Sunday, December 22, 2024
Homeविविध विषयभारत की बातनेहरू से पहले ही बोस बन गए थे प्रधानमंत्री, सिंगापुर की सरकारी वेबसाइट पर...

नेहरू से पहले ही बोस बन गए थे प्रधानमंत्री, सिंगापुर की सरकारी वेबसाइट पर है पूरा ब्यौरा

अगर आप सिंगापुर की सरकारी वेबसाइट पर जाएँगे तो आपको आज भी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में चलने वाली उस सरकार का पूरा ब्यौरा मिल जाएगा। बोस के नेतृत्व में चलने वाली सरकार के जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, इटली, क्रोएशिया, तत्कालीन चीन, बर्मा, थाईलैंड और मंचूरिया के साथ कूटनीतिक रिश्ते थे।

क्या आपको पता है कि ‘स्वतंत्र भारत’ की पहली सरकार जवाहरलाल नेहरू ने नहीं बनाई थी। एक सरकार ऐसी भी थी, जिसके 9 देशों के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध थे, जापान का खुला समर्थन प्राप्त था और सुभाष चंद्र बोस उसके प्रधानमंत्री थे। सिंगापुर में अक्टूबर 21, 1943 को इस सरकार की स्थापना हुई थी और इसे ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ नाम दिया गया था। जापान ने इस सरकार की स्थापना में वित्तीय, सैन्य व कूटनीतिक मदद उपलब्ध कराई थी। ये वो समय था, जब कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे बोस को पार्टी से मोह भांग हो चुका था और वो देश-विदेश में घूम कर भारत को आज़ादी का बिगुल बजा रहे थे।

इसे एक तरह से ‘Government In Exile’ माना गया, जिसे विदेश से चलाया जा रहा था। बोस के नेतृत्व में चलने वाली सरकार के जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, इटली, क्रोएशिया, तत्कालीन चीन, बर्मा, थाईलैंड और मंचूरिया के साथ कूटनीतिक रिश्ते थे। जापान ने सरकार चलाने के लिए अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह उपलब्ध कराए, जिनका नामकरण शहीद और स्वराज द्वीप समूह के रूप में किया गया। इसकी अपनी एक सेना थी, जिसका नाम ‘आज़ाद हिन्द फौज’ था और अपना अलग बैंक भी था, जिसे ‘आज़ाद हिन्द बैंक’ के नाम से जाना गया।

अगर आप सिंगापुर की सरकारी वेबसाइट पर जाएँगे तो आपको आज भी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में चलने वाली उस सरकार का पूरा ब्यौरा मिल जाएगा। सिंगापुर ने अपनी सरकारी वेबसाइट पर बताया है कि वो बोस ही थे, जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए पूर्वी एशिया में रह रहे भारतीयों को भी स्वतन्त्रता संग्राम से जोड़ा। सिंगापुर के ऐतिहासिक कैथे बिल्डिंग से बोस ने इस सरकार के गठन की घोषणा की थी। वहाँ की सरकारी वेबसाइट पर इस ऐतिहासिक पल का चित्र भी मौजूद है। सिंगापुर मानता है कि उस सरकार को कई देशों की मान्यता प्राप्त थी। उस समय बोस ने कहा था:

“अब समय आ गया है जब पूर्वी एशिया में रह रहे 30 लाख भारतीय सभी उपलब्ध संसाधनों को एकत्रित कर के एक साथ इकट्ठे हों। आधे-अधूरे संसाधनों से काम नहीं चलेगा। वित्त भी चाहिए और मानव संसाधन भी हमारी ज़रूरत है। मैं 3 लाख सैनिकों को अपने साथ देखना चाहता हूँ और 3 करोड़ डॉलर भी।”

बोस ने जुलाई 9, 1943 को ये बात कही थी। सिंगापुर की वेबसाइट पर आगे बताया गया है कि इस सम्बोधन के साथ ही पूरे पूर्वी एशिया में भारतीय समुदाय के बीच आज़ादी की ज्वाला जलने लगी। थाईलैंड, बर्मा और मलेशिया के एक-एक भारतीय लोगों ने उम्मीद के अनुसार प्रतिक्रिया दी। आईएनए के फंड में रुपए और सोने दान किए गए। महिलाओं की भागीदारी का आलम ये था कि उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी अपने आभूषण आज़ादी के इस महायज्ञ में दानस्वरूप दे दिया।

