‘द कश्मीर फाइल्स’ ने उन तमाम भयावह कहानियों को एक बार फिर से स्वर दिया है, जिसे कश्मीर में हिंदुओं ने भोगा था। इनमें से एक कहानी सर्वानंद कौल ‘प्रेमी’ की भी है। 66 साल के कौल को इस्लामी आतंकियों ने उनके 27 साल के बेटे के साथ मार डाला था। पेड़ से टँगी लाश मिली थी। तिलक करने की जगह को छील कर चमड़ी हटा दी गई थी। पूरे शरीर पर सिगरेट से जलाने के निशान थे। हड्डियाँ तोड़ दी गई थी। पिता-पुत्र की आँखें निकाल ली गई थी। दोनों को फँदे से लटकाने के बाद मृत्यु सुनिश्चित करने के लिए गोली भी मारी गई थी। पिता-पुत्र की लाश 1 मई 1990 को मिली थी। अब कश्मीरी पंडित इस तारीख को ‘शहीदी दिवस’ या ‘शहादत दिवस’ के रूप में मनाते हैं।
कौन थे सर्वानंद कौल ‘प्रेमी’
सर्वानंद कौल उन कश्मीरी हिंदुओं में से थे, जिन्हें 19 जनवरी 1990 की तारीख भी नहीं डरा पाई थी। जब सब हिंदू जान बचाकर भाग रहे थे, तब उन्होंने कश्मीर में ही रहने का फैसला किया। उन्हें यकीन था कि उनकी समाज में जो ‘साख’ है, उसके कारण कोई भी उनके परिवार को नहीं छू सकता। वे कवि थे। अनुवादक थे। लेखक थे। इतने मशहूर थे कि कश्मीरी शायर महजूर ने उन्हें ‘प्रेमी’ उपनाम दिया था। दो दर्जन से अधिक किताबें लिखी थी। ‘भगवद गीता’, ‘रामायण’ और रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का कश्मीरी में अनुवाद किया था। बताते हैं कि संस्कृत, फ़ारसी, हिंदी, अंग्रेजी, कश्मीरी और उर्दू पर उनकी एक जैसी पकड़ थी। ‘सेकुलर’ इतने थे कि उनके पूजा घर में कुरान भी रखी हुई थी।
जब सर्वानंद कौल के घर पहुँचे ‘सेकुलर’ आतंकी
अप्रैल 1990 खत्म होने को था। एक रात तीन ‘सेकुलर’ आतंकियों ने कौल के दरवाजे पर दस्तक दी। परिवार को एक जगह बिठाया और कहा कि सारे गहने-जेवर एक खाली सूटकेस में रख दे। कौल से कहा कि वे सूटकेस लेकर उनके साथ आएँ। घरवाले जब रोने लगे तो उन्होंने कहा, “अरे! हम प्रेमी जी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। हम उन्हें वापस भेज देंगे।” 27 साल के बेटे वीरेन्द्र ने कहा कि पिता को अँधेरे में वापसी में समस्या होगी, तो वे साथ जाना चाहते हैं। आतंकियों ने कहा, “आ जाओ, अगर तुम्हारी भी यही इच्छा है तो!” दो दिन बाद दोनों की लाशें मिलीं थी। किस हालत में मिली थी, यह आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं।
‘हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें टारगेट किया जाएगा’
सालों बाद सर्वानन्द कौल के बड़े बेटे राजिंदर कौल ने उस घटना के बारे में इंडिया टुडे को बताया था। जिस रात आतंकी कौल और उनके बेटे को ले गए थे काफी बारिश हो रही थी। राजिंदर ने बताया था, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें टारगेट किया जाएगा। उम्मीद की थी कि दोनों (पिता और भाई) जल्द ही लौट आएँगे। मगर उनके शव मिले थे। मेरा भाई केवल 27 वर्ष का था, हाल ही में उसकी शादी हुई थी और उसका एक छोटा बच्चा था।”
‘मुस्लिम खुद कहते थे- बाल-बाँका नहीं होने देंगे’
राजिंदर के अनुसार जिस दिन उनके पिता और भाई की लाश मिली थी, उस दिन विश्वास और भाईचारे के तमाम पुल बह गए थे। जो भी बचे हुए कश्मीरी पंडित थे उन्होंने भी घाटी छोड़ दिया। 5 मई को सर्वानंद कौल के परिवार में जो बच गए थे वे भी कश्मीर से निकल गए और फिर लौटकर भी वहाँ न गए। राजिंदर ने बताया था, “मेरे पिता और परिवार की क्षेत्र में बहुत ज्यादा इज्जत थी। स्थानीय मुस्लिम खुद कहते थे- वे हमारा बाल-बाँका नहीं होने देंगे।”