दिल्ली विश्वविद्यालय के इंग्लिश डिपार्टमेंट से संबंधित अध्ययन सामग्री विवादों के घेरे में है। विश्वविद्यालय में गुजरात दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका और हिंदू देवताओं से संबंधित विवादित अध्ययन सामग्री को सिलेबस में शामिल करने का विरोध किया जा रहा है। यह विरोध गुरुवार (11 जुलाई) को स्नातक पाठ्यक्रम की समीक्षा के लिए गठित एक स्थायी समिति की बैठक में किया गया।
स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य रसल सिंह के अनुसार, गुजरात दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित एक कहानी ‘Manibein alias Bibijaan’ में बजरंग दल और RSS से संबंधित संगठनों को बेहद ख़राब भूमिका में दर्शाया गया है। उन्होंने कहा, “उन्हें (RSS और बजरंग दल) गुजरात दंगों में हमलावर के रूप में दिखाया जा रहा है।”
रसल सिंह ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि हिंदू देवताओं का चित्रण समलैंगिक के रूप में किया जाएगा, ‘जिसके लिए संदर्भ भागवत पुराण, शंकर पुराण, शिव पुराण से दिया जाएगा’।
रसल सिंह ने यह भी कहा कि उन्होंने समिति के समक्ष अपनी आपत्तियाँ रखी हैं। इसके लिए उन्हें सूचित किया गया है कि उनकी असहमति को सोमवार (15 जुलाई) को अकादमिक परिषद की बैठक में इंग्लिश डिपार्टमेंट द्वारा प्रकाश में लाया जाएगा।
उन्होंने च्वाइस बेस्ड करिकुलम सिस्टम में किए गए बदलावों पर भी प्रकाश डाला। इस पर उन्होंने कहा कि सिलेबस को 30% के बजाय पूरी तरह से बदल दिया गया। श्री सिंह ने कहा कि कम्युनिकेशन स्किल्स का पेपर पूरी तरह से साहित्य से भर दिया गया है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि ‘इंग्लिश में भारतीय लेखन’ के पेपर की जगह, ‘Litrerature and Caste’ और ‘Interrogating Queerness’ शुरू किए जा रहे थे।
सिंह ने प्राचीन और वैदिक साहित्य में समलैंगिकता के बारे में बात करते हुए ‘Interrogating Queerness’ पर शिक़ायत की। उन्होंने कहा,
“मैंने एक अध्याय पर आपत्ति जताई, जिसमें बताया गया है कि प्राचीन और वैदिक साहित्य में LGBTQ का मूल कैसे पाया जाता है। और उन्होंने एक उदाहरण दिया कि गणेश और कार्तिकेय दोनों Same-Sex Love से पैदा हुए थे। यह आपत्तिजनक है। ऐसी सामग्री दिमाग के लिए ज़हरीली है और हानिकारक व विभाजनकारी है। यह भारतीय राज्य, संस्कृति और लोकाचार के ख़िलाफ़ एक साज़िश है।”
इंग्लिश डिपार्टमेंट के प्रमुख राज कुमार ने रसल सिंह के दावों पर कहा,
“एकैडमिक काउंसिल के सदस्य अनावश्यक रूप से हमारे सिलेबस को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, बावजूद इसके कि हम उन्हें समझा रहे हैं कि हम अपने सिलेबस में कई दृष्टिकोण दे रहे हैं। कहानी काल्पनिक है और वास्तव में गुजरात दंगों के बारे में नहीं है। लेकिन हमारे छात्रों को सिखाने के लिए कुछ है कि एक इंसान की कोई एक निश्चित पहचान कैसे नहीं हो सकती। इसकी वजह यह है कि कहानी में एक चरित्र है।”
स्कूल ऑफ़ ओपन लर्निंग (SOL) के इंग्लिश डिपार्टमेंट के एक शिक्षक ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि यह कहानी लंबे समय से डीयू के पाठ्यक्रम का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “यह डीयू के पुराने इंग्लिश पाठ्यक्रम में था और इसलिए SOL में भी हमारे पास है।” लेकिन शिक्षक, जो गुमनाम रहना चाहते थे, उन्होंने इस कहानी की प्रकृति साम्प्रदायिक है पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।