हमने एक के बाद एक ख़बरों में केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के सीईओ रहे दीपक कुमार के बारे में कई खुलासे किए थे, जिनमें उनका ईसाई मिशनरियों से साँठगाँठ सबसे अहम मुद्दा था। अब नई जानकारी सामने आ रही है कि दीपक कुमार ने CARA के सीईओ रहते मध्य प्रदेश में भी दो ईसाई मिशनरियों को रातों-रात मान्यता दिलाई थी। इस मामले में दो स्थानीय अधिकारी भी रडार पर हैं।
कहानी मध्य प्रदेश की दो संस्थाओं की, जो दीपक कुमार की कृपापात्र बनीं
केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) से हटाए जा चुके CEO दीपक कुमार के काले कारनामे लगातार उजागर हो रहे हैं। अब हमें पता चला है कि CARA में अपनी हैसियत के बूते पर दीपक कुमार ने 2017 में मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित दो संस्थाओं को रातों-रात एडॉप्शन एजेंसी के रूप में मान्यता दिलाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया था। महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों की मदद से उसने इन संस्थाओं को मान्यता दिलवा भी दी थी।
इन दोनों संस्थाओं में सैकड़ों बच्चे थे। ये संस्थाएँ पहले बिना मान्यता के ही बच्चों की सेवा के नाम पर धर्मांतरण के लिए कुख्यात रहीं थीं। इनकी कई शिकायतें मिलने के बाद सरकार ने इनकी जाँच भी कराई थी, लेकिन महिला बाल विकास विभाग में कई सालों से जमे अधिकारियों ने जाँच पर लीपापोती करा दी थी। डिप्टी डायरेक्टर हरीश खरे और असिस्टेंट डायरेक्टर आशीष सिंह की भूमिका संदेह के दायरे में है, जो कई सालों जमे हैं। लंबे समय से विवादास्पद हरीश खरे का नाम चर्चित हनीट्रैप मामले में आने के बावजूद उसे भोपाल से नहीं हटाया गया।
मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरियों द्वारा ये संस्थाएँ पिछड़े इलाक़े बुंदेलखंड के सागर और दमोह में संचालित हैं। सागर में सेवाधाम और दमोह की मरुथाल नाम की संस्थाओं को 2017 में एडॉप्शन एजेंसी के रूप में कानूनी मान्यता के लिए दीपक कुमार ने ही जोर लगाया था। इन्हें चाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 41 और 65 के तहत एक साथ बालगृह, शिशुगृह और बालिका गृह की मान्यता दे दी गई थी। अर्थात, ये हर उम्र के शिशुओं, बच्चों और बच्चियों को अपने यहाँ रख सकते थे।
विभाग ने मान्यता देने के पहले इन संस्थाओं के कामकाज पर उठते रहे सवालों को दरकिनार कर दिया था। मुख्यमंत्री कार्यालय में इन संस्थाओं को लेकर बच्चों और गरीब परिवारों के धर्मांतरण की शिकायतें आने के बाद एक जाँच भी शुरू हुई थी। तब पता चला था कि यहाँ आने वाले बच्चों को शुरू से ही ईसाई बनाने की प्रक्रिया में डाल दिया जाता है। वे गले में क्रॉस लटकाते हैं। परिसर में ही चर्च में प्रेयर्स करते हैं।
इस जाँच के समय मरुथाल में 600 बच्चों की संख्या सामने आई थी और सेवाधाम में भी 300 से ज्यादा बच्चे होना बताए गए थे। जाँच के कारण तब इन्हे एडॉप्शन एजेंसी की मान्यता नहीं दी गई थी। लेकिन, कुछ समय बाद ही विभाग के अधिकारियों ने दीपक कुमार के दबाव में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इनका रास्ता साफ कर दिया। मान्यता मिलते ही यहाँ के सैकड़ों बच्चे CARA के जरिए देश-विदेश में गोद जाने के लिए तैयार हो गए।
