Wednesday, November 27, 2024
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PM मोदी की ‘स्वीट क्रांति’ का सिपाही, जिसने खड़ा कर दिया एक देशी ब्रांड: ‘विश्व मधुमक्खी दिवस’ पर मिलिए यूपी के किसान से, दुरुस्त कानून-व्यवस्था का भी मिला लाभ

"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ भी बोलते हैं तो उसके पीछे उनका गहरा अध्ययन होता है। मेरे दिमाग में ये बात (स्वीट क्रांति) थी। इसके करीब एक वर्ष बाद मेरे एक मधुमक्खी पालक मित्र फिर से मेरे संपर्क में आए, जिन्होंने मुझे इसकी बारीकियाँ समझाईं।

दुनिया भर में शनिवार (20 मई, 2023) को ‘विश्व मधुमक्खी दिवस’ मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस हर साल ‘World Bee Day’ मनाने की घोषणा की, ताकि मधुमक्खियों को विलुप्त होने से बचाया जा सके। दुनिया भर में कई ऐसे पेड़-पौधे हैं, जो मधुमक्खियों और उनके जैसे परागणकर्ता (Pollinators) पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में न सिर्फ शहद, बल्कि पेड़-पौधों के लिए भी मधुमक्खियों का अस्तित्व में रहना बहुत ही जरूरी है।

UN ने लोगों को सलाह दी है कि वो अलग-अलग तरह से फूलों के पौधे लगाएँ और स्थानीय किसानों से कच्चा शहद खरीदें। साथ ही बगीचों में केमिकल के इस्तेमाल के खिलाफ भी नसीहत दी गई है। कहा गया है कि मधुमक्खी के छत्तों को नुकसान न पहुँचाएँ। मधुमक्खी पालकों को भी पेस्टीसाइड का इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है। अलग-अलग किस्म की फसलें उपजने को भी कहा गया है। साथ ही अलग-अलग देशों के सरकारों को अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इस विषय में साथ काम करने की अपील भी की गई है।

भारत में मधुमक्खी पालन के दिशा में क्या प्रयास हो रहे हैं? हमारे देश में एक ‘National Bee Board’ भी है, जिससे पता चलता है कि ये कितना महत्वपूर्ण क्षेत्र है। भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत ये विभाग आता है। मधुमक्खी पालन के विकास और फसलों के उत्पादन में वृद्धि के लिए ये बोर्ड काम करता है। ‘Cross Pollination’ फसलों के लिए महत्वपूर्ण है। बोर्ड की वेबसाइट पर भी मधुमक्खी पालन के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

‘FABA Honey’ के संस्थापक मुकेश पाठक ने बताई मधुमक्खी पालन की बारीकियाँ

मधुमक्खी पालन होता क्या है, शहद कैसे निकलता है और भारत में इसका बाजार कैसे काम करता है? इन सवालों के जवाब के लिए हमने ‘FABA Honey’ के संस्थापक मुकेश पाठक से बात की, जो पिछले 7 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। उन्हें मधुमक्खी पालन की प्रेरणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वीट क्रांति’ की बात करने से मिली थी। आज उनके पास ग्राहकों की माँग इतनी ज्यादा है कि किसी तरह डिमांड पूरी कर पाते हैं।

सबसे पहले हमने मुकेश पाठक से पूछा कि आखिर मधुमक्खी पालन के अलग-अलग चरण क्या है और जो शहद हम ग्रहण करते हैं, उन्हें कैसे निकाला जाता है? इस दौरान उन्होंने हमें ‘Bee Keeping’ और ‘Honey Hunting’ का अंतर समझाया। उन्होंने बताया कि मधुमक्खियों द्वारा बनाए गए छत्तों को तोड़ कर जो शहद निकाला जाता है, इसे ‘Honey Hunting’ कहते हैं। ये सही तरीका नहीं होता। जबकि मधुमक्खी पालन शहद पाने का सही तरीका होता है।

