ऑपइंडिया ने केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के CEO पद से हटाए जा चुके दीपक कुमार के ईसाई मिशनरियों के साथ साँठगाँठ को लेकर कई खुलासे किए हैं। हमने पूर्व की रिर्पोटों में बताया है कि किस तरह विदेशों में ईसाईयों को बच्चे एडॉप्शन के लिए दे दिए जाते हैं, वहीं भारत के हिन्दू परिवारों को लगातार प्रतीक्षा सूची में रखा जाता है। CARA के सीईओ रहते दीपक कुमार के कई कारनामों के बारे में हम आपको बता चुके हैं। अब उसके फेसबुक प्रोफइल का पोस्टमॉर्टम करते हैं।
CARA सीईओ रहे दीपक कुमार के फेसबुक पर अश्लील तस्वीरें
दीपक कुमार ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर ऐसी-ऐसी तस्वीरें डाल रखी थीं, जो उसके जैसे पद पर रहने वाले अधिकारी या नेता कभी नहीं करते। हम यहाँ उन तस्वीरों के बारे में आपको बताएँगे जिसमें से कई में दीपक कुमार बिना कपड़ों के दिख रहा है और उसने एडिट कर तस्वीर में किसी युवती को घुसा रखा है। CARA सीईओ रहते भी उसने ये तस्वीरें लगा रखी थीं, जिनमें से कई उसने हाल ही में डिलीट की है।
यहाँ सवाल ये है कि ये तस्वीरें ग़लत नहीं थीं तो फिर दीपक कुमार ने इन्हें डिलीट क्यों किया? ऐसे पद पर बने रहने वाले व्यक्ति जिस पर इतने सारे आरोप लग रहे हैं, उसके लिए ये सब शोभनीय है या नहीं, ये आप तस्वीरें देख कर निर्णय ले सकते हैं। दीपक कुमार की इन तस्वीरों में से कुछ अश्लीलता को भी बढ़ावा देती दिख रही हैं। नीचे हम आपके समक्ष उन तस्वीरों को रख रहे हैं, जो उसने ही अपलोड की थी (इसीलिए ये कोई सीक्रेट नहीं है):
दीपक कुमार एक सरकारी संस्था में सर्वोच्च पद पर था, जिसकी गरिमा को बनाए रखना उसका कर्तव्य था, लेकिन सार्वजनिक रूप से उसके सोशल मीडिया पोस्ट्स में वो गंभीरता कभी नहीं दिखती। उसकी तस्वीरों से स्पष्ट होता है कि वो हर तस्वीर में किसी न किसी लड़की को एडिट कर के डाल दिया करता था। हालाँकि, अब इनमें से अधिकतर उसके प्रोफाइल से गायब हैं, क्योंकि उसने डिलीट कर दिया है।
हिन्दू पेरेंट्स को एडॉप्शन के लिए तरसाया, ईसाइयों पर मेहरबानी
ऐसे ही एक हिन्दू पेरेंट्स की पीड़ा के बारे में हमें पता चला, जिन्होंने 2010 में हिमांशी शर्मा नामक बच्ची को अडॉप्ट किया था। लेकिन उन्हें CARA की तरफ से NOC सर्टिफिकेट नहीं दिया गया। दीपक कुमार ने बार-बार अनुरोध के बावजूद इसे रोके रखा। सुनीता शर्मा बताती हैं कि ‘हिन्दू एडॉप्शन प्रक्रिया’ के तहत सारे वैध डाक्यूमेंट्स उनके पास थे, लेकिन फिर भी NOC नहीं दिया गया। 7 साल तक इसे लटकाए रखा गया था।
सुनीता शर्मा और उनके पति के वकीलों ने बार-बार दीपक कुमार से संपर्क करना चाहा, लेकिन उसने इनके कॉल्स उठाने ही बंद कर दिए। बार-बार पत्र लिख कर कहा जाता रहा कि एडॉप्शन की प्रक्रिया को पूरा किया जाए लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। पेरेंट्स को अपनी बच्ची को यूके से वापस लाना था, लेकिन NOC के कारण सब अटका पड़ा था। इससे हिमांशी के एडमिशन में भी दिक्कतें आ रही थीं।
वहीं गोविंदईया यतीश ने CARA से 2 साल तक की स्वस्थ बच्ची के एडॉप्शन की माँग की थी, लेकिन उन्हें पल्ल्वी नामक जो बच्ची दी गई उसको एक बड़ी बीमारी थी। ये बात पेरेंट्स से छिपाई गई। यानी, हिन्दू पेरेंट्स को सूटेबल मैच के लिए लगातार तरसाया गया। बच्ची की बीमारी के बारे में न बताया जाना ये भी दिखाता है कि ‘चाइल्डल्ड्स राइट्स एक्ट’ के तहत उनकी देखभाल और इलाज के लिए भी समुचित व्यवस्था नहीं की जाती है।
CARA से हटाए जाने के बावजूद दीपक करता रहा मनमानी
