एक तरफ अयोध्या के धन्नीपुर में अरबी स्टाइल में बनने वाली मस्जिद के लिए हिंदू पैसा दे रहे हैं। दूसरी ओर कुछ मुस्लिम संगठन बद्र मस्जिद का अड़ंगा डालकर राम मंदिर को विवादों में लाना चाहते हैं। इन सबके बीच अयोध्या के मुस्लिमों की ख्वाहिश यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जनवरी 2024 में राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आएँ तो धन्नीपुर की मस्जिद की बुनियाद भी रख दें।
कुल मिलाकर यह उसी गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना है जिसमें वर्षों से भारत का हिंदू पिसता रहा है। जिसके कारण उसे अपने अराध्य श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाने के लिए करीब 500 साल की प्रतीक्षा करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी।
प्राण-प्रतिष्ठा से ठीक पहले राम मंदिर को लेकर विवाद खड़े करने की कोशिश वाला संगठन अंजुमन मुहाफिज मसाजिद व मकाबिर कमेटी है। इस समूह ने राम परिपथ में आने वाली उस मस्जिद को ले कर शिकायत दर्ज करवाई है, जिसको शिफ्ट करने का एग्रीमेंट सबकी सहमति से पहले ही लिखित तौर पर हो चुका है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मामला अयोध्या के पांजी टोला स्थित मस्जिद बद्र से जुड़ा हुआ है। यह मस्जिद अयोध्या से लखनऊ-गोरखपुर नेशनल हाईवे को जोड़ने वाले 13 किलोमीटर रामपथ के मार्ग पर मौजूद है। मुस्लिमों का दावा है कि यहाँ रोज इबादत होती है। गुरुवार (5 अक्टूबर 2023) को अंजुमन मुहाफिज मसाजिद व मकाबिर कमेटी के पदाधिकारी अध्यक्ष आजम कादरी के साथ अयोध्या के SDM राम कुमार शुक्ला के पास पहुँचे। एक ज्ञापन देते हुए इस मस्जिद को अवैध तरीके से राम जन्मभूमि ट्रस्ट को बेचे जाने का आरोप लगाया।
उपजिलाधिकारी को दी गई शिकायत में कमेटी के सदस्यों ने मस्जिद के मुतवल्ली रईस अहमद और गवाह नूर आलम पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। शिकायतकर्ताओं ने बताया कि रईस अहमद और नूर आलम ने वक्फ की जमीन में बनी बद्र मस्जिद का 30 लाख रुपए में धोखाधड़ी व गुमराह करके समझौता किया है। इस समझौते के तहत इन दोनों को 15 लाख रुपए एडवांस भी मिलने का दावा कया गया है। शिकायत में तर्क दिया गया है कि वक्फ की जमीन बेचने का अधिकार रईस और नूर आलम को नहीं है।
अंजुमन मुहाफिज मसाजिद व मकाबिर कमेटी ने प्रशासन से रईस और नूर आलम पर FIR दर्ज कर कार्रवाई की माँग की है। कमेटी के ज्ञापन में मस्जिद की जमीन को खरीदने-बेचने पर भी रोक लगाने की अपील की गई है। कमेटी के अध्यक्ष आजम कादरी अयोध्या में सभी मस्जिद, कब्रिस्तान, दरगाह और मज़ार आदि की देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर बताते हैं। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ अधिवक्ता आफताब अहमद ने भी मस्जिद की जमीन को बेचने या दान में देने का प्रयास अपराध बताया है। आफ़ताब ने भी रईस और नूर पर कार्रवाई की माँग उठाई है।
इस मामले पर अयोध्या के DM (जिलाधिकारी) नीतीश कुमार ने मीडिया से बातचीत में अंजुमन मुहाफिज मसाजिद व मकाबिर कमेटी द्वारा शिकायत मिलने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि मामले की जाँच SDM प्रवर्तन अमित सिंह को सौंपी गई है। रिपोर्ट आने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। वहीं थाना प्रभारी रामजन्मभूमि ने भी मामले में जाँच जारी होने की बात कही है।
क्या है समझौते में
1 सितंबर 2023 को हुए इस फैसले में रईस अहमद द्वारा मस्जिद को 100 साल पुरानी बताया गया है। कागजातों में यह मस्जिद पैसे के अभाव में जर्जर होने की जानकारी दी गई है। मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए 6 माह की समय सीमा तय की गई थी। इसी के एवज में 15 लाख रुपए एडवांस के तौर पर रईस को दिए गए थे।
बहकावे में लगाए जा रहे आरोप
इस मामले में आरोपित किए जा रहे मस्जिद के मुतवल्ली रईस अहमद की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। दैनिक भास्कर से बात करते हुए उन्होंने खुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है। रईस का दावा है कि उनका एग्रीमेंट मस्जिद को हटाने का नहीं बल्कि उसे शिफ्ट करने के लिए हुआ था। रईस ने बताया कि मस्जिद का आधा हिस्सा पहले ही सड़क को चौड़ा करने में जा चुका है और सिर्फ बद्र मस्जिद ही नहीं बल्कि पूरा मोहल्ला ही रामजन्मभूमि ट्रस्ट अधिग्रहित करने वाला है।
बद्र मस्जिद के मुतवल्ली रईस के अनुसार 1 सितंबर 2023 को रामजन्मभूमि ट्रस्ट के साथ मस्जिद शिफ्ट करने का करार अकेले उनका नहीं, बल्कि सबकी सहमति से था। इस करार के दौरान मस्जिद में आने वाले नमाजी भी मौजूद बताए गए। रईस का दावा है कि जनवरी माह में वक्फ बोर्ड से जुड़े लोग भी आए थे, जब मस्जिद का आधा हिस्सा सड़क में जाने वाला था। दावा है कि तब वक्फ के अधिकारियों ने रईस अहमद से सरकार से जुड़े मैटर में मस्जिद की भलाई को देखते हुए फैसला करने को कहा था। रईस का दावा है कि कुछ लोग अब बहकावे में आ कर उन पर फर्जी आरोप लगा रहे हैं।