अमेरिका की शॉर्टसेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी ग्रुप पर लगाए गए वित्तीय हेराफेरी के आरोपों से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 नवंबर, 2023) को सुनवाई की। न्यायालय ने कहा कि बाजार नियामक संस्था सेबी (SEBI) को मीडिया रिपोर्टों के आधार पर निर्णय लेने के लिए नहीं कहा जा सकता। सेबी की जाँच और विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर संदेह करने लायक कोई सामग्री नहीं मिली। इस मामले में कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
दरअसल याचिकाकर्ता ने अडानी समूह द्वारा की गई कथित धोखाधड़ी के आरोपों की जाँच की माँग करने के लिए जनहित याचिकाएँ दायर की गई थीं। इस मामले पर बहस करने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अडानी के कथित आचरण के बारे में निर्णय लेने के लिए अखबारों की रिपोर्टों का पालन करेगा। दरअसल, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश होते हुए वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इस मामले में सेबी का आचरण विश्वसनीय नहीं था।
प्रशांत भूषण ने कहा, “हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि सेबी की जाँच विश्वसनीय नहीं है। उनका कहना है कि 13 से 14 एंट्री अडानी से जुड़ी हैं, लेकिन वे इस पर गौर नहीं कर सकते, क्योंकि एफपीआई दिशानिर्देशों में संशोधन किया गया है।” उन्होंने कहा कि साल 2014 से SEBI अडानी ग्रुप की हेरफेर को नजरअंदाज कर रहा है।
इस संबंध में वकील भूषण ने राजस्व खुफिया निदेशालय के निदेशक नजीब शाह द्वारा जनवरी 2014 में सेबी के तत्कालीन निदेशक यूके सिन्हा को लिखे एक पत्र का हवाला भी दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कोयला आयात में मूल्य को अधिक दिखाकर पैसों की हेराफेरी की जा रही है।
इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “मिस्टर भूषण, मुझे नहीं लगता कि आप किसी वित्तीय नियामक से अखबार में छपी किसी बात को स्वीकार करने के लिए कह सकते हैं.. इससे सेबी की बदनामी नहीं होती.. क्या सेबी को अब पत्रकारों का पीछा करना चाहिए?” कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे सेबी की जाँच या विशेषज्ञ समिति की जाँच की निष्पक्षता पर संदेह किया जा सके।
जवाब में वकील प्रशांत भूषण ने कहा, “अगर पत्रकारों को ये दस्तावेज़ मिल रहे हैं तो सेबी को ये कैसे नहीं मिल सकते, जिससे पता चलता है कि श्री विनोद अडानी इन फंडों को नियंत्रित कर रहे थे? इतने सालों तक उन्हें ये दस्तावेज़ कैसे नहीं मिले? OCCRP, द गार्जियन आदि ने दिखाया है कि अधिकांश अदानी शेयरों में निवेश करने वाली इन ऑफशोर कंपनियों को विनोद अदानी द्वारा नियंत्रित किया गया था।”
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने फिर कहा, “न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए इसका कोई साक्ष्यात्मक मूल्य कैसे हो सकता है? ऐसे मामले में कारण बताओ कैसे हो सकता है? हम यह धारणा नहीं बना सकते कि यह विश्वसनीय है या इसमें विश्वसनीयता की कमी है।”
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि मीडिया रिपोर्ट अब भारत के कार्यों को प्रभावित करने के लिए ‘प्लांट’ की जा रही हैं। उन्होंने कहा, “भारत के भीतर फैसलों को प्रभावित करने के लिए भारत के बाहर कहानियां गढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण ओसीसीआरपी रिपोर्ट है।”
याचिकाकर्ताओं में से एक अनामिका जयसवाल ने सेबी पर हितों के टकराव और तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाया था। जयसवाल ने कहा था कि सेबी की कॉर्पोरेट गवर्नेंस कमेटी में सिरिल श्रॉफ सदस्य थे, जिनकी बेटी की शादी गौतम अडानी के बेटे से हुई है।
बार एंड बेंच के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अनामिका जयसवाल के हलफनामे का जिक्र करते हुए कहा, “मैं इसका जवाब देकर इसे विश्वसनीयता नहीं देना चाहता था। अगर हम ऐसी रिपोर्टों को देखना शुरू कर देंगे तो सेबी निरर्थक हो जाएगा।”
इस बीच, वकील प्रशांत भूषण ने विशेषज्ञ समिति में शामिल वकील सोमशेखर सुंदरेसन, जो अब बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए हैं और न्यायमूर्ति ओपी भट्ट को शामिल किए जाने पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सोमशेखर ने अपनी कानूनी प्रैक्टिस के दौरान सेबी के समक्ष अडानी का प्रतिनिधित्व किया था। वहीं, जस्टिस भट्ट उस कंपनी के अध्यक्ष थे, जिसने अडानी समूह के साथ साझेदारी की थी।
इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “वह (सोमशेखर) इन-हाउस वकील नहीं थे, वह एक वकील थे। वह 2006 में पेश हुए थे। यह मामला 17 साल बाद आया है। आपने कोई और उदाहरण भी संलग्न नहीं किया है, फिर हम इन अप्रमाणित आरोपों को रिकॉर्ड पर कैसे ले सकते हैं?”
बताते चलें कि हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद देश भर में सवाल उठने लगे थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को इस मामले की स्वतंत्र रूप से जाँच करने के अलावा सेवानिवृत्त न्यायाधीश एएम सप्रे की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने को कहा था। विशेषज्ञ समिति ने मई में अपनी रिपोर्ट दे दी थी। इसमें कहा था कि प्रथम दृष्टया इस मामले में सेबी की ओर से कोई चूक नहीं पाई गई।