Thursday, May 2, 2024
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चीनी कंपनियों का भारत में निवेश, भारतीय कंपनियों का पाकिस्तानी प्रोडक्ट लॉन्च: यूँ फँसता जा रहा मोबाइल यूजर

"ऐसे समय में जब सरकारी मंजूरी के बिना भारत में किसी तरह के चीनी निवेश पर पूरी रोक लगी हुई है और जब पाकिस्तान पर भी दुनिया भर से सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, मेरे लिए यह स्तब्धकारी है कि पूर्व में मेक इन इंडिया और राष्ट्रवाद को लेकर लंबी चौड़ी बाते करने वाली कंपनी चीन समर्थित और पाकिस्तान स्थित कंपनी दराज़ से गठजोड़ कर रही है।"

‘रहस्यमय’ कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर में चीन विरोधी संवेदनाओं में ज़बरदस्त उबाल है और ‘ड्रैगन को बाहर करो’ का शोर हर कोने में बढ़ता ही जा रहा है। इस सब के बीच इस चतुर वामपंथी देश की भीमकाय टेक कंपनियों की महामारी जनित संकट के बावजूद भारत के फलते-फूलते ऑनलाइन गेमिंग उद्योग में कथित विस्तारवादी रणनीति जारी दिख रही है।

चीन की दो कंपनियों, अलीबाबा और टेन्सेंट, ने खासकर भारत में टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप क्षेत्र में खासा निवेश किया है। दोनों ने पिछले तीन-चार साल में तेजी से विकसित हुए भारत के ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में भी मजबूती से कदम जमाए हैं। ऑनलाइन गेमिंग भारत के उन गिने-चुने क्षेत्रों में से है, जो न केवल कोरोना संकट से अब तक बहुत हद तक अछूता है बल्कि इसके पहले की आर्थिक सुस्ती में भी तेजी से विकसित हो रहा था।

अलीबाबा ने जहाँ अग्रणी भारतीय मोबाइल वॉलेट कंपनी पेटीएम और इसके पेटीएम फर्स्ट नाम के गेमिंग प्लेटफॉर्म में निवेश किया था वहीं टेन्सेंट ने ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र के इकलौते भारतीय यूनिकाॅर्न यानी एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यन वाली स्टार्ट अप कंपनी ड्रीम 11 में पैसा लगाया था।

कोरोना संकट के चलते पिछले माह भारत की ओर से चीनी निवेश पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे। इसके बाद भी हाल में पेटीएम फर्स्ट गेम्स ने अलीबाबा के निवेश वाली पाकिस्तान स्थित ई कॉमर्स और लाॅजिस्टिक्स कंपनी दराज़ के साथ भी हाथ मिला लिया है। दोनों ने मिल कर दराज़ फर्स्ट नाम से एक गेमिंग प्लेटफॉर्म इस माह बांग्लादेश में लॉन्च किया है और कहा है कि इसे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों में भी विस्तारित किया जाएगा।

दराज़ कंपनी की स्थापना कराची में 2012 में हुई थी और अलीबाबा ने 2018 में एक अघोषित रक़म के निवेश के साथ इसका अधिग्रहण कर लिया था। यह बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका आदि देशों में कारोबार करता है। अलीबाबा पेटीएम का भी सबसे बड़ा अंशधारक है।

चीनी भीमकायों की चतुर रणनीति

हाल की कई रिपोर्टों की मानें तो चीनी कंपनियों की नजर भारत के फैलते मोबाइल आधारित वाणिज्य बाजार यानी मोबाइल काॅमर्स मार्केट और इससे जुड़े अन्य छुपे हुए फायदों पर है।

भारत में अलीबाबा और टेन्सेंट समेत चीनी टेक कंपनियों के निवेश में पिछले कुछ सालों में जबरदस्त उछाल आया है। यह 2013 में महज 21 करोड़ 40 लाख अमेरिकी डॉलर था पर पिछले साल दिसंबर तक लगभग 40 गुना उछाल के साथ आठ अरब डॉलर तक पहुँच गया था। इसमें इन दोनों कंपनियों का भी खासा निवेश बताया जाता है। अलीबाबा जहाँ पेटीएम जैसी कंपनियों में बड़े-बड़े निवेश कर मालिकाना हक हासिल करने की रणनीति पर काम करता दिख रहा है, वहीं टेन्सेंट की नीति कई कंपनियों में अपेक्षाकृत छोटे निवेश करने की लगती है।