मधुमक्खियों के लिए ऐसे बनाए जाते हैं छत्ते

उत्तर प्रदेश के रामपुर के रहने वाले मुकेश पाठक ने बताया कि ‘Honey Hunting’ इसीलिए सही नहीं है, क्योंकि छत्तों को तोड़ कर मधुमक्खियों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और उनमें से कई मर जाती हैं। जबकि उनके पालन करने की प्रक्रिया में उनके लिए बक्सा बनाया जाता है, उन्हें उनका घर प्रदान किया जाता है। एक तरह से उनके लिए ‘आर्टिफिसियल छत्ता’ बनाया जाता है। इन्हीं छत्तों में मधुमक्खियाँ शहद बनाती हैं।

फिर इन ‘रेडीमेड छत्तों’ में मधुमक्खियाँ अपना काम करती हैं। वो बाहर निकल कर फूलों पर जाती हैं, फिर नेक्टर लेकर आती हैं। वो शहद पैदा करती हैं। कई सारे छत्तों को मिला कर कॉलोनी कहा जाता है। इसके बाद शुरू होता है मधुमक्खियों का माइग्रेशन। अगर एक जगह के फूल खत्म हो गए तो बक्से लेकर मधुमक्खी पालन कहीं और निकल जाते हैं। कभी राजस्थान तो कभी पश्चिम बंगाल के सुंदरबन जैसे इलाकों में जाकर छत्तों को रखा जाता है।

मुकेश पाठक ने बताया कि एक ही जगह सारे फूलों का पर्याप्त मात्रा में मिलना या उनकी खेती करना इसके लिए संभव नहीं हो पाता, इसीलिए मधुमक्खियों को लेकर कहीं और जाने का विकल्प अपनाया जाता है। अक्टूबर-नवंबर में उत्तर भारत में सरसो की खेती बहुतायत में होती है, तो वहाँ मधुमक्खियों को लेकर जाया जाता है। यही तरीका सौंफ और अजवायन को लेकर भी आजमाया जाता है। नैनीताल के जंगलों में ‘मल्टीफ्लोरा हनी’ प्राप्त हो जाता है।

मुकेश पाठक इस दौरान उन नमी कंपनियों पर भी निशाना साधते हैं, जो शुद्ध शहद देने का दावा करते हैं। उनका मानना है कि इस तरह अलग-अलग किस्मों के शहद मधुमक्खी पालक ही दे सकते हैं, जबकि ब्रांडेड कंपनियों ने आज तक कभी बताया ही नहीं कि ये शहद आता कहाँ से है। बिना किसी कंपनी का नाम लिए उन्होंने कहा कि बिना सबूत के कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अब तक के निष्कर्ष यही हैं कि इनके सारे शहद एक जैसे ही होते हैं।

उन्होंने कहा कि इसके उलट उनके अलग-अलग शहद के रंग-रूप और गंध से लेकर उनके गुण-धर्म तक अलग-अलग होते हैं। उन्होंने बड़ी कंपनियों द्वारा अपने शहद में सिरप जैसी कोई चीज मिलाए जाने की भी आशंका जताई। उन्होंने कहा कि हर फ़्लोरा के शहद अलग होते हैं। जैसे, सरसो का शहद काफी मोटा होता है और गर्मियों में जम जाता है। जहाँ मधुमक्खियों को ले जाया जाता है, वो वहाँ के पेड़-पौधों पर जाती हैं।

उन्होंने एक और खास बात बताई कि इन मधुमक्खियों का GPS काफी मजबूत होता है, उन्हें जहाँ भी ले जाया जाता है वहाँ वो परागण के लिए बाहर जाती हैं और फिर वापस अपने छत्ते में लौट आती हैं। हर मधुमक्खी अपने छत्ते में लौटती है और उसे पता होता है कि उसका छत्ता कहाँ है। अगर छत्ता कहीं खो गया, तो वो ढूँढती भी हैं। मुकेश पाठक को मधुमक्खी पालन की प्रेरणा पीएम मोदी द्वारा 2015 में दिए गए एक भाषण से मिली थी।

ऑपइंडिया से बात करते हुए ‘FABA Honey’ के मुकेश पाठक ने बताया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ भी बोलते हैं तो उसके पीछे उनका गहरा अध्ययन होता है। मेरे दिमाग में ये बात थी। इसके करीब एक वर्ष बाद मेरे एक मधुमक्खी पालक मित्र फिर से मेरे संपर्क में आए, जिन्होंने मुझे इसकी बारीकियाँ समझाईं। मैं सोशल मीडिया पर था, इसीलिए मैंने शहद के बारे में जागरूकता फैलाना शुरू किया। फिर शुद्ध शहद देने के लिए मैंने मधुमक्खी पालन शुरू किया।”

