Saturday, July 27, 2024
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छत्तीसगढ़: अधिकारियों की हाँ-ना में उलझा बंगलुरु से घर लौटा प्रवासी, होम क्वारंटाइन के लिए लगा रहा चक्कर

कृष्ण कुमार राठौड़ के दावों को लेकर कोरबा के कलेक्टर ने बताया, “कोरबा में होम क्वारंटाइन की सुविधा नहीं है। या तो उन्हें सरकारी क्वारंटाइन सेंटर में रहना होगा या फिर अगर सक्षम हैं तो पेड क्वारंटाइन में रह सकते हैं।”

कोरोना संकट के इस दौर में कृष्ण कुमार राठौड़ राहत की उम्मीद में बंगलुरु से अपने गृह प्रदेश छत्तीसगढ़ लौटे। लेकिन यहॉं पहुॅंचते ही उन्हें प्रदेश सरकार की मशीनरी ने ऐसे उलझाया कि अब होम क्वारंटाइन होने के लिए चक्कर काट रहे हैं।

राठौड़ छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के रहने वाले हैं। वे सोमवार (जून 8, 2020) को बंगलुरु से रायपुर पहुँचे। ऑपइंडिया से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि बंगलुरु से रवाना होने से पहले ही छत्तीसगढ़ का ई-पास बनवा लिया था। साथ ही राज्य के हेल्पलाइन नंबर 104 पर भी बात की थी। 

इस दौरान जब उन्होंने क्वारंटाइन के बारे में पूछा तो उनसे कहा गया कि रायपुर एयरपोर्ट पर जॉंच के बाद उन्हें एहतियातन होम क्वारंटाइन में रहना होगा। उनके घर के बाहर एक पोस्टर चिपका दिया जाएगा। इस पर उनके उनके बाहर से आने की बात और 14 दिन तक होम क्वारंटाइन में रहने की बात लिखी होगी। ताकि आस-पड़ोस या फिर कोई भी बाहरी उनके संपर्क में न जाए।

कृष्ण कुमार राठौड़ का कहना है कि इस भरोसे के बाद वे छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हुए। रायपुर एयरपोर्ट पर उनका मेडिकल चेकअप वगैरह किया गया। उन्होंने दावा किया, “मैंने एयरपोर्ट पर पदाधिकारियों से फिर से इस बात की। उनसे कहा कि मुझे कोरबा जाना है। वहाँ मुझे होम क्वारंटाइन दिया जाएगा या नहीं? अगर नहीं तो मैं अभी यहॉं से लौटकर बंगलुरु चला जाऊँगा। अधिकारियों ने कहा कि उन्हें होम डिस्ट्रिक्ट में होम क्वारंटाइन दिया जाएगा।”

राठौड़ का दावा है कि यहाँ पहुँचने के बाद उन्हें सरकार द्वारा बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर अथवा पेड क्वारंटाइन सेंटर में रहने को कहा गया। इसके बाद उन्होंने हेल्थ डिपार्टमेंट के हेड, क्वारंटाइन हेड सबसे बात की। किसी के पास होम क्वारंटाइन की जानकारी नहीं थी। उन्हें कोरबा के कलेक्टर से बात करने को कहा गया। वे कलेक्टर ऑफिस भी गए।

राठौड़ के अनुसार यहॉं भी उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली। सरकारी क्वारंटाइन या पेड क्वारंटाइन में रहना जरूरी बताया गया। उन्होंने बताया कि दो तीन हफ्ते पहले उनके पास जो मैसेज आया था, उसमें पेड क्वारंटाइन का 700 रुपया बताया गया था। लेकिन, अब एक दिन का 1300-1400 भुगतान करना पड़ रहा। साथ ही उनका आरोप है कि यहाँ 14 दिन तक रहने के बाद भी इस बात की गारंटी नहीं है कि आपको जाने दिया जाएगा। ये स्पष्ट नहीं है कि टेस्ट कब होगा। अगर 14 दिन तक आपका टेस्ट नहीं होगा तो फिर आपको आगे भी रुकना पड़ेगा।

उन्होंने विलासपुर के आईजी दिपांशु काबड़ा के ट्वीट का भी हवाला दिया। कथित तौर पर आईजी ने उनके (कृष्ण कुमार राठौड़) एक दोस्त जो कोलकाता से आ रहे थे को इस संबंध में बताया था कि रायपुर के डॉक्टर जो राय देंगे उस अनुसार चीजें होंगी। राठौड़ कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि छत्तीसगढ़ में गाइडलाइन को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। हर जगह के पदाधिकारी अलग-अलग तरह की बातें कर रहे हैं।

राठौड़ के दावों को लेकर हमने कोरबा के कलेक्टर से बात की। उन्होंने बताया, “कोरबा में होम क्वारंटाइन की सुविधा नहीं है। या तो उन्हें सरकारी क्वारंटाइन सेंटर में रहना होगा या फिर अगर सक्षम हैं तो पेड क्वारंटाइन में रह सकते हैं।”

ऐसे में सवाल उठता है कि यदि चीजें कोरबा के कलेक्टर के दिए बयान की तरह ही सुलझी हुई हैं तो फिर राठौड़ को जो जानकारियॉं कथित तौर पर दी गईं वह इतनी उलझी हुई क्यों हैं?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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