क्वार्ट्ज इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अलीबाबा ने पेटीएम, ज़ोमैटो, बिगबास्केट, स्नैपडील और एक्सप्रेसबीज़ में निवेश किया है। यह तो पेटीएम में अकेला सबसे बड़ा अंशधारक भी बन गया है। टेन्सेंट ने अधिकतर ऐसी कंपनियों में निवेश किया है, जिनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में अलीबाबा का निवेश है। इनमें स्विगी, फ्लिपकार्ट, हाइक, ओला, बाइजू तथा ड्रीम 11 आदि शामिल हैं। इन दोनों के अलावा स्मार्टफोन निर्माता चीनी कंपनी शाओमी, टिक-टॉक का स्वामित्व रखने वाली बाइटडांस तथा फाेसून आदि ने भी अलग अलग स्टार्टअप आदि में निवेश किया है। 

भारतीय ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र

ऑनलाइन गेमिंग उन गिने चुने व्यवसायिक क्षेत्रों में से है, जो न केवल कोरोना संकट के पूर्व की सामान्य आर्थिक सुस्ती में भी तेजी से बढ़ रहा था बल्कि इस महामारी और लॉकडाउन के दौर में भी उफान पर है। भारत में करीब दो दशक पुराना यह उद्योग, सस्ते डाटा और स्मार्टफोन की उपलब्धता के कारण पिछले चार-पाँच साल में बहुत तेजी से बढ़ा है। अब 90 प्रतिशत लोग ऑनलाइन गेमिंग मोबाइल फोन के जरिए करते हैं। भारत में इसका कुल सालाना कारोबार पिछले साल 40 फीसदी की वृद्धि के साथ 6500 करोड़ रुपए पर पहुँच गया।

औद्योगिक संस्था फिक्की और पेशेवर सेवा प्रदाता अर्नस्ट एंड यंग के एक अध्ययन के अनुसार, यह 2022 तक लगभग तीन गुना बढ़ कर 18700 करोड़ पर पहुँच जाएगा। एक अन्य रिपोर्ट में इसके 2024 तक 25000 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर जाने का अनुमान है। पिछले साल के अंत तक देश में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या लगभग 38 करोड़ थी।

मजेदार बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान जब अधिकांश तरह के कारोबार ठप हैं या उनमें खासी गिरावट दर्ज की गई है, ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर अब भी तेजी से बढ़ रहा है। इस क्षेत्र के जानकारों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान ही ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या में दो गुने से अधिक का इजाफा हुआ है। ऐसा इसलिए है कि अब लोगों के पास खाली समय अधिक है और इनमें से कई कोरोना संकट से उपजी चिंताओं से ध्यान हटाने के लिए भी मोबाइल फोन पर गेम खेल रहे हैं।

यह क्षेत्र निवेशकों के लिए पंसदीदा माना जाता रहा है और इसमें भी चीनी कंपनियों का खासा दबदबा होता जा रहा है। टेन्सेंट ने देश में फैन्टेसी गेमिंग के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म ड्रीम 11 में निवेश किया है, हालाँकि कोरोना संकट के चलते असली खेल नहीं होने से फैन्टेसी गेमिंग कंपनियाँ खस्ताहाल हैं। संभवत: इसीलिए अब अलीबाबा ने नई रणनीति के तहत ऑनलाइन गेमिंग में अपने पैर फैलाने के लिए दूसरे उपाय आजमाने शुरू किए हैं।

ड्रैगन की रूचि

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश की 130 करोड़ से अधिक की आबादी में करीब एक तिहाई लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और इनमें से अधिकतर सस्ते डाटायुक्त स्मार्टफोन धारक भी हैं। कोरोना संकट से पहले तक स्मार्टफोन का बाजार भी 10 प्रतिशत के सालाना दर से बढ़ रहा था।

