जैसे ही प्रकाशन संस्था ब्लूम्सबरी ने दिल्ली दंगों की सच्चाई बताने वाली पुस्तक ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ का प्रकाशन रोकने का फैसला किया, भारत के कई लेखकों ने उसके साथ अपने करार को ख़त्म कर दिया। लेखकों ने इस निर्णय के विरोध प्रदर्शन के रूप में अपनी आने वाली पुस्तकों के लिए ब्लूम्सबरी को प्रकाशक के रूप में हटा दिया। कई लेखकों ने प्रकाशन संस्था की इस मनमानी का विरोध किया है।
बता दें कि ब्लूम्सबरी ने इस्लामी कट्टरवादी और वामपंथी लॉबी के आगे झुकते हुए ये फैसला लिया। जेएनयू के प्रोफेसर और वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन को ब्लूम्सबरी ने एडवांस में रुपए दिए हैं, ताकि वो उनकी पुस्तक का प्रकाशन अधिकार पा सके। रंगनाथन ने घोषणा की है कि अगर दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक के प्रकाशन रोकने का फैसला वापस नहीं लिया जाता है वो और उनके सह-लेखक उस धनराशि को वापस लौटा देंगे और अपनी आगामी पुस्तक का प्रकाशन अधिकार भी उससे छीन लेंगे।
उन्होंने कहा कि कम्पनी ने जिस तरह से वामपंथी और इस्लामी लॉबी के आगे घुटने टेके हैं, इससे वो चकित हैं। उन्होंने कहा कि फासिस्ट ताकतों के दबाव में ब्लूम्सबरी द्वारा लिए गए इस निर्णय का हर एक लेखक और पाठक को विरोध करना चाहिए। ब्लूम्सबरी की वेबसाइट के अनुसार, आनंद और शीतल रंगनाथन की पुस्तक ‘फॉरगॉटन हीरोज ऑफ़ इंडियन साइंस’ जुलाई 2021 में रिलीज होने वाली है।
इससे पहले कम्पनी ने इन्हीं लेखक (आनंद रंगनाथन) के उपन्यास ‘द रैट ईटर’ को प्रकाशित किया था। लेखक संदीप देव ने भी घोषणा की है कि वो इस प्रकाशन संस्था से वो सारी किताबों के प्रकाशन अधिकार वापस ले रहे हैं, जो भविष्य में आने वाली थी। उन्होंने कम्पनी की ताज़ा हरकत को विचारों की हत्या करार देते हुए कहा कि उसने वामपंथी लॉबी के दबाव में आकर दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगाई है।
संदीप देव की अब तक 6 पुस्तकें ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है और आगे 9 ऐसी पुस्तकें आने वाली थीं, जिनका प्रकाशन उक्त कम्पनी को ही करना है। उन्होंने उन सभी 9 किताबों के प्रकाशन का अधिकार ब्लूम्सबरी से छीन लिया है। उन्होंने घोषणा की है कि वो इस कम्पनी के साथ अब भविष्य में कभी काम नहीं करेंगे। वो अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और मराठी में कई पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं।
आईएएस अधिकारी संजय दीक्षित ने भी Nullifying Article 370और Enacting CAA नामक पुस्तकों को ब्लूम्सबरी से प्रकाशित न कराने का फैसला लिया है। ये पुस्तकें 20 सितम्बर को ही रिलीज होने वाली थी। उन्होंने प्रकाशन संस्था के सेंसरशिप को अस्वीकार्य करार देते हुए कहा कि वो उनके साथ अपने संबंधों को ख़त्म कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कम्पनी को भी दर्द होना चाहिए, इसीलिए वो पब्लिशिंग हटाने वाला पत्र उसे लिख रहे हैं।
संजय दीक्षित ने तो उसके द्वारा प्रकाशित की जाने वाली हैरी पॉटर सीरीज की किताबों का भी सम्पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की। उन्होंने कहा कि रोज के 10-15 करोड़ रुपए तो कम्पनी इसी टाइटल से कमा लेती है, इसीलिए हमें इन किताबों को न खरीदने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने एक यूजर की सलाह पर ये भी कहा कि अगर कम्पनी अगले कुछ दिनों में इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो हैरी पॉटर सीरीज की पुस्तकों को सार्वजनिक रूप से जलाया जाना चाहिए।
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने घोषणा की है कि वो ब्लूम्सबरी से अपनी किसी भी पुस्तक का प्रकाशन नहीं कराएँगे। उन्होंने कहा कि प्रकाशन जगत में चंद लोगों का बड़ा प्रभाव और एक लॉबी के एकाधिकार को लेकर उन्होंने पहले भी आवाज़ उठाई है। उन्होंने इसे वैचारिक सेंसरशिप करार दिया। हरसद मधुसूदन ने भी ऐसा ही ऐलान किया है। इस बीच गरुड़ प्रकाशन ब्लूम्सबरी से हटाई गई पुस्तकों के प्रकाशन के लिए आगे आया है।
I have five titles with Bloomsbury India and “Sunāma” was supposed to the sixth one, with several others planned. However, if Bloomsbury India sticks with its unfortunate decision, I will not be publishing “Sunāma” or any of my future books with them.
— Nityānanda Miśra (मिश्रोपाख्यो नित्यानन्दः) (@MisraNityanand) August 23, 2020
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वहीं फाइनेंस प्रोफेशनल और संस्कृत विशेषज्ञ नित्यानंद मिश्रा ने भी ऐलान किया है कि उन्होंने ‘सुनामा: ब्यूटिफुल संस्कृत नेम्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन ब्लूम्सबरी से न कराने का फैसला लिया है। इससे पहले इसका प्रकाशन वही करने वाली थी। उन्होंने कहा एक संगठित लॉबी एक विचारधारा के विरुद्ध है और दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक के लेखकों के प्रति समर्थन जताते हुए वो ये निर्णय ले रहे हैं।
वो अब तक ब्लूम्सबरी के साथ 5 पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं और छठी आने वाली थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी कई अन्य पुस्तकों को लेकर बातचीत चल रही थी, जो अब उक्त प्रकाशन संस्था के साथ नहीं आएगी। हालाँकि, इस कारण उनकी अगली पुस्तक कुछ हफ़्तों बाद रिलीज हो सकेगी। उन्होंने दूसरे पब्लिशरों को उनसे संपर्क करने को कहा है और पाठकों से देरी के लिए माफ़ी माँगी है।
इधर आतिश तासीर ने मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक को सत्ता का प्रोपेगेंडा करार देते हुए कहा कि विलियम डेलरिम्पल ने इसके प्रकाशन पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके लिए वो उनके आभारी हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि स्कॉटिश लेखक के बिना ये संभव नहीं हो पाता। मोनिका अरोड़ा की इस पुस्तक में जाँच और इंटरव्यूज के हवाले से दिल्ली दंगों का विश्लेषण किया गया है।