मुकेश पाठक आज भी ऑनलाइन ही अपना कारोबार कर रहे हैं, वो ऑनलाइन ऑर्डर-पेमेंट लेते हैं, फिर डिलीवरी भेजते हैं। डिमांड इतनी है कि महीने में 3000 किलो शहद बिक जाते हैं, फिर भी ग्राहकों की माँग पूरी नहीं हो पाती। उन्हें कई ग्राहक ट्विटर से भी मिले हैं।मुकेश पाठक पूछते हैं कि यहाँ ये हाल है तो बड़ी कंपनियाँ कैसे शहद की डिमांड पूरी कर रही हैं, बिना मधुमक्खी पालन किए गए। इन कंपनियों ने कभी नहीं बताया कि वो शहद ला कहाँ से रहे हैं।

इस तरह शहद को डब्बों में पैक किया जाता है

मुकेश पाठक ने कहा कि मधुमक्खी पालन के लिए कई सरकारी योजनाएँ हैं, लेकिन कई मधुमक्खी पालक इसे ले नहीं पा रहे हैं। वो इसका कारण बताते हैं कि कुछ अहर्ताओं को पूरा करने के कारण इसे नहीं ले पा रहे हैं तो कई जंगल में रहते हैं और कागज-कलम से उनका खास वास्ता नहीं। हालाँकि, कई लोगों को इसका लाभ मिलता भी है। उन्होंने बताया कि सरकारी सहूलियतों का लाभ उन्हें भी मिला, बैंक से आसानी से लोन मिल गया।

PM नरेंद्र मोदी की ‘स्वीट क्रांति’ की पहल का हो रहा है असर

मुकेश पाठक ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा ‘स्वीट क्रांति’ क्रांति की बात करने से अब निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी भी मधुमक्खी पालकों को गंभीरता से लेते हैं और उनकी मदद करते हैं, वरना पहले उन्हें इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। कई लोगों को इसका लाभ मिला है। बता दें कि जिस रामपुर से मुकेश पाठक आते हैं, वो कभी आजम खान के कारण जाना जाता था। वहाँ जम कर उनकी माफियागिरी चलती थी।

लेकिन, मुकेश पाठक ने बताया कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से तस्वीर बदल गई है। उनका घर और पंजीकृत दफ्तर भी रामपुर में हैं, लेकिन माइग्रेशन के लिए वो बिहार-बंगाल आते-जाते रहते हैं। उन्होंने कहा कि अब यहाँ काफी सकारात्मक वातावरण है और प्राकृतिक आपदाओं के अलावा कहीं से नुकसान की कोई आशंका नहीं होती। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था दुरुस्त है और पुलिस-प्रशासन शिकायतों का तुरंत संज्ञान लेता है।

बता दें कि मोदी सरकार भी ‘वीट रेवोलुशन’ को लेकर खासी गंभीर है। ‘National Beekeeping And Honey Mission’ चलाया जा रहा है। 2020-21 से लेकर 2022-23 की अवधि के लिए मधुमक्खी पालन हेतु 500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। अब तक 114 परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है, जो 139 करोड़ रुपए के हैं। उधर संयुक्त राष्ट्र ने भी दुनिया भर को चेताया है कि हमारा अस्तित्व ही मधुमक्खियों और अन्य Pollinators पर निर्भर है, इसीलिए उनका संरक्षण होना चाहिए।

मुकेश पाठक और उनके ब्रांड ‘FABA Honey’ के साथ एक और अच्छी बात ये है कि वो वेदों की विचारधारा के साथ शहद का प्रचार-प्रसार करते हैं। उनके डब्बे पर ऋग्वेद की पंक्ति ‘मधु॒ वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥’ लिखी होती है। साथ ही लिखा होता है कि ये वैदिक मूल्यों पर आधारित है। सोशल मीडिया के जरिए वो शहद के फायदों के बारे में भी लगातार बताते रहते हैं। किस फायदे के लिए शहद को किस प्रक्रिया के तहत किस चीज के साथ ग्रहण करें, इसकी वो जानकारी देते रहते हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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