इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वो एक ऐसी पॉलिसी लेकर आएँ जिससे राज्य के अस्पतालों में पोस्टेड डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगे। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने इस मामले में चिंता जताते हुए कहा कि आज यह एक बड़ी समस्या है कि मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए जाता है और उसे निजी संस्थान में रेफर कर दिया जाता है।
अदालत ने कहा, “यह एक खतरा बन गया है कि मरीजों को इलाज के लिए निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है और राज्य सरकार द्वारा प्रांतीय चिकित्सा सेवाओं या राज्य मेडिकल कॉलेजों में नियुक्त डॉक्टर, मरीजों का इलाज और देखभाल नहीं कर रहे हैं। सिर्फ पैसे के लिए उन्हें निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है।”
गौरतलब है कि कोर्ट ने यह आदेश मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज के विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ अरविंद गुप्ता से जुड़ी याचिका पर पारित किया। डॉ गुप्ता के खिलाफ एक मरीज ने राज्य उपभोक्ता फोरम में शिकायत दी थी कि उन्होंने उस मरीज को प्राइवेट नर्सिंग होम भेजा और वहाँ उसका गलत इलाज हुआ। इसके बाद वो हाई कोर्ट पहुँचे।
इसके बाद ये मामला न्यायालय के समक्ष 2 जनवरी को उठा। कोर्ट ने सबसे पहले सवाल उठाया कि क्या डॉ गुप्ता को सरकारी सेवा में होने के बावजूद निजी सुविधा में मरीजों का इलाज करने की अनुमति दी जा सकती है? इसके बाद न्यायालय ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया था कि वह जाँच करे कि सरकारी डॉक्टर किस प्रकार निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं।
अदालत ने उस समय भी कहा था, “यह एक गंभीर मामला है। राज्य को नर्सिंग होम और मेडिकल दुकानों में निजी प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों के बारे में भी जाँच करनी चाहिए, जिन्हें विभिन्न राज्य मेडिकल कॉलेजों में नियुक्त किया गया है।”
8 जनवरी को कोर्ट को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं शिक्षा के प्रधान सचिव द्वारा 1983 के नियमों का हवाला देते हुए जानकारी दी गई कि कि ये नियम सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस करने से रोकते हैं। वहीं सरकारी वकील ने बताया कि 6 जनवरी को उन सभी जिलाधिकारियों को प्राइवेट प्रैक्टिस रोकने के 30 अगस्त 1983 के शासनादेश का पालन कराने का निर्देश जारी किया गया है, जिन जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थित है। इसको लागू करने का कोर्ट ने प्रमुख सचिव से हलफनामा मांगा गया है।
इसके बाद ही न्यायालय ने प्रधान सचिव को नियमों के क्रियान्वयन पर व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने को कहा। कोर्ट ने प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य को निर्देश दिया कि वे 1983 के आदेशों के प्रवर्तन का विवरण देते हुए व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें। इसके साथ ही, राज्य सरकार को एक नीति तैयार करने का भी निर्देश दिया गया ताकि सभी सरकारी डॉक्टरों पर निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाया जा सके। अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 फरवरी को होगी।