Friday, March 29, 2024
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समाज सेवा के लिए गायन छोड़ना चाहती थीं लता मंगेशकर, सावरकर ने समझाया और बनीं सुर की देवी: कहानी राष्ट्रभक्ति के एक रिश्ते की

भारत रत्न लता मंगेशकर और उनका परिवार उन लोगों में से हैं, जिन्होंने कभी भी कॉन्ग्रेस और उसके वफादारों के बनाए गए सिस्टम के प्रोपेगेंडा पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने वीर सावरकर भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित देशभक्त के तौर पर हमेशा याद किया।

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और हिंदुत्व के अग्रदूत वीर सावरकर भारतीय इतिहास के उन शख्सियतों में से हैं जिनकी छवि धूमिल करने के लगातार प्रयास हुए। दशकों तक सरकारें उनकी उपेक्षा करती रहीं और अपमानजनक व्यवहार किया। इन सरकारों में से अधिकतर कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली थी। बहुत ही सक्रिय तरीके से वीर सावरकर की छवि को धूमिल करने के प्रयास हुए ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कम किया जा सके।

लेकिन भारत रत्न लता मंगेशकर और उनका परिवार उन लोगों में से हैं, जिन्होंने कभी भी कॉन्ग्रेस और उसके वफादारों के बनाए गए सिस्टम के प्रोपेगेंडा पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने पाया कि वीर सावरकर भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित देशभक्त और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो कविता और लेखन का कार्य भी करते थे।

विनायक दामोदर सावरकर या वीर सावरकर को हिंदुत्व के राजनीतिक दर्शन को स्पष्ट रूप से सामने रखने के लिए जाना जाता है। वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, वकील और लेखक थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में नासिक जिले के पास भागलपुर गाँव में हुआ था। वे हिंदू महासभा से जुड़े थे और हिंदुत्व के पैरोकार थे। 1910 का साल था जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें क्रांतिकारी समूह ‘इंडिया हाउस’ से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया। वीर सावरकर को 1911 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह स्थित सेलुलर जेल में रखा गया था। मार्सिले से ले जाते वक्त वहाँ से भागने की उनकी असफल कोशिशों के बाद उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सेलुलर जेल में अपनी सजा काटते हुए वीर सावरकर ने कई विषयों पर लिखा था। उनकी लेखनी में मातृभूमि के लिए उनकी तड़प से लेकर हिंदुत्व की समझ को लेकर उनकी गहराई का पता चलता है।

वीर सावरकर और मंगेशकर परिवार के संबंध

स्वर कोकिला लता मंगेशकर और उनका परिवार वीर सावरकर के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को लेकर हमेशा गौरवान्वित रहा है। हर साल सावरकर की जयंती और पुण्यतिथि पर (28 मई और 26 फरवरी) लता मंंगेशकर हिंदुत्व के इस विचारक को सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजलि देने और अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमूल्य योगदान को दोहराने से कभी नहीं कतराती हैं।

इसी क्रम में इस साल भी लता मंगेशकर ने सोशल मीडिया के जरिए महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को याद किया था। उन्होंने अपने फॉलोवर्स के साथ वीर सावरकर के साथ पुरानी तस्वीरें साझा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।

लता मंगेशकर ने सावरकर को ‘भारत माता का सच्चा सपूत’ बताते हुए उन्हें पिता समान बताया। वीर सावरकर जब जीवित थे तो लता मंगेशकर उन्हें ‘तात्या’ के नाम से संबोधित करती थीं। यह शब्द पिता या बुजुर्ग पुरुष के लिए सम्मान में इस्तेमाल किया जाता है।

पिछले साल प्रसिद्ध गायिका ने सावरकर को याद करते हुए कहा था कि उनका नाम मंगेशकर परिवार के हृदय में दर्ज था। ट्वीट के साथ ही उन्होंने एक वीडियो भी शेयर किया था जिसे लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर ने संगीतबद्ध किया था। यह गीत वीर सावरकर ने उनके पिता के नाटक ‘संन्यास खडग’ के लिए लिखा था।

साल 2019 में लता ने अपने परिवार और स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के बीच रहे करीबी संबंध को याद करते हुए एक ट्वीट किया था। महान गायिका ने कहा था, “वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्‍ठ संबंध थे, इसलिए उन्होंने मेरे पिताजी की नाटक कंपनी के लिए नाटक ‘संन्यास खडग’ लिखा था। नाटक का पहली बार मंचन 18 सितम्बर 1931 को हुआ था। इसका एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था।”

वीर सावरकर वह सलाह

यह एक अल्पज्ञात तथ्य है कि अपने करियर की शुरुआत में लता मंगेशकर ने अपना समय और ऊर्जा समाज सेवा और गरीबों के कल्याण के लिए समर्पित करने के लिए गायन छोड़ने का मन बना लिया था। लेखक यतींद्र मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘लता: सुर गाथा‘ में खुलासा किया है कि कैसे वीर सावरकर ने लता मंगेशकर को यह निर्णय लेने से रोका और उन्हें गायन जारी रखने के लिए प्रेरित किया।