केपीएमजी मुंबई के मीडिया और मनोरंजन विभाग के प्रमुख गिरिश मेनन के अनुसार भारतीय परिदृश्य अलीबाबा और टेन्सेंट के लिए बेहद लुभावना है क्योंकि उनका पूरा तानाबाना मोबाइल फोन आधारित पारिस्थितिकी तंत्र यानी इकोसिस्टम वाला ही है। और भारत में अन्य तरह के मनोरंजन की तुलना में फोन पर गेमिंग के लिए बिताया जाने वाला समय सबसे अधिक होता है।

दराज़ फर्स्ट गेम्स के हाल में लॉन्च की घोषणा करते हुए पेटीएम ने अपने बयान में कहा था कि कंपनी दक्षिण एशियाई बाजार में प्रवेश के लिए दराज़ के साथ गठजोड़ कर ‘रोमांचित’ महसूस कर रही है। इसे अभी बांग्लादेश में लॉन्च किया गया है और अंतरराष्ट्रीय विस्तार के भाग के तौर पर जल्द ही इसे नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार में भी लाया जाएगा।

पाकिस्तान अथवा चीन के नाम की चर्चा किए बगैर बयान में कहा गया था कि दराज़ के 50 लाख उपभोक्ता हैं और उसके साथ भागीदारी से पेटीएम फर्स्ट गेम्स को गेमिंग के मामले में एशिया के सबसे तेजी से बढ़ रहे इलाकों में पैठ बनाने में मदद मिलेगी। पेटीएम फर्स्ट के मुख्य संचालन अधिकारी सुधांशु गुप्ता ने कहा कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में मोबाइल पर गेम खेलने का चलन यानी मोबाइल गेमिंग एक तरह से विस्फोटक ढंग से बढ़ रहा है और उनकी कंपनी का प्रयास एक समान ‘मिशन’ वाली कंपनियों से भागीदारी का है। दराज़ के चीफ ग्रोथ ऑफिसर एडोआर्ड घीब्रांट ने पेटीएम के साथ गठजोड़ से अपने कारोबारी विकास में और तेजी आने का विश्वास जताया।

डाटा सुरक्षा और अन्य खतरे

जानी-मानी विदेश नीति थिंक टैंक गेटवे हाउस: इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशन्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी कंपनियों की ओर से भारतीय टेक स्टार्ट अप में किया जा रहा निवेश अपने मूल्य की तुलना में कहीं बड़ा असर पैदा कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टेक्नाेलॉजी की भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गहरी पैठ होती जा रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अलीबाबा, टेन्सेंट और बाइटडांस जैसी कंपनियों की अगुवाई में चीनी टेक कंपनियों ने 92 भारतीय स्टार्ट अप में पैसा लगाया है। इनमें पेटीएम, ऑनलाइन शिक्षण वाला बाइजू जैसे नाम शामिल हैं। एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यन वाली 30 में से 18 यूनीकॉर्न स्टार्ट अप कंपनियों में चीनी निवेश है। इसका मतलब यह है कि चीन की भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और इसे प्रभावित करने वाले तकनीकी इकोसिस्टम में पैठ हो गई है।

यह निवेश किसी बंदरगाह या रेलवे परियोजना की तरह आसानी से दिखता नहीं है। यह छोटे आकार वाले अदृश्य निवेश होते हैं, जो कभी कभार ही 10 करोड़ डॉलर से अधिक के होते हैं और ये निजी क्षेत्र द्वारा किए जाते हैं, इसलिए तुरंत इनसे होने वाले खतरे का आभास नहीं हो पाता।

इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अलीबाबा, टेन्सेंट और अन्य चीनी टेक कम्पनियाँ अगर अपने इंटरनेट संबंधी इकोसिस्टम को भारत में भी दोहराएँ तो इससे सिस्टम संबंधी एक खतरा भी पैदा हो सकता है। ऐसा इकोसिस्टम अंतिम उपयोगकर्ता की पहुँच को नियंत्रित करता है, जिसका अर्थ यह हुआ कि इनसे जुड़े खुदरा कारोबारी, वित्तीय संस्थानों, अन्य कंपनियों और मीडिया आदि को इनके द्वारा तय तकनीकी प्रतिमानों का पालन करना होगा।

