Saturday, July 27, 2024
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इंजीनियरिंग पढ़ने गई, ड्राइवर से कर ली शादी: मनुस्मृति का जिक्र कर बोला HC – जो माँ-बाप के साथ किया, कल तुम्हारे बच्चे भी कर सकते हैं

पीठ ने कहा, "मनुस्मृति के अनुसार, कोई भी व्यक्ति 100 वर्षों में भी अपने माता-पिता की उन सभी परेशानियों का भुगतान नहीं कर सकता है, जिन्हें वे उसे जन्म देने से लेकर वयस्क करने तक के दौरान उठाते हैं। इसलिए, हमेशा वही करने की कोशिश करें जो आपके माता-पिता और आपके शिक्षक को पसंद हो, तभी आपके द्वारा की गई कोई भी धार्मिक पूजा कुछ फल देगी।"

कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने अपने प्रेमी संग शादी रचाने वाली एक लड़की के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि प्यार अंधा होता है और यह माता-पिता व परिवार और समाज से मिलने वाले स्नेह से अधिक शक्तिशाली हथियार भी बन जाता है। हालाँकि, कोर्ट ने मनुस्मृति का उदाहरण देकर सलाह भी दिया।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने किशोरी को अपने प्रेमी के साथ रहने की अनुमति तो दे दी, लेकिन बेहद कठोर टिप्पणी भी की। कोर्ट ने कहा कि उसने अपने माता-पिता के साथ जो किया है, कल को उसके बच्चे भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार कर सकते हैं।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान किशोरी के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि कानून भले ही वैध विवाह की शर्तों को विनियमित कर सकता है, लेकिन ‘जीवनसाथी चुनने में माता-पिता सहित समाज की कोई भूमिका नहीं है’।

पिता ने याचिका में कहा था कि उसकी 19 साल की बेटी हॉस्टल में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी। एक दिन वह हॉस्टल से गायब हो गई और पता चला कि कॉलेज में ही वैन चलाने वाला निखिल नाम का ड्राइवर उसे अपने साथ भगा ले गया है।

पिता ने दावा किया कि वैन ड्राइवर ने उसकी लड़की से दोस्ती की और उसकी मासूमियत का फायदा उठाकर उसे अपने प्यार के जाल में फँसा लिया। पिता ने आरोप लगाया कि वैन ड्राइवर ने उसकी बेटी को उकसाया और मंदिर में शादी कर ली।

जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस केएस हेमलेखा की खंडपीठ के सामने लड़की ने कहा कि वह 28 अप्रैल 2003 को पैदा हुई थी और उम्र के हिसाब से बालिग है। वह निखिल से प्यार करती है और अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी।

लड़की ने कहा कि दोनों ने 13 मई को एक मंदिर में शादी करने के बाद साथ रहे हैं। वह अपने पति के साथ रहना चाहती है और अपने माता-पिता के पास वापस नहीं जाना चाहती।

इस पर पीठ ने अपने माता-पिता के प्रति दयालु होने और बुढ़ापे में उनकी देखभाल करने के महत्व को उजागर करने को लेकर धर्म की अवधारणा के बारे में विस्तार बताया। कोर्ट ने महाराज मनु द्वारा प्रतिपादित हिंदू कानून ‘मनुस्मृति’ का भी उदाहरण दिया।

पीठ ने कहा, “मनुस्मृति के अनुसार, कोई भी व्यक्ति 100 वर्षों में भी अपने माता-पिता की उन सभी परेशानियों का भुगतान नहीं कर सकता है, जिन्हें वे उसे जन्म देने से लेकर वयस्क करने तक के दौरान उठाते हैं। इसलिए, हमेशा वही करने की कोशिश करें जो आपके माता-पिता और आपके शिक्षक को पसंद हो, तभी आपके द्वारा की गई कोई भी धार्मिक पूजा कुछ फल देगी।”

इस दौरान पीठ ने कहा कि हमारे इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब माता-पिता ने बच्चों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और बच्चों ने भी अपने माता-पिता के लिए अपने जीवन को उत्सर्ग कर दिया।

पीठ ने आगे कहा, “अगर दोनों के बीच प्रेम और स्नेह है तो परिवार में कोई विवाद नहीं हो सकता है। इसके साथ ही अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बच्चों को माता-पिता के खिलाफ या अभिभावकों को बच्चों के खिलाफ अदालत जाने का कोई सवाल नहीं पैदा होता।”

पीठ ने अपने फैसले में कहा, “वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्य और परिस्थितियाँ स्पष्ट करती हैं कि प्रेम अंधा होता है तथा माता-पिता, परिवार के सदस्यों और समाज के प्यार एवं स्नेह की तुलना में वह अधिक शक्तिशाली हथियार बन जाता है।”

कोर्ट ने लड़की को आगाह करते हुए कहा, “बच्चों को भी यह जानने का समय आ गया है कि जीवन में प्रतिक्रिया, प्रतिध्वनि और प्रतिबिंब शामिल होते हैं। वे आज अपने माता-पिता के साथ जो कर रहे हैं, कल उनके साथ भी वही होगा।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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