Wednesday, October 9, 2024
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1979 में DDA फ्लैट के लिए भरा फॉर्म, 45 साल बाद घर मिलने का आया मौका: दिल्ली हाई कोर्ट को देना पड़ा दखल

दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक व्यक्ति की 45 वर्ष पुरानी आकांक्षा पूरी हो गई। दरअसल, ईश्वर चंद जैन सन 1979 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की नई पैटर्न पंजीकरण योजना (एनपीआर योजना) के तहत निम्न आय समूह (LIG) फ्लैट के लिए आवेदन किया था। इतने साल गुजर जाने के बाद भी उन्हें इसका आवंटन नहीं किया गया था।

दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक व्यक्ति की 45 वर्ष पुरानी आकांक्षा पूरी हो गई। दरअसल, ईश्वर चंद जैन सन 1979 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की नई पैटर्न पंजीकरण योजना (एनपीआर योजना) के तहत निम्न आय समूह (LIG) फ्लैट के लिए आवेदन किया था। इतने साल गुजर जाने के बाद भी उन्हें इसका आवंटन नहीं किया गया था।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने डीडीए को निर्देश दिया कि वह जैन को चार सप्ताह के भीतर उस दर पर फ्लैट प्रदान करे, जो वर्ष 1996 में फ्लैट के आवंटन की तारीख पर प्रचलित थी। कोर्ट ने कहा कि अधिकांश दिल्ली वासियों का सपना है कि उनके नाम पर शहर में एक संपत्ति हो, लेकिन डीडीए की यह विफलता दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और कदाचार के समान है।

एनपीआर योजना के तहत वही व्यक्ति डीडीए फ्लैट के लिए पात्र था, जिसके पास पति, पत्नी, उसके नाबालिग या आश्रित बच्चे, आश्रित माता-पिता, नाबालिग भाई एवं बहनों के नाम पर लीजहोल्ड या फ्रीहोल्ड आधार पर पूर्ण या आंशिक रूप से कोई आवासीय घर या प्लॉट नहीं है। ईश्वर चंद जैन ने इस योजना में 3 अक्टूबर 1979 को आवेदन किया था।

ईश्वर चंद जैन के आवेदन के बाद उन्हें जुलाई 1980 में पंजीकरण का प्रमाण पत्र जारी किया गया था। योजना के लगभग 17 वर्षों के बाद डीडीए ने मार्च 1996 में एक ड्रॉ आयोजित किया था। इस ड्रॉ में ईश्वर चंद जैन को दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक फ्लैट के लिए सफल घोषित किया गया। इसके बाद आगे की कार्रवाई शुरू की गई।

आगे चलकर डीडीए ने याचिकाकर्ता को उनके पते नंबर-3 पर एक डिमांड सह आवंटन पत्र (डीएएल) जारी किया था, लेकिन याचिकाकर्ता इस राशि का भुगतान करने में विफल रहा। हालाँकि, कोर्ट ने माना कि डीएएल को इस पते पर भेजना निरर्थक था, क्योंकि जैन ने 1988 में प्राधिकरण को सूचित किया था कि उनका नया पता अब हिसार में है।

कोर्ट ने कहा, “डीडीए के रिकॉर्ड में सही पता होने के बावजूद याचिकाकर्ता को गलत पते पर भेजा गया डीएएल कानून की नजर में कोई माँग नहीं है। डीडीए पर यह दायित्व है कि वह याचिकाकर्ता को नए दिए गए पते पर डीएएल जारी करे, जो डीडीए के रिकॉर्ड पर अंतिम ज्ञात पता था।”

इसलिए, अदालत ने डीडीए को आदेश दिया कि वह जैन को 1996 में उस समय प्रचलित दरों पर फ्लैट का आवंटन करे। अदालत में जैन की ओर से अधिवक्ता प्रवीण कुमार अग्रवाल और अभिषेक ग्रोवर पेश हुए, जबकि डीडीए का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अजय ब्रह्मे ने किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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