इस तरह अलीबाबा और टेन्सेंट, गूगल जैसी स्थिति में आ जाएँगे और वे उपयोगकर्ता की पहुँच को नियंत्रित कर यह तय कर सकेंगे कि कौन सा संगठन सफल या असफल होगा। कल्पना कीजिए कि अगर ऐसी चीनी तकनीक का इस्तेमाल भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण एप्लीकेशन्स के लिए हो तो क्या हो।

रिपोर्ट के अनुसार, इन कंपनियों का अपना इकोसिस्टम है, जिसमें ऑलनाइन स्टोर, पेमेंट गेटवे, संदेश सेवाएँ आदि होती हैं। उनका एक निवेश किसी भारतीय कंपनी को इस इकोसिस्टम में खींच सकता है और इसका मतलब इनका अपने डाटा पर नियंत्रण समाप्त हो जाना भी हो सकता है। इसमें कहा गया है कि पेटीएम तथा फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को तो चीनी कंपनियों ने पूरी तरह अधिग्रहित ही कर लिया है।

तीखी प्रतिक्रियाएँ

भारत में चीनी टेक कंपनियों के निवेश पर गेमिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ और कोलकाता स्थित जानी-मानी ऑनलाइन गेम अनुसंधान और विकास कंपनी एबिलिटी गेम्स के संस्थापक और प्रबंध निदेशक सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी सूरज चोखाणी ने कहा कि आधुनिक समय में जब पूरी दुनिया एक तरह से वैश्विक गाँव यानी ग्लोबल विलेज में तब्दील हो गई है, किसी भी कंपनी के विकास के लिए अन्य देशों की कंपनियों से तकनीकी गठजोड़ और निवेश अनिवार्य है।

पर जहाँ तक चीन का सवाल है, उसे केवल एकतरफा ढंग से निवेश नहीं करना चाहिए और अपने दरवाजे भी भारतीय कंपनियों के लिए खोलने चाहिए। इससे व्यापार संतुलन भी कायम रह सकेगा। निवेश एकतरफा नहीं होना चाहिए।

जाने माने राष्ट्रवादी कार्यकर्ता, लेखक और जन की बात के संस्थापक प्रदीप भंडारी ने कहा कि भारत को यह देखना चाहिए कि निवेश की आड़ में चीन आर्थिक साम्राज्यवाद फैलाने में सफल न हो जाए। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के बाद से चीन वैश्विक स्तर पर परेशानी में है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि भारत चीन को किसी सच्चे दोस्त के तौर पर न देखे बल्कि इसे एक ऐसी प्रतिस्पर्धी ताकत के रूप में देखे, जो हमारे रणनीतिक हितों को बाधित कर सकता है।

ऐसे में भारत को चीन के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह खुले रखने की नीति की जगह एक ऐसी रूकावट वाली और सावधानीपूर्ण नीति का पालन करना चाहिए जो चीनी निवेश की पड़ताल कर इसके जरिए आर्थिक साम्राज्यवाद के किसी भी प्रयास को रोक सके।

गुजरात के अहमदाबाद स्थित ऑनलाइन गेम खेलने वाले एक गेमर मनोज दवे (परिवर्तित नाम) ने कहा कि चीन और इसकी कंपनियों के तौर तरीकों से उन्हें बहुत खीझ हाेती है। उन्होंने कहा,

“ऐसे समय में जब सरकारी मंजूरी के बिना भारत में किसी तरह के चीनी निवेश पर पूरी रोक लगी हुई है और जब पाकिस्तान पर भी दुनिया भर से सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, मेरे लिये यह स्तब्धकारी है कि पूर्व में मेक इन इंडिया और राष्ट्रवाद को लेकर लंबी चौड़ी बाते करने वाली पेटीएम जैसी कंपनी चीन समर्थित और पाकिस्तान स्थित कंपनी दराज़ से गठजोड़ कर रही है। मैं तो अब इसे कभी भी नहीं इस्तेमाल करूँगा और अपने मित्रों से भी इसका बहिष्कार करने का आग्रह करूँगा। चीनी पैसे से कारोबार करने वाली कंपनियों का भारत की जनता को निश्चित तौर पर बहिष्कार करना चाहिए।

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