भारतीय इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह का जिक्र सबसे गौरवशाली पन्नों में से एक है। लेकिन 19वीं सदी के इस महानायक का साहस और शौर्य आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। हाल ही में ‘बीबीसी वर्ल्ड हिस्ट्रीज मैगजीन’ की तरफ से कराए गए एक सर्वेक्षण में महाराजा रणजीत सिंह दुनिया भर के नेताओं को पछाड़कर ‘सर्वकालिक महान नेता’ चुने गए।
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— Times of India (@timesofindia) March 6, 2020
इस सर्वेक्षण में पाँच हजार से अधिक पाठकों ने हिस्सा लिया। 38% से ज्यादा मत पाने वाले रणजीत सिंह की सहिष्णु साम्राज्य बनाने के लिए प्रशंसा की गई। इस प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर अफ्रीकी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अमिलकार काबराल रहे, जिन्हें 25% मत मिले। उन्होंने पुर्तगाल के आधिपत्य से गिनी को मुक्त कराने के लिए दस लाख से अधिक लोगों को एकजुट किया था और इसके बाद कई अफ्रीकी राष्ट्र स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए प्रोत्साहित हुए थे।
युद्ध के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल सूझबूझ और त्वरित फैसले लेने के लिए 7% वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन चौथे और ब्रिटिश साम्राज्ञी एलिजाबेथ प्रथम महिलाओं में सर्वाधिक वोट प्राप्त कर पाँचवें स्थान पर रहीं।
ज्ञात हो कि ‘शेर ए पंजाब’ के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह आर्थिक एवं राजनीतिक अस्थिरता के बाद सत्ता में आए थे। 19वीं सदी के शुरुआती दशक में उन्होंने सिख खालसा सेना का आधुनिकीकरण किया था। महाराजा रणजीत सिंह की एक आँख खराब थी। इससे जुड़ी एक प्रचलित कथा यह भी है कि वो कहते थे, ”भगवान ने मुझे एक आँख दी है, इसलिए उससे दिखने वाले हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर और गरीब मुझे सभी बराबर दिखते हैं।”
महाराजा रणजीत सिंह से जुड़े प्रमुख तथ्य
कहते हैं महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर में मन्नत माँगी थी कि काबुल फतह करवा दीजिए, उसके बाद छत सोने से मढ़ा दूँगा। सरदार हरि सिंह नलवा जो रणजीत सिंह की सेना के सेनाध्यक्ष थे, का अधूरा कार्य डोगरा राजपूतों ने पूरा किया और काबुल भी खालसा साम्राज्य के अधीन आ गया। उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने बाबा विश्वनाथ के शिखर पर 880 किलो सोना मढ़वाया।
महाराजा रणजीत सिंह ने ही हरमंदिर साहिब यानी, स्वर्ण मंदिर (गोल्डन टेम्पल) का जीर्णोद्धार करवाया था। महाराजा रणजीत सिंह उन व्यक्तियों में से थे जिन्होंने पूरे पंजाब को एकत्रित कर रखा था और अपने रहते कभी राज्य के आस-पास अंग्रेजों को आने भी नहीं दिया। उस समय पंजाब पर अफगान और सिखों का अधिकार था और उन्होंने पूरे पंजाब को कुछ मिसलो में बाँट दिया था। महज दस साल की उम्र में अपना पहला युद्ध लड़ने और जीतने वाले रणजीत सिंह को बचपन में चेचक हो गया था। इसकी वजह से उनकी बाईं आँख की रोशनी कम होती गई।
अपने चालीस साल के शासन के दौरान सिख सम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह एक धर्मनिरपेक्ष राजा की तरह रहे, वो हिन्दुओं और सिखों के हक़ के लिए हमेशा खड़े रहे। उन्होंने उस समय वसूले जाने वाले जजिया पर रोक लगाई थी।
रणजीत सिंह ने मात्र सत्रह साल की उम्र में भारत पर हमला करने वाले आक्रमणकारी जमन शाह दुर्रानी को हराया था। उन्होंने पूरे पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया था। यह वो समय था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने पेशावर, जम्मू-कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना- ‘सिख खालसा सेना’ को स्थापित करने का श्रेय भी रणजीत सिंह को ही जाता है। पंजाब उनके समय में बहुत शक्तिशाली सूबा था। उनके कारण ही लंबे अर्से तक अंग्रेज़ पंजाब को आधीन नहीं कर पाए थे।
ऐतिहासिक कूह-ए-नूर (कोहिनूर) की कहानी बड़ी दिलचस्प रही है। वर्ष 1839 तक यह महाराजा रणजीत सिंह के पास रहा था, वह इसे ताबीज के रूप में अपनी बाँह में पहनते थे। बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा-उल-मलिक से हासिल किया था। यह उन्होंने कश्मीर पर हमला कर शाह शुजा को छुड़ाने की शर्त पर लिया था। उनकी मृत्यु के बाद राज्य और इस कीमती हीरे की जिम्मेवारी उनके पाँच वर्षीय बेटे दलीप सिंह के ऊपर आ गई थी। लेकिन अंग्रेजों ने पंजाब को कब्जे में ले लिया और बालक दलीप सिंह को कोहिनूर और साम्राज्य सौंपने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार, 1851 में यह इंग्लैंड की महारानी के पास चला गया।