पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद 19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा खाजीदा शेख ने सोशल मीडिया पर मिशन क लेकर आपत्तिजनक बातें लिखीं। इसे लेकर उसके निष्कासन और गिरफ्तारी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार (26 मई 2025) को महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है।
खाजीदा शेख इस समय महाराष्ट्र के यरवडा जेल में बंद है। हाईकोर्ट ने उसकी तत्काल रिहाई के आदेश देकर कॉलेज से निष्कासन को भी रद्द कर दिया है।
जम्मू-कश्मीर में 22 अप्रैल 2025 को आतंकियों ने 20 से ज्यादा हिंदू पर्यटकों को धर्म पूछकर मार दिया। इसके बाद भारत ने जवाबी एक्शन में ‘आपरेशन सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तान में बसे 9 आतंकी ठिकानों को धवस्त कर दिया था। छात्रा ने इसकी आलोचना की थी।
क्या था मामला
खाजीदा शेख पुणे में सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय से संबद्ध एक निजी संस्थान- सिंहगढ़ अकादमी ऑफ इंजीनियरिंग की द्वितीय वर्ष की छात्रा है। 7 मई 2025 को खाजीदा ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंस्टाग्राम पर स्टोरी में एक पोस्ट साझा की।
इसमें पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार के जवाबी एक्शन ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना करते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लिखा। इसके बाद 9 मई को उसे गिरफ्तार किया गया।
इंस्टाग्राम पर छात्रा ने पाकिस्तान का समर्थन करते हुए आतंकी ठिकानों पर सटीक निशानों को लिए भारतीय सरकार को ‘फासीवादी’ कहा। पोस्ट में आगे छात्रा ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को ‘बलि का बकरा’ कहकर खारिज कर दिया।
छात्रा ने अपनी याचिका में यह दावा किया था कि उसने अपनी पोस्ट को दो घंटे के अंदर डिलीट कर दिया था। इसके बावजूद उसे ऑनलाइन धमकियाँ मिली और गिरफ्तारी की गई।

अपने निष्कासन और गिरफ्तारी पर खाजीदा ने एक याचिका दायर की थी। इसमें उसने दावा किया कि कॉलेज से उसका निष्कासन ‘अवैध और मनमाना’ है।
जस्टिस ने पूछा, क्या कर रहे?
याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस गोडसे ने सरकार से कहा, “आप एक छात्रा की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। यह कैसा व्यवहार है? कोई अपनी बात रखता है तो आप उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे? बिना कोई स्पष्टीकरण माँगे आप छात्रा को निष्कासित कैसे कर सकते हैं?”
छात्रा की वकील फरहाना शाह ने कोर्ट तत्काल राहत की माँग करते हुए दलील दी कि उस समय छात्रा की सेमेस्टर परीक्षाएँ चल रही थीं। उस समय उसका निष्कासन अनुचित है।
कॉलेज के वकील ने इस पर सुझाव दिया कि उसे पुलिस सुरक्षा में परीक्षा देने की अनुमति दी जाए। अदालत ने वकील के इस सुझाव को सिरे से खारिज कर दिया और कहा, “वह कोई अपराधी नहीं है।”

‘शिक्षा के उद्देश्य’ पर बात करते हुए जस्टिस गौरी गोडसे ने कहा, “एक शैक्षणिक संस्थान की भूमिका क्या होती है? क्या यह केवल एकेडमिक शिक्षा के लिए है या फिर युवाओं सही मार्गदर्शन और सुधारने के लिए?”
जस्टिस गोडसे ने आगे पूछा, “आप एक विद्यार्थी तैयार करना चाहते हैं या एक अपराधी?”
सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य को आदेश दिया कि छात्रा की रिहाई की प्रक्रिया सरल कर इस बात को सुनिश्चित करे कि छात्रा बिना डरे या किसी पुलिस सुरक्षा के अपने बचे हुए एक्जाम्स दे। जस्टिस गोडसे ने कहा, “उसे परीक्षा देने से रोका नहीं जा सकता। साथ ही पुलिस की निगरानी में परीक्षा देने के लिए भी मजबूर नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने इस बात की भी अनुमति दी कि इस मामले को आपराधिक रिट में बदला जा सकता है या फिर जरूरत पड़ने पर नई याचिका दायर की जा सकती है।
अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में छात्रा ने सरकार पर आरोप लगाए थे कि सीमा पार आतंकवाद का उपयोग कर सरकार अपनी विफलता छुपा रही है। इसके लिए पोस्ट में भड़काऊ तरीके से ‘अधिकृत कश्मीर’ कहा गया है। ये सीधे तौर पर जम्मू और कश्मीर पर भारत की संप्रभुता के लिए चुनौती से कम नहीं है।
अपने एक अन्य पोस्ट में, छात्रा ने विवादित द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की खुले तौर पर प्रशंसा की थी, जबकि पहलगाम आतंकी हमलों के पीड़ितों के लिए भारत के एक्शन को ‘हिंदुत्व आतंक’ कहकर ‘निर्दोष’ लोगों के खिलाफ राज्य-प्रायोजित प्रतिशोध कहा था।
असल में छात्रा ने अपनी पोस्ट में जिन्हें ‘निर्दोष’ कहा था, वे वास्तव में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी थे, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की जवाबी हवाई हमलों में निशाना बनाया गया था।