कई धनाढ्य परिवार के लोगों ने भी बोस की रैलियों और बैठकों में हिस्सा लेने के बाद बड़ी मात्रा में वित्तीय मदद उपलब्ध कराए। आईएनए को कपड़े-लत्तों से लेकर भोजन-पानी व अन्य वस्तुएँ भी भारी मात्रा में दान में मिलीं। अगस्त 5, 1943 में इंडोनेशिया के पश्चिमी सुमात्रा प्रान्त में स्थित पडांग में बोस की विशाल रैली हुई, जिसमें उन्होंने सैनिकों से ‘चलो दिल्ली’ और ‘जय हिन्द’ से उनके भावनात्मक जुड़ाव पर सवाल पूछे। वहाँ उपस्थित लोगों ने इतनी जोर से जवाब दिया कि ब्रिटिश साम्राज्य को अपनी चूलें हिलती हुई नज़र आने लगी। सिंगापुर की सरकारी वेबसाइट पर आपको वो चित्र भी मिल जाएगा, जिसमें बोस सेना की परेड का निरीक्षण करते दिख रहे हैं।

अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की 75वीं वर्षगाँठ पर लाल किले की प्राचीर से झंडा फहरा कर बोस को याद किया था। इस दौरान उन्होंने ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के कुछ वयोवृद्ध सेनानियों को सम्मानित भी किया था। मोदी ने आरोप लगाया था कि बाबासाहब आंबेडकर और सरदार पटेल की तरह ही नेताजी बोस के भी योगदान को भुलाने का भरसक प्रयास किया गया लेकिन देश इन्हें कभी नहीं भूल सकता। पीएम ने याद किया था कि कैसे नेताजी ने पूर्वी भारत को आज़ादी का गेटवे बनाया और अप्रैल 1944 में कर्नल शौकम मलिक की अगुवाई में मणिपुर के मोयरांग में ‘आजाद हिंद फौज’ ने तिरंगा झंडा फहराया था।

सुभाष चंद्र बोस के निधन के साथ ही ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ भी कमजोर हो गई और एक तरह से इसका अवसान हो गया। ‘एक्सिस पावर’ की हार के साथ ही इस सरकार के कई शक्तिशाली समर्थकों की शक्ति भी कमज़ोर पड़ गई। लेकिन हाँ, भारतीयों को एकजुट करने वाले नेताजी वो कर के चले गए, जिसके कारण अगले कई दक्षों तक अँग्रेज उनके नाम से काँपते रहे। भारत आज़ाद हुआ, नेताजी का स्वप्न पूरा हुआ लेकिन इसी भारत में कॉन्ग्रेस की सरकारों उनके योगदान को कमतर आँकने के आरोप भी लगे।

आज जब भी बोस की बात होती है तो यही चर्चा होती है कि उनकी मृत्यु कब हुई, क्या वो 1945 के बाद भी ज़िंदा थे और उनकी मृत्यु के पीछे का रहस्य कब खुलेगा? अब समय आ गया है जब इन सभी चर्चाओं से ऊपर उठ कर उनके योगदान के बारे में बात की जाए।

यहाँ इस बात का जिक्र करना आवश्यक है की नेताजी से भी पहले 1915 में राजा महेंद्र प्रताप ने काबुल में भारत के पहले ‘प्रोविजनल सरकार’ की स्थापना की थी। इसे ‘हुकूमत-ए-मोख्तार-ए-हिन्द’ नाम दिया गया था। इस हिसाब ने नेताजी की सरकार दूसरी सरकार थी, जो विदेश से चली। मौलाना बरकतुल्लाह उस सरकार के राष्ट्रपति थे, वहीं ख़ुद महेंद्र प्रताप पीएम बने। उस सरकार को अफ़ग़ान का आमीर, तुर्की और जापान का समर्थन प्राप्त था। महेंद्र प्रताप ने एएमयू से पढ़ाई की थी और वे हाथरस के राजकुमार थे।

जब कॉन्ग्रेस की भरी सभा में हुआ बीमार सुभाष चंद्र बोस का अपमान, नेहरू-गाँधी ने छोड़ दिया था साथ

‘कुछ लोग नहीं चाहते मेरे पिता की मौत का रहस्य सुलझे’, बोस की बेटी ने की मोदी से अस्थियों के DNA टेस्ट की माँग

कहानी राजर्षि की: जिसे बोस और पटेल की तरह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद त्यागना पड़ा, कारण- नेहरू

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘शायद शिव जी का भी खतना…’ : महादेव का अपमान करने वाले DU प्रोफेसर को अदालत से झटका, कोर्ट ने FIR रद्द करने से...

ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को ले कर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले एक प्रोफेसर को दिल्ली हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है।

43 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री ने कुवैत में रखा कदम: रामायण-महाभारत का अरबी अनुवाद करने वाले लेखक PM मोदी से मिले, 101 साल...

पीएम नरेन्द्र मोदी शनिवार को दो दिवसीय यात्रा पर कुवैत पहुँचे। यहाँ उन्होंने 101 वर्षीय पूर्व राजनयिक मंगल सेन हांडा से मुलाकात की।
- विज्ञापन -