Thursday, May 15, 2025
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शराब के नशे में कोर्ट पहुँच जाते थे जज साहब, जब मन अदालत से लापता हो जाते थे: कई शिकायतों के बाद बर्खास्त, सेवा बहाली की याचिका खारिज

अनिरुद्ध पाठक के खिलाफ कई आरोप हैं, जिनमें अदालत के समय का पालन नहीं करना, अदालत से अनुपस्थित रहना और न्यायिक अकादमी पाठ्यक्रम में भाग लेना भी शामिल है। इससे पहले स्टाफ सदस्यों ने पाठक पर शराब के नशे में अदालत आने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के आधार पर पाठक को बर्खास्त कर दिया गया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार (23 अप्रैल 2024) शराब पीकर कोर्ट आने वाले सिविल जज अनिरुद्ध पाठक को राहत देने से इनकार कर दिया। पाठक को अनुचित आचरण के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने पाठक की याचिका खारिज करते हुए कहा कि न्यायाधीशों को गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। उन्हें ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।

अनिरुद्ध पाठक के खिलाफ कई आरोप हैं, जिनमें अदालत के समय का पालन नहीं करना, अदालत से अनुपस्थित रहना और न्यायिक अकादमी पाठ्यक्रम में भाग लेना भी शामिल है। इससे पहले स्टाफ सदस्यों ने पाठक पर शराब के नशे में अदालत आने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के आधार पर पाठक को बर्खास्त कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति एएस चंदूरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन ने पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतों से उन न्यायिक अधिकारियों की सहायता की उम्मीद नहीं की जाती है, जो अशोभनीय या दोषपूर्ण आचरण में संलग्न हैं। इसके बाद खंडपीठ ने पाठ की याचिका खारिज कर दी। पाठक ने सेवा में बहाली के लिए हाई कोर्ट में याचिका दी थी।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “यह एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मानदंड है कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को सम्मान के साथ काम करना चाहिए और ऐसे आचरण या व्यवहार में शामिल नहीं होना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि प्रभावित होने की आशंका हो या जो न्यायिक अधिकारी के लिए अशोभनीय हो।”

बारएंडबेंच के मुताबिक, बुधवार (24 अप्रैल 2024) को दिए अपने फैसले में कोर्ट ने आगे कहा, “यदि न्यायपालिका के सदस्य ऐसे व्यवहार में लिप्त होते हैं, जो निंदनीय है या जो न्यायिक अधिकारी के लिए अशोभनीय है तो रिट अदालतों से ऐसे न्यायिक अधिकारी को हस्तक्षेप करने और राहत देने की उम्मीद नहीं की जाती है।”

दरअसल, अनिरुद्ध पाठक को मार्च 2010 में सिविल जज जूनियर डिवीजन के रूप में नियुक्त किया गया था। उस दौरान से उनके आचरण के बारे में कई शिकायतें मिलने लगीं। शिकायतें मिलने के बाद महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के मुख्य न्यायाधीश ने फरवरी 2017 में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष एक रिपोर्ट दायर की।

उस रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिरुद्ध पाठक शराब के नशे में अदालत आए थे। कई वकीलों ने यह भी शिकायत की कि अदालत में उनका व्यवहार और अदालती कामकाज करने का तरीका उचित नहीं था।मई 2017 में महाराष्ट्र के जलगाँव के एक जिला न्यायाधीश ने पाठक के खिलाफ शिकायतों के संबंध में एक विवेकपूर्ण जाँच रिपोर्ट दायर की।

इसके बाद महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के अधिकारियों ने भी साल 2018 में पाठक के अनुचित व्यवहार को लेकर एक रिपोर्ट दर्ज की। इसके बाद कानून और न्यायपालिका विभाग ने साल 2022 में एक आदेश पारित करके अनिरुद्ध पाठक को महाराष्ट्र सिविल सेवा (अनुशासन और अपील) नियमों के तहत सेवा से बर्खास्त कर दिया।

इसने पाठक को अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय के समक्ष पाठक ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया और कहा कि उन्हें दी गई सज़ा अधिक है। हाई कोर्ट ने कहा कि पाठक एक ऐसे पद पर थे जिसे उच्च सम्मान के साथ देखा जाता है। उन्होंने साथ काम करने वाले कर्मचारियों का विश्वास खो दिया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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