लखनऊ के खुर्शीदबाग़ में 18 अक्टूबर, 2019 को भगवा वस्त्र में आए 2 हमलावरों ने कमलेश तिवारी की हत्या उनके ही घर में कर दी थी। हत्या का अंदाज़ 28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर में कत्ल किए गए टेलर कन्हैयालाल जैसा ही था। दोनों को चरमपंथियों ने ‘गुस्ताख़ ए रसूल’ कहा था। हत्या के 3 साल बाद 22 जून 2022 को उनकी पत्नी किरण तिवारी को धमकी भरा पत्र मिला है, जिसमें उन्हें भी उनके पति के पास भेज देने की धमकी उर्दू में लिखी है। ऑपइंडिया ने 3 जुलाई 2022 (रविवार) को कमलेश तिवारी के परिवार से बात कर के अभी वर्तमान के हालातों की जानकारी ली।
कोई ऑफिस में रख कर चला गया था धमकी का लेटर
ऑपइंडिया ने दिवंगत कमलेश तिवारी के छोटे बेटे मृदुल तिवारी से बात की। उन्होंने कहा, “जो धमकी वाला लेटर है वो कब आया ये हमें पता ही नहीं चला। कमरे ऑफिस में कई पत्र रखे हुए थे। उन्हीं में एक ये भी पड़ा था। एक दिन हमारे कार्यालय प्रभारी ने पत्रों को खोल कर पढ़ना शुरू कर दिया तो कार्यालय की टेबल पर ये धमकी पड़ी मिली। ये उर्दू में लिखी चिट्ठी है जिसे हमने अनुवाद करवाया तो पता चला मम्मी (किरण तिवारी) के नाम धमकी है। पत्र में योगी जी के चेहरे पर भी क्रॉस का चिन्ह लगाया गया है।
धमकी के बाद घर की सुरक्षा बढ़ी, मम्मी की नहीं
मृदुल के मुताबिक, “पत्र मिलते ही हमने प्रशासन को सूचना दी। सूचना के बाद पुलिस ने हमारे घर पर सुरक्षा बढ़ा दी। पहले घर की सुरक्षा में 4 पुलिसकर्मी रहते थे अब बढ़ा कर 6 कर दिए गए हैं। माता जी की व्यक्तिगत सुरक्षा में पहले से ही एक ही गनर है। वो मम्मी के कहीं आने-जाने के दौरान उनके साथ रहता है।”
अभी तक नहीं पकड़ा गया एक आरोपित
मृदुल ने बताया, “मैं इंटरमीडियट का छात्र हूँ। हम कुल 3 भाई हैं। सबसे बड़े वाले भाई LLB की पढ़ाई कर रहे हैं। दूसरे भाई भी पढ़ाई कर रहे हैं। मेरे पापा की हत्या के केस में कुल 13 आरोपित पकड़े गए थे। उसमें से 5 लोग जमानत पा चुके हैं। इसमें बरेली का मौलाना कैफ़ी भी शामिल है। एक आरोपित तनवीर हाशमी तो घटना के बाद से अभी तक पकड़ा ही नहीं गया है। वही साजिश का सूत्रधार था। सुनाई दे रहा है कि वो नेपाल भाग गया है।”
सरकार के तमाम वादे अभी तक अधूरे
मृदुल तिवारी ने आगे बताया, “सरकार ने हमारे परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। सीतापुर के DM ने इसको लिखित रूप में भी। लेकिन अभी तक 3 साल बीत जाने के बाद भी किसी को कोई नौकरी नहीं दी गई। ये नौकरी हम अपने बड़े भाई के लिए चाह रहे हैं। इसके साथ पापा (कमलेश तिवारी) के केस को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने का आश्वासन मिला था जो अधूरा है। मम्मी के नाम शस्त्र लाइसेंस भी देने का वादा किया गया था जो अब तक पूरा नहीं हुआ। मदद के नाम पर 15 लाख रुपए सरकार की तरफ से मिले थे जिस से हम सभी की पढ़ाई और घर का खर्च चल रहा। इसी पैसे से हम पापा के लिए कोर्ट में न्याय की लड़ाई भी लड़ रहे हैं।”
