अफगानिस्तान में पिछले कुछ वक्त में हिंदुओं और सिखों के साथ उत्पीड़न की कई घटनाएँ सामने आई है। इसके बाद भारत सरकार ने अफगानिस्तान के 700 सताए सिखों को जल्द ही देश लाने और आश्रय देने का फैसला किया है। खबरों के अनुसार सरकार सभी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा कर स्वतंत्रता दिवस से पहले इन्हें भारत लाने की तैयारी कर रही है।
सरकार ने 11 अफगान नागरिकों को 6 महीने का वीजा दिया है। ये आज (26 जुलाई, 2020) ही भारत पहुँचे हैं।
इसी अमन नाम के एक शख्स ने अपने ब्लॉग के लिए एक अफगान सिख का इंटरव्यू किया है। @Amaanbali नामक ट्विटर अकाउंट से उन्होंने इसे साझा किया है। इंटरव्यू देने वाले सरदार इकबाल सिंह अफगान गृहयुद्ध की शुरुआत में ही भारत आ गए थे। जब वे भारत आए थे तब उनकी बेटी लगभग एक साल की थी। उनके साथ उस समय 17 और परिवार भारत आए थे।
इकबाल सिंह ने अमन से कहा, “मैं अफगानिस्तान में गृह युद्ध शुरू होने के बाद 1994 में भारत आ गया। तब परिस्थियाँ अलग थीं और मुझे लगता है कि यह एक सही निर्णय था। मेरी शादी 1988 में हुई और उस वक्त मैं वहाँ से चला आया। तब जसप्रीत (बेटी) एक साल की थी। मैं नहीं चाहता था की जसप्रीत किसी भी तरह से परेशान हो। मुझे अब भी याद है कि मैंने जलालाबाद में अपने बैंक खातों को बंद कर उसमें मौजूद सभी पैसे निकाल लिए थे। यह एक भावनात्मक दिन था।”
इक़बाल सिंह ने बताया कि भारत में जीवन शुरू में मुश्किल था। शुरुआत में वे पश्चिमी दिल्ली में गुरुद्वारा सिंह साहेब में रहते थे। कुछ सालों में उनके पास बचे पैसे भी खर्च हो गए। हालाँकि, शुरुआती आठ वर्षों के बाद उनकी स्थित सामान्य हो गई थी।
वे कहते हैं, ” मैं एक भारतीय की तरह सामान्य जिंदगी मेट्रो शहर में गुजरने लगा। जो काम पर जाता है और शाम को अपने परिवार के पास वापस आता है। इसलिए शुरूआती 8 सालों में हुई परेशानियों को छोड़ कर मैं बाकी जिंदगी किसी अन्य व्यक्ति के समान ही जिया।”
उन्होंने कहा, “अग्रवाल साहब (जो करोल बाग में बैग बेचते हैं) उन्हीं समस्याओं का सामना करते हैं, जो मैं करता हूँ। हमारे साथ नस्लीय भेदभाव नहीं किया जाता है, न ही हमें कोई नीचा दिखाता है। भारतीय सिख समुदाय का अफगान सिखों के प्रति गहरा सम्मान है और वे हमेशा अफगानिस्तान के सिखों के लिए पूछते रहते हैं।”
इकबाल सिंह ने बताया कि अवैध संपत्ति पर कब्जा, अपहरण, हत्या, बलात्कार और धमकियाँ ऐसे ही कई मुद्दे थे, जिनका अफगान सिख सामना करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर वे तालिबान का सफाया कर देते हैं तो वे अफगानिस्तान में दोबारा बसने को तैयार हैं। लेकिन यह सिर्फ कल्पना मात्र है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब उन्होंने एक अफगानी के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका को अराजकता के लिए दोषी ठहराया था। लेकिन अब, उन्हें लगता है कि दोनों पक्षों को दोषी ठहराया जाना चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि वे भारत ही क्यों आए, इकबाल सिंह ने बताया कि पश्चिमी देशों में आर्थिक रूप से संपन्न लोगों ने पलायन किया। लेकिन मेरे जैसे मध्यम वर्ग के लोगों के लिए, भारत घर था और हमेशा रहेगा। उन्होंने यह भी बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम से जुड़े सवालों का जवाब देने से वे बचते हैं, क्योंकि हालिया विरोध प्रदर्शनों के दौरान ऐसे कई मौके आए हैं जब उनके बयानों को गलत तरीके से पेश किया गया।
उन्होंने बताया कि हाल ही में दिल्ली एंटी सीएए प्रदर्शन के दौरान करोलबाग बाजार में काफी युवा लड़की और लड़के आते थे और सीएए पर हमारी राय माँगते थे। बाद में वे उसे बदल देते थे। इसके साथ ही हमने भारत सरकार को दस्तावेजों और पासपोर्ट बनाने के लिए धन्यवाद देते हुए एक वीडियो बयान भी दिया है। हम खुद को अब भारतीय कह सकते हैं। कुछ लोगों को इससे भी समस्या है।
इकबाल सिंह ने बताया कि जब वे भारत आए थे तो उन्हें मजबूरी के कारण अपनी संपत्ति को बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर बेचना पड़ा था। अब वे एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान के मालिक है। उनका मकान मालिक एक हिंदू है। उन्होंने यह भी बताया कि कभी-कभार किराया समय पर नहीं दे पाने पर मकान मालिक उनसे कोई जबरदस्ती नहीं करते।
बकौल इकबाल सिंह, भारत सरकार को अफगानिस्तान से आने वाले सिखों की स्थिति को सुधारने के लिए उनके फाइनेंसियल वेलफेयर का ध्यान रखना है। उन्होंने अफगानिस्तान से सिखों को भारत लाने पर भी खुशी जताई है।