ऑपइंडिया के सूत्रों का कहना है कि इन संस्थाओं से विदेशों में गोद गए बच्चों की संख्या अच्छी-खासी है, जो दीपक कुमार का भांडा फूटने के बाद अब जाँच का विषय है। पता चला है कि दीपक कुमार ने हाल ही में भोपाल की एक ऐसी ही संस्था को मान्यता देने के लिए विभाग को पत्र लिखा था, लेकिन इस पर कार्रवाई होने के पहले ही उसके कारनामे उजागर हो गए और केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने उसे पद से हटा दिया।
मिशनरियों के कारनामे और CARA के दीपक से साँठगाँठ
इन मिशनरियों के परिसरों में कार्यरत ज्यादातर कर्मचारी ऐसे हैं, जो जन्मजात ईसाई नहीं थे। वे सालों पहले कभी किसी आर्थिक मजबूरी के चलते मिशनरी में लाए गए थे और यहीं पले-बढ़े। उनके परिवारों को बच्चों की बेहतर परवरिश औैर नौकरी वगैरह के लालच दिए गए थे। चाइल्ड राइट्स के हिसाब से तो उनका पुनर्वास होना था, लेकिन वे वहीं बने रहे और अब वे ईसाई हैं। मध्य प्रदेश के महिला बाल विकास विभाग ने इन संस्थाओं की लगातार शिकायतों के बावजूद कभी जाँच नहीं की।
ईसाई मिशनरियों का रसूख ऐसा है कि राज्य के अधिकारियों भी झाँक कर भी नहीं देखा कि सैकड़ों की संख्या में गरीब परिवारों के बच्चे वहाँ किस कानून के तहत रखे जा रहे हैं। यहाँ तक कि इन बच्चों का कोई रिकॉर्ड नियमानुसार स्थानीय पुलिस के पास भी नहीं था। अफसरों के कारण ही एक जाँच पर लीपापोती की गई और दीपक कुमार ने इन्हें एडॉप्शन एजेंसी की मान्यता दिलाकर धर्मांतरण को कानूनी आवरण पहना दिया।
दीपक ने मध्य प्रदेश से अनुराग पांडे को CARA में बनाए रखा
दीपक कुमार ने हरीश खरे के कहने पर अनुराग पांडे नाम के एक व्यक्ति को CARA में कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर नियुक्त किया। उसे बाद में मनमाने ढंग से यंग प्रोफेशनल का पदनाम दे दिया और मध्य प्रदेश का प्रभारी तक बना दिया। हरीश खरे के इशारे पर CARA से यही अनुराग पांडे मध्य प्रदेश की बाल संस्थाओं पर दबाव डालता था।
विभागीय स्तर पर मध्य प्रदेश में ये आम शिकायतें थीं कि उसके इशारे पर बच्चों के एडॉप्शन में अनावश्यक देरी की जा रही है और कुछ संस्थाओं को टारगेट कर कागजी कार्रवाई में अटकाया जा रहा है। अनुराग पांडे CARA में दीपक कुमार द्वारा नियुक्त उन दर्जनों मनमानी नियुक्तियों का ही एक हिस्सा है, जिन्हें ऐसे पदनाम दिए गए, जो सरकारी विभागों में कभी सुने नहीं गए। CARA में मूलत: सदस्य सचिव का ही पद होता है, जिस पर दीपक कुमार को लाया गया था।
लेकिन CARA को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह संचालित करने की फिराक में दीपक कुमार ने आते ही CEO का पदनाम गढ़ लिया था। जबकि ऐसा कोई पद था ही नहीं। दीपक कुमार और हरीश खरे के गठजोड़ ने जिस तरह मध्य प्रदेश की संस्थाओं पर अपनी मनमानी की, उसी तरह अन्य राज्यों के भी मामले सामने आ रहे हैं। बिहार से अमेरिका में गोद दी गई एक मासूम बच्ची की हत्या का मामला भी इनमें से एक है।
हनीट्रैप में फँसा अधिकारी अब भी CARA के पद पर काबिज
मध्य प्रदेश में 2018 में कॉन्ग्रेस सरकार बनने के बाद बदनाम हरीश खरे मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का ओएसडी तक बन गया, लेकिन चर्चित हनीट्रैप में फँसने के बाद उसे महिला बाल विकास विभाग में वापस भेज दिया गया। जब उसे मूल विभाग में भेजा गया तब तत्कालीन मंत्री इमरती देवी को विभाग के महिला स्टाफ ने इस कुख्यात अधिकारी को भोपाल से बाहर भेजने के लिए कहा था, लेकिन अफसरशाही में अपनी ऊँची पहुँच के कारण हरीश खरे भोपाल में ही बना रहा।