पद से हटाए जाने की आहट के बावजूद दीपक कुमार ने आनन-फानन में स्टियरिंग कमेटी के लिए विज्ञापन निकाल दिया। कई आरोपों में फँसे और कुर्सी जाने की आशंका के पीछे इस तरह की हरकत का कारण क्या हो सकता है? बता दें कि स्टियरिंग कमेटी CARA के मामलों के लिए सर्वोच्च फोरम है। नीचे हम जून 15, 2020 को जारी किए गए उस आधिकारिक विज्ञापन का अंश पेश कर रहे हैं:
इतना ही नहीं, विदाई होने के बावजूद दीपक कुमार ने CARA के रिक्त पदों को भरने के लिए जून 20, 2020 को विज्ञापन जारी कर दिया। शक है कि मौजूदा स्टियरिंग कमेटी में बैठे नामित लोग भी एनजीओ की आड़ में ईसाई मिशनरियों के लिए काम करते हैं। दीपक ने अपने प्रभाव से स्टियरिंग कमेटी में भी अपने लोग बिठा रखे थे। इसलिए जाते-जाते वो पुनः अपने लोगों को बिठाने की फिराक में था।
संविदा पर काम कर रही जिन महिलाओं पर ऑनलाइन बच्चे छुपाने का आरोप सिद्ध हुआ था, उनको भी दीपक कुमार ने जाते-जाते एक वर्ष का सेवा विस्तार और 10 प्रतिशत वेतन बढ़ोतरी का इनाम दे दिया है। मिनी जॉर्ज, अपर्णा सहित सभी ईसाई मिशनरियों के लिए कार्य करने वाली संविदा कर्मचारियों का अगले साल 30 जून तक कार्यकाल बढ़ाया गया है। आरोप है कि वेतन बढ़ाने के लिए कोई मूल्यांकन नहीं किया गया है। दीपक कुमार ने सीधे वेतन भी बढ़ाया और प्रशस्ति-पत्र भी बाँट दिया।
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वैज्ञानिक बिस्वास जैसे अनुभवी व्यक्ति को CARA से हटा कर दीपक कुमार ने अपने इशारों पर काम करने वाली अपर्णा, मिनी जार्ज, गरिमा व शालिनी आदि जिन्हें सरकारी कार्यालयों में कार्य का कोई अनुभव नहीं था, को लाया ताकि उनसे मिशनरी योजना अनुसार कार्य करवा सके। इन सबके बावजूद मीडिया में उसके लिए एक शब्द भी नहीं लिखा गया। मीडिया क्यों चुप है?
इससे पहले क्या हुए थे खुलासे?
दीपक कुमार ने 2017 में मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित दो संस्थाओं को रातों-रात एडॉप्शन एजेंसी के रूप में मान्यता दिलाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया था। महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों की मदद से उसने इन संस्थाओं को मान्यता दिलवा भी दी थी। मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरियों द्वारा ये संस्थाएँ पिछड़े इलाक़े बुंदेलखंड के सागर और दमोह में संचालित हैं।
वैज्ञानिक एसके डे विश्वास ने बताया था कि संस्था में उनके पीठ पीछे अपमानजनक बातें कही जाती हैं। उन्होंने बताया था कि उनके वेतन में जान-बूझकर देरी की जाती है और बिना किसी कारण के वेतन में से रकम काट ली जाती है। साथ ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि सीसीटीवी कैमरों में से एक को उन पर ही केंद्रित रखा जाता है, ताकि उनकी सारी गतिविधियाँ रिकॉर्ड की जा सके। CEO दीपक कुमार पर काउन्सलेट्स के साथ अभद्र व्यवहार और गाली-गलौज करने का आरोप लगाया गया था।
भारतीयों को कारा से बच्चा गोद लेने के लिए तीन से सात साल तक प्रतीक्षा सूची में रहना पड़ता है, लेकिन विदेशी ईसाई परिवारों को बहुत कम समय में बच्चा मिल जाता है। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का आलम यह है कि कारा के सीईओ दीपक कुमार ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के समय भी बच्चों को विदेश भेजा। अप्रैल माह में भी विशेष विमान से ये बच्चे इटली, अमेरिका, माल्टा और जॉर्डन भेजे गए।
उनके दो भतीजे हैं अमन और शिशिर। इन दोनों को पहले तीन महीने तक एमटीएस के पद पर 10 हजार रुपए के मासिक वेतन के साथ रखा गया, उसके बाद यंग प्रोफेशनल्स के पद पर बिठा कर वेतन तीन गुना बढ़ा दिया गया। 9 महीने बाद तो इन दोनों को सलाहकार का पद थमा दिया गया और 60 हज़ार रुपए प्रतिमाह दिए जाने लगे। इस तरह की उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि कई नियुक्तियाँ की हैं।