अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद पर बनी पहली बायोपिक को दूरदर्शन ने प्रसार भारती ओटीटी पर प्रसारित करने से मना कर दिया। इस बायोपिक के निर्माता नायब शोएब चौधरी हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रसार भारती के प्रोग्राम एग्जिक्यूटिव ने उनसे कहा,
“मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि सर सैयद अहमद खान पर आधारित कार्यक्रम की पेशकश करने वाला आपका प्रस्ताव पीबी यानी प्रसार भारती ओटीटी आगामी प्लेटफॉर्म पर रेवेन्यू शेयरिंग मोड (RSM) के तहत प्रसारण/स्ट्रीम के लिए योग्य नहीं हो सका।”
इस कारण को सुन शोएब बोले-
“मैंने डीडी के लिए जो धारावाहिक बनाया था, वह डीडी के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चला. यह चौंकाने वाला है कि एक प्रमुख सुधारवादी और शिक्षाविद् सर सैयद पर मेरी बायोपिक नेशनल पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीमिंग के लिए अयोग्य करार दी गई। ऐसा लगता है कि डीडी ने अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए मेरे प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।”
सर सैयद अहमद खान की विचारधारा और बँटवारा
बता दें कि जिन ‘सर सैयद अहमद खान’ को प्रमुख सुधारवादी बताकर उनकी जीवनी को लोगों के आगे लाने के प्रयास हो रहे हैं, वही सर सैयद अहमद खान एक समय में 1857 की क्रांति को अंग्रेजों के सामने ‘हरामजदगी’ बताया था। उन्होंने क्रांति के दौरान अंग्रेजों की नजर में मजहब विशेष के लिए ‘दया’ पैदा करने के लिए सर सैयद अहमद ने राय दी थी कि अंग्रेजों को अपने राजकाज में मुस्लिमों की भर्ती करनी चाहिए जिससे इस तरह की ‘हरामजदगी’ फिर न हों।
इतना ही नहीं, विभाजन के समय हुए भीषण रक्तपात और नरसंहार की नींव सर सैयद बहुत पहले ही रख चुके थे। उन्होंने मुस्लिम हितों का स्वतंत्र और अलग तरीके से विचार करना शुरू किया। उनका सिद्धांत द्विराष्ट्र से भी ज्यादा भयानक था क्योंकि वो चाहते थे कि एक देश दूसरे को जीतकर अपनी सत्ता विकसित करे।
वर्ष 1888 को मेरठ में दिए अपने भाषण (Allahabad: The Pioneer Press, 1888 में प्रकाशित) में उन्होंने कहा था-
“सबसे पहला सवाल यह है कि इस देश की सत्ता किसके हाथ में आने वाली है? मान लीजिए, अंग्रेज अपनी सेना, तोपें, हथियार और बाकी सब लेकर देश छोड़कर चले गए तो इस देश का शासक कौन होगा? उस स्थिति में यह संभव है क्या कि हिंदू और मुस्लिम कौमें एक ही सिंहासन पर बैठें? निश्चित ही नहीं। उसके लिए ज़रूरी होगा कि दोनों एक दूसरे को जीतें, एक दूसरे को हराएँ। दोनों सत्ता में समान भागीदार बनेंगे, यह सिद्धांत व्यवहार में नहीं लाया जा सकेगा।”
उन्होंने आगे कहा-
“इसी समय आपको इस बात पर ध्यान में देना चाहिए कि मुस्लिम हिंदुओं से कम भले हों मगर वे दुर्बल हैं, ऐसा मत समझिए। उनमें अपने स्थान को टिकाए रखने का सामर्थ्य है। लेकिन समझिए कि नहीं है तो हमारे पठान बंधू पर्वतों और पहाड़ों से निकलकर सरहद से लेकर बंगाल तक खून की नदियाँ बहा देंगे। अंग्रेज़ों के जाने के बाद यहाँ कौन विजयी होगा, यह अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। लेकिन जब तक एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को जीतकर आज्ञाकारी नहीं बनाएगा तब तक इस देश में शांति स्थापित नहीं हो सकती।”
फिर समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों को भड़काते हुए उन्होंने कहा-
“जैसे अंग्रेज़ों ने यह देश जीता वैसे ही हमने भी इसे अपने अधीन रखकर गुलाम बनाया हुआ था। वैसा ही अंग्रेज़ों ने हमारे बारे में किया हुआ है। …अल्लाह ने अंग्रेज़ों को हमारे शासक के रूप में नियुक्त किया हुआ है। …उनके राज्य को मज़बूत बनाने के लिए जो करना आवश्यक है उसे ईमानदारी से कीजिए। …आप यह समझ सकते हैं मगर जिन्होंने इस देश पर कभी शासन किया ही नहीं, जिन्होंने कोई विजय हासिल की ही नहीं, उन्हें (हिंदुओं को) यह बात समझ में नहीं आएगी। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि आपने बहुत से देशों पर राज्य किया है। आपको पता है राज कैसे किया जाता है। आपने 700 साल भारत पर राज किया है। अनेक सदियाँ कई देशों को अपने आधीन रखा है। मैं आगे कहना चाहता हूँ कि भविष्य में भी हमें किताबी लोगों की शासित प्रजा बनने के बजाय (अनेकेश्वरवादी) हिंदुओं की प्रजा नहीं बनना है।”
उनके इन्हीं बयानों और विचारों को देख-सुन मौलाना आज़ाद ने एक बार अपने भाषण में सर सैयद अहमद खान के राजनीतिक विचारों को हिंदुस्तान के लिए सबसे बड़ी ग़लती बताया था। उन्होंने कहा था कि शिक्षा और सामाजिक कार्यों की आड़ में सैयद अहमद खान ने जो राजनैतिक एजेंडा चलाया, उसके लिए वे उन्हें कभी माफ़ नहीं कर पाएँगे। मौलाना आजाद का विचार था कि सैयद अहमद खान के विचारों ने भारतीय मुसलमानों के एक धड़े को ग़लत दिशा में सोचने पर उकसा दिया और जिसका परिणाम बँटवारा था।