पिछले 10 सालों से भोपाल में जमे हरीश खरे के खिलाफ कई जाँचें लंबित हैं। उस पर अपनी ही सर्विस बुक को गायब कर मनमाने ढंग से प्रमोशन लेने का आरोप है। लोकायुक्त में भी उसकी जाँच ठंडे बस्ते में है। हनीट्रैप में फँसने के बावजूद सरकार ने उसे राजधानी में टिकाए रखा और बाल संरक्षण आयोग में नियुक्ति दे दी, लेकिन अब भी संचालनालय में उसके बिना कोई फैसला नहीं होता। अब असिस्टेंट डायरेक्टर आशीष सिंह उसकी जगह पर हैं।
मासूम बच्चों को मनमाने ढंग से विदेश भेजने वाले दीपक कुमार के कारनामे उजागर होने के बाद सरकार के अंदर के कुछ लोग भी हैरत में हैं कि वो इतने दिन टिका कैसे रहा। सबको आश्चर्य है कि केंद्र में 2014 में सरकार बदलने के बावजूद महिला बाल विकास मंत्रालय में CARA में दीपक कुमार की नियुक्ति और बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया में यह मनमानी आखिरकार किनके इशारे पर चलती रही।
इसी तरह मध्य प्रदेश में भी भाजपा या कॉन्ग्रेस की सरकार आने-जाने का अधिकारियों के इस ताकतवर गिराेह पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। मध्य प्रदेश में भी भाजपा की सरकार के रहते माया सिंह, रंजना बघेल और अर्चना चिटनीस महिला बाल विकास मंत्री रहीं। 2018 में कॉन्ग्रेस सरकार बनी तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की करीबी इमरती देवी मंत्री बनीं। इस दौरान चार आईएएस अफसर प्रमुख सचिव और इतने ही कमिश्नर बनकर आए और चले गए, लेकिन विभागीय मुख्यालय में हरीश खरे और आशीष सिंह जैसे अधिकारियों का ही सिक्का जमा रहा।
इन दोनों अधिकारीयों के काला चिट्ठे को लेकर हम एक अलग एक लेख लेकर आएँगे, जिसमें इनके इतिहास के बारे में विस्तृत विवरण होगा। बच्चों की तस्करी का मामला दबाने हनीट्रैप तक, अगर सारे तारों को जोड़ा जाए तो ये एक बहुत बड़ा मामला बन सकता है। इससे पहले ऑपइंडिया ने CARA के दीपक कुमार के बारे में जो खुलासे किए थे, उससे इन सबका सीधा सम्बन्ध जुड़ता नज़र आ रहा है।
CARA के सीईओ रहे दीपक कुमार के बारे में ऑपइंडिया का खुलासा
वैज्ञानिक एसके डे विश्वास ने बताया था कि संस्था में उनके पीठ पीछे अपमानजनक बातें कही जाती हैं। उन्होंने बताया था कि उनके वेतन में जान-बूझकर देरी की जाती है और बिना किसी कारण के वेतन में से रकम काट ली जाती है। साथ ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि सीसीटीवी कैमरों में से एक को उन पर ही केंद्रित रखा जाता है, ताकि उनकी सारी गतिविधियाँ रिकॉर्ड की जा सके। CEO दीपक कुमार पर काउन्सलेट्स के साथ अभद्र व्यवहार और गाली-गलौज करने का आरोप लगाया गया था।
भारतीयों को कारा से बच्चा गोद लेने के लिए तीन से सात साल तक प्रतीक्षा सूची में रहना पड़ता है लेकिन विदेशी ईसाई परिवारों को बहुत कम समय में बच्चा मिल जाता है। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का आलम यह है कि कारा के सीईओ दीपक कुमार ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के समय भी बच्चों को विदेश भेजा। अप्रैल माह में भी विशेष विमान से ये बच्चे इटली, अमेरिका, माल्टा और जॉर्डन भेजे गए।
उनके दो भतीजे हैं अमन और शिशिर। इन दोनों को पहले तीन महीने तक एमटीएस के पद पर 10 हजार रुपए के मासिक वेतन के साथ रखा गया, उसके बाद यंग प्रोफेशनल्स के पद पर बिठा कर वेतनतीन गुना बढ़ा दिया गया। 9 महीने बाद तो इन दोनों को सलाहकार का पद थमा दिया गया और 60 हज़ार रुपए प्रतिमाह दिए जाने लगे। इस तरह की उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि कई नियुक्तियाँ की हैं।