सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्य कांत ने कहा है कि बोलने की आजादी की किसी भी तरह रक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि इसके लिए सारे कदम उठाए जाने चाहिए। जस्टिस सूर्य कांत ने ही एक सुनवाई के दौरान पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा को जिहादियों द्वारा की गई हत्या का जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। बोलने की आजादी की वकालत करने वाले जस्टिस सूर्य कांत ने नुपूर शर्मा को उनके बयान पर माफी माँगने और डिबेट में हिस्सा लेने के लिए फटकारा था।
एक किताब के विमोचन के दौरान जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, “इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बोलने की आजादी के अधिकार को किसी भी तरह बचाने की जरूरत है और हमें उस अधिकार की रक्षा के लिए सभी उपाय करने चाहिए। इसको रोकने के लिए अलग-अलग तरीकों से प्रयास हो सकते हैं, क्योंकि यह एक नई दुनिया है और लोग अलग प्रकार के तरीकों और तकनीकों खोजते रहते हैं जिससे बोलने की आजादी छीनी जा सके।”
इसके बाद जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि मीडिया के लोगों को विशेषतः बोलने की आजादी हो। उन्होंने कहा, “विशेष रूप से, पत्रकारों और मीडिया के लिए अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, चाहे जो भी संवैधानिक प्रतिबंध हों। इनसे परे, अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।”
जहाँ वर्तमान में जस्टिस सूर्य कांत बोलने के अधिकार को बचाने की बात कर रहे हैं, वहीं वह आज से लगभग 2 वर्ष पहले पूर्व भाजपा प्रवक्ता के बोलने को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में आग बबूला हो गए थे। नुपूर शर्मा पर सुनवाई के दौरान उन्होंने बोलने को लेकर कई टिप्पणियाँ की थीं।
जस्टिस सूर्य कांत ने उदयपुर में कन्हैया लाल का गला मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद द्वारा काटे जाने का जिम्मेदार नुपूर शर्मा को बताया था। जस्टिस सूर्य कांत ने नुपूर शर्मा पर देश में आग लगाने के आरोप लगाए थे। वर्तमान समय में बोलने की आजादी को बचाने की बात कहने वाले जस्टिस सूर्य कांत ने तब नुपूर शर्मा को उनके बोलने को लेकर माफ़ी माँगने को कहा था।
जस्टिस सूर्य कांत बोले थे कि नुपूर को खुद खतरा है या वो देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं? जिस तरह उन्होंने देश में भावनाओं को भड़काया, उसके लिए और देश में जो कुछ हो रहा है उसके लिए उन्हें एकलौता जिम्मेदार माना जाना चाहिए। बोलने की आजादी पर बात करने वाले जस्टिस सूर्य कांत ने सुनवाई में यहाँ तक कह दिया था कि आखिर न्यूज चैनल ने किसी मुद्दे पर बहस रखी ही क्यों और उसमें नुपूर शर्मा ने उसमें बोला ही क्यों।
इसी सुनवाई में जस्टिस सूर्य कांत ने नुपूर शर्मा के बोलने की आजादी की तुलना गधे के खाने के अधिकार और घास के बढ़ने के अधिकार से कर दी थी। यहाँ जस्टिस सूर्य कांत ने यह भी कह दिया था कि मीडिया वालों के जैसे नुपूर शर्मा को बोलने की आजादी नहीं हो सकती।
इस बात पर जस्टिस सूर्य कांत खीझ गए थे कि नुपूर शर्मा को सलाखों के पीछे क्यों नहीं डाला गया। यह सभी टिप्पणियाँ उन्होंने नुपूर शर्मा की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की थीं। नुपूर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका लगाई थी कि उनके खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में दर्ज FIR को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया जाए क्योंकि उनकी जान को खतरा है।
दरअसल, भाजपा प्रवक्ता की हैसियत से एक टीवी डिबेट शो में वाराणसी के ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में मिले शिवलिंग पर अपनी बात रख रहीं थी। इस दौरान लगातार शिवलिंग पर प्रश्न उठाए जाने के कारण एक मुस्लिम वक्ता से इस्लाम सम्बंधित एक बात कही थी। इसको लेकर बाद में कट्टरपंथियों ने खूब हंगामा किया था। नुपूर शर्मा को ‘सर तन से जुदा’ की धमकियाँ दी गई थीं। उनका सार्वजनिक रूप से बाहर निकलना अभी भी बंद है। नुपूर शर्मा ने इसको लेकर माफ़ी भी मांगी थी।
सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने नुपूर शर्मा को ही हर चीज के लिए जिम्मेदार मान लिया था। इसके कारण उन्हें और उनके परिवार को काफी समस्याएँ झेलनी पड़ी हैं। उन्हें लगातार सुरक्षा का खतरा बना हुआ है, वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पातीं। अब भी उनकी हत्या के लिए लगातार कट्टरपन्थी लगे हुए हैं और इसके लिए सुपारी दे रहे हैं।
गौरतलब है कि जस्टिस सूर्य कांत ने जहाँ नुपूर शर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणियाँ की थीं और जिहादियों द्वारा कन्हैया लाल के क़त्ल का जिम्मेदार उन्हें ही माना था, वहीं इन बातों का जिक्र आधिकारिक कोर्ट रिकॉर्ड में नहीं किया था। उनकी इन टिप्पणियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली गई थी। इन टिप्पणियों को वापस लेने को कहा गया था। इन टिप्पणियों के कारण लोगों ने आलोचना करते हुए इस बेंच को ‘शरिया कोर्ट’ कहा था।
नुपूर शर्मा पर टिप्पणी करने वाली बेंच में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्य कांत के विरुद्ध देश की बड़ी हस्तियों ने एक खुला पत्र भी लिखा था। 15 सेवानिवृत्त जजों, 77 रिटायर्ड नौकरशाहों और 25 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने खुला पत्र जारी कर के नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की टिप्पणी को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और गलत उदाहरण पेश करने वाला’ करार दिया था। उन्होंने लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों द्वारा की गई ताज़ा टिप्पणी ‘लक्ष्मण रेखा’ का उल्लंघन है और हमें इस पर बयान जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
यह बात भी ध्यान देने वाली है कि जस्टिस सूर्य कांत ने जजों को होने वाले खतरे की बात कही थी। 2021 में जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन वी रमन्ना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) न्यायपालिका की बिलकुल भी सहायता नहीं करती। इस सुनवाई के दौरान बेंच ने अफसोस जताया था कि जांच अधिकारियों द्वारा जजों की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
ऐसे में इस बात पर अब प्रश्न उठ रहे हैं कि जजों की सुरक्षा की बात करने वाले और बोलने की आजादी को किसी तरह बचाने की वकालत करने वाले जस्टिस सूर्य कांत ने नुपूर शर्मा को खतरे में होने के बाद हिंसा का जिम्मेदार क्यों माना था और उनसे उनके बयान के लिए माफ़ी माँगने को क्यों कहा था।