पापा की ही राह पर मैं भी चलूँगा
मृदुल तिवारी ने हमें बताया, “मेरे अंदर मेरे पिता का खून दौड़ रहा है। मैं उनके ही अभियान को आगे बढ़ाऊँगा। हिन्दू धर्म की भलाई के लिए काम करूँगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने हत्यारोपितों की माँग पर केस लखनऊ से प्रयागराज किया ट्रांसफर
ऑपइंडिया से बात करते हए स्वर्गीय कमलेश तिवारी की पत्नी किरण तिवारी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने हत्यारों की माँग पर केस को लखनऊ से प्रयागराज ट्रांसफर कर दिया जबकि पकड़े गए आरोपित अभी लखनऊ जेल में ही बंद हैं। हत्यारे लखनऊ में अपनी सुरक्षा का हवाला दे रहे थे। हैरानी की बात है कि जो गुजरात से लखनऊ कत्ल करने आ सकते हैं वो लखनऊ में मुकदमा लड़ने से डर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को मान भी लिया। अब मुझे अकेले ही अपने खर्चे पर हर तारीख पर लखनऊ से 200 किलोमीटर दूर प्रयागराज जाना पड़ता है। इस दौरान मेरे साथ एक ही गनर रहता है। मेरे पैसे खर्च होने के साथ सुरक्षा की भी दिन भर खतरे में रहती है।”
हमारे साथ 2-3 जबकि हत्यारों की तरफ से दर्जनों वकील जिसमें हिन्दू भी शामिल
किरण तिवारी ने आगे बताया, “सुप्रीम कोर्ट में जिस वकील ने हत्यारों का केस प्रयागराज में ट्रांसफर करवाया उसका नाम महमूद प्राचा था। बहुत बड़ा वकील माना जाता है वो। प्रयागराज की अदालत में हमारी तरफ से सुनवाई के दौरान 2 से 3 वकील ही होते हैं जबकि हत्यारों की तरफ से दर्जनों वकील खड़े रहते हैं। उनकी तरफ के दर्जनों वकीलों में कई हिन्दू भी होते हैं। ये देख कर हमें बहुत तकलीफ होती है। असल में उनकी तरफ पैसे अधिक हैं और हम आर्थिक रूप से कमजोर।”
लग रहा कि 50 साल तक लड़ना पड़ेगा मुक़दमा
भरी मन से किरण तिवारी ने कहा, “अगर वादे के मुताबिक केस फ़ास्ट ट्रैक में होता तो कब की हत्यारों को सजा मिल चुकी होती। लेकिन अभी तारीख पर तारीख़ ही मिल रही। ऐसा ही हाल रहा तो 50 साल तक हमें केस ही लड़ना पड़ेगा। अभी तक तो गवाही भी नहीं हुई। सरकार द्वारा दिए गए 15 लाख रुपए भी खत्म होने वाले हैं। वादे के मुताबिक किसी को नौकरी भी नहीं मिली है। नौकरी पाने के लिए हमने 1 माह पहले हाईकोर्ट से आदेश भी करवाया जिसमें 2 महीने के अंदर नौकरी देने का आदेश दिया गया है। लेकिन क्या होगा ये हमें नहीं मालूम।”
हमारे पोस्टरों पर थूक दिया जाता है
ऑपइंडिया ने कमलेश तिवारी के कार्यालय प्रभारी विशाल गुप्ता से बात की। विशाल ने बताया, “मैं 14 साल की उम्र से कमलेश तिवारी जी के कार्यालय पर आ रहा। मैं खुद लखनऊ के मुस्लिम बहुल क्षेत्र मौलवी गंज में रहता हूँ। वहाँ हम जो बैनर पोस्टर लगाते हैं उस में कुछ लोग थूक देते हैं। नूपुर शर्मा के मामले के हाईलाइट होने के बाद मेरे मोहल्ले के लोगों ने ही ‘सिर तन से जुदा’ के व्हाट्सएप स्टेटस लगाए थे। सरकार हम लोगों पर ध्यान दे। हम चाहते हैं कि हमारे इलाके में पुलिस गश्त ही बढ़ा दे तो बहुत राहत मिलेगी हमें।”