अपनी पुस्तक में मिश्रा कहते हैं कि लता ने किशोरावस्था में ही समाज सेवा करने का निश्चय कर लिया था। इसके लिए वह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के साथ विचार-विमर्श और परामर्श कर रहीं थी और विभिन्न तरीकों पर विचार-विमर्श कर रही थीं, ताकि वह अपने संकल्पों को पूरा कर सकें। एक समय ऐसा भी आया जब लता समाज के लिए गायन छोड़ने जा रही थीं। उस वक्त सावरकर ने उनसे मिलकर उन्हें समझाया और उन्हें उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद दिलाई जो उस समय भारतीय शास्त्रीय संगीत और आर्ट फर्ममेंट में अग्रणी थे।

सावरकर ने ही लता को समझाया था कि संगीत और गायन के प्रति समर्पित होकर भी वो समाज की सेवा कर सकती हैं। इसके बाद लता मंगेशकर ने संगीत में करियर बनाने को लेकर अपनी धारणाओं को बदला। सावरकर की सलाह पर अमल करते हुए वो पूरी तरह से संगीत की दुनिया में डूब गईं और इसका परिणाम ये हुआ कि वे महान गायिका बनकर उभरीं। अगर लता मंगेशकर को सावरकर की सलाह नहीं मिलती तो ये दुनिया उत्कृष्ट गायकों में से एक (लता मंगेशकर) से वंचित रह जाती।

वीर सावरकर के महान त्याग के बावजूद इतिहास इस स्वतंत्रता सेनानी के प्रति कभी भी नरम नहीं रहा है। साल 1947 में देश की आजादी के बाद से ही सरकारों ने सावरकर को तिरस्कार का पात्र बनाया। इतना ही नहीं उन्हें गाँधी जी की हत्या के केस में फँसाया गया था। बाद में सबूतों की कमी के कारण उन्हें बरी कर दिया गया।

हाल ही में लेखक विक्रम संपत स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर अपने समापन खंड ‘सावरकर: ए कंटेस्टेड लिगेसी 1924-1966’ के साथ सामने आए। इसमें उन्होंने सावरकर के असाधारण जीवन के अंतिम चरण का वर्णन किया है। यह पुस्तक 26 जुलाई 2021 को जारी की गई थी। इसमें वीर सावरकर को झूठा बदनाम करने और उनकी प्रतिष्ठा धूमिल करने के लिए लगातार कॉन्ग्रेस सरकारों और लेफ्ट-लिबरल्स बुद्धिजीवियों द्वारा किए गए जोरदार प्रयासों को लेकर चल रही बहस को तेज कर दिया है।

सावरकर की रचना, लता मंगेशकर के भाई बर्खास्त

वीर सावरकर द्वारा लिखी गई कविताओं पर मंगेशकर परिवार, जिसमें लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर और उनकी अन्य बहनें व इकलौते भाई हृदयनाथ संगीत के धुनों की रचना कर रहे थे। उनका यह कार्य वीर सावरकर को सदा खलनायक बताने की कोशिश करने वाली कॉन्ग्रेस को नहीं जँचा। नतीजा यह हुआ कि कॉन्ग्रेस के शासनकाल के दौरान ऑल इंडिया रेडियो ने 1954 में हृदयनाथ मंगेशकर को वीर सावरकर की कविताओं पर उनकी संगीत रचना के लिए बर्खास्त कर दिया था।

उस घटना के सालों बीतने के बाद एबीपी माझा को दिए एक इंटरव्यू में हृदयनाथ मंगेशकर ने स्वीकार किया था कि वीर सावरकर की लिखी कविताओं का चयन करने के कारण उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया था। मंगेशकर ने मराठी में कहा था, “मैं उस समय ऑल इंडिया रेडियो में काम कर रहा था। मैं 17 साल का था और मेरी सैलरी 500 रुपए प्रति माह थी। यह आज मूँगफली की तरह होगा, लेकिन उस समय 500 रुपए मोटी रकम होती थी। लेकिन मुझे ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया था, क्योंकि मैंने वीर सावरकर की प्रसिद्ध कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमि, सागर प्राण तालमला’ के लिए एक संगीत रचना बनाने का विकल्प चुना था।”

लता मंगेशकर ने साल 2009 में सावरकर द्वारा लिखी गई लोकप्रिय कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमिला, सागर प्राण तालमला’ को लिखे जाने के 100 साल बाद याद किया कि कैसे इस कविता ने देशभक्ति की भावना जगाई और न केवल मराठी बल्कि सभी भारतीयों के लिए प्रेरणादायक बनी थी। उस दौरान रोते हुए लता मंगेशकर ने अफसोस जताया था कि वीर सावरकर को स्वतंत्र भारत में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।

मूल रूप से यह लेख जिनित जैन ने अंग्रेजी में लिखी है। इसका अनुवाद कुलदीप सिंह ने किया है। मूल लेख पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

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Jinit Jain
Jinit Jain
Writer. Learner. Cricket Enthusiast.

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