एक बार फिर से कश्मीर मैं हिंदुओं की हत्याओं का सिलसिला शुरू हो चुका है। पिछले सप्ताह श्रीनगर में रेहड़ी लगाने वाले बिहार के भागलपुर निवासी वीरेंद्र पासवान के साथ दवा व्यापारी माखनलाल बिन्दरू की हत्या कर दी थी। उसके बाद आतंकियों ने श्रीनगर के ईदगाह क्षेत्र के एक स्कूल में घुसकर शिक्षक दीपक चंद और प्रिंसिपल सुपिन्दर कौर की गोली मारकर हत्या कर दी। खास बात ये है कि शिक्षकों की हत्या करने से पहले उनका धर्म पूछा गया और परिचय पत्र में देखा गया।
#BREAKING: Two teachers killed in broad daylight in Srinagar, Kashmir – both from minority community of Sikh and Kashmiri Pandits. The teachers identified as Satinder Kour and Deepak Chand. IG Kashmir Vijay Kumar confirms the development. Security forces have reached the spot. pic.twitter.com/HFZ32VpTMi
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) October 7, 2021
केंद्रशासित राज्य जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख व्यक्तियों की ताबड़तोड़ हत्याओं के बाद कश्मीरी हिंदुओं में दहशत फैल गई है। यहाँ ये जानना बहुत जरूरी है कि कश्मीर में क्या ऐसा पहली बार हो रहा है या इससे पहले भी ये सब हो चुका है?
वर्तमान घटनाक्रम पर दुख प्रकट करते हुए पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ अजय चुरुंगु ने इसे घाटी में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की कोशिशों को नाकाम करने की साजिश बताया। उन्होंने बताया कि बीते सप्ताह हिंदू धर्मस्थलों में तोड़फोड़ की गई है और फिर समाज के एक सम्मानित सदस्य को RSS का एजेंट बताकर दुकान में उनकी हत्या कर दी गई।
The road from Haft Chinar Chowk to Jehangir Chowk (where Bindroo Medicate is located) will be named Shaheed Makhan Lal Bindroo Road as a tribute to his contributions to society.
— Junaid Azim Mattu (@Junaid_Mattu) October 6, 2021
A resolution to this effect will be formally proposed in the SMC General Council. #MakhanLalBindroo pic.twitter.com/4f7WpzF8Hx
डॉ. अजय चुरुंगु के अनुसार, दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में लगभग एक हजार कश्मीरी हिंदुओं ने अपने खेत-खलिहान व मकानों को अवैध कब्जे से मुक्त करवाने का निवेदन किया है। नब्बे के दशक में आतंकियों के डर से घाटी छोड़ने के बाद उनकी संपत्तियों पर अवैध कब्जा कर लिया गया है।
इन हत्याओं पर वरिष्ठ कश्मीरी पत्रकार बिलाल बशीर ने कहा कि सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रवाद में आस्था रखने वाले मुसलमानों की भी हत्याएँ की जा रही हैं। बिलाल बशीर के अनुसार, वर्ष 2021 में ही अब तक 18 मुसलमानों को भारत समर्थक बताकर आतंकियों द्वारा मार डाला गया है।
पलायन कर रहे हिंदुओं की जमीनों को सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 1997 में राज्य सरकार ने क़ानून बनाकर विस्थापितों की अचल संपत्ति को बेचने और ख़रीदने के ख़िलाफ़ क़ानून बनाया था। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के अनुसार, इसका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ और क़ानून के बावजूद औने-पौने दाम में संपत्तियाँ बिकती रहीं।
वर्तमान सरकार कश्मीरी हिंदुओं की उन जमीनों को मुक्त कराने का प्रयास कर रही है, जिन पर अवैध कब्जा है। कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने वेबपोर्टल के माध्यम से कश्मीरी विस्थापितों की जमीन संबंधी विवाद का विवरण माँगा गया था। इन प्रयासों से पलायन कर चुके कश्मीरी हिन्दू एक बार फिर से अपने पैतृक आवासों में जाने के सपने को सच होता देख रहे।
Jammu and Kashmir Lieutenant Governor Manoj Sinha launches an online portal for complaints of Kashmiri migrants about their lands and other immovable properties. pic.twitter.com/mtlpnuphNU
— ANI (@ANI) September 7, 2021
कब्जा मुक्त कश्मीर बनाने के सरकार के प्रयासों को विफल करने व कश्मीरी हिंदुओं की पुनर्वापसी के सपने को तोड़ने के लिए आतंकियों द्वारा हिंसा का खेल शुरू किया गया है। पिछले साल 8 जून 2020 में अनंतनाग में कांग्रेस पार्टी से जुड़े सरपंच अजय पण्डिता की हत्या और 2 जून 2021 में त्राल में म्युनिसिपल कमेटी के प्रधान राकेश पण्डिता की हत्या इसी मकसद से की गई थी।
Municipal councillor #RakeshPandita was gunned down in front of his house in Tral kashmir ystrdy by Pak sponsored terrorists.
— Ashoke Pandit (@ashokepandit) June 3, 2021
His only fault was that he was a Hindu and a true Indian. #KashmiriHinduLivesMatter pic.twitter.com/uEu5Z2nZUG
5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद सुरक्षा बलों ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए कई बड़े आतंकियों को मार गिराया था। इसके बाद आतंकियों ने पस्त मंसूबों के साथ सुरक्षाबलों के बदले निहत्थे आम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। साल 2021 में अब तक कुल 25 आम नागरिक आतंकियों की गोली का शिकार हो चुके हैं।
एक आंकड़े के अनुसार, वर्तमान समय मे कश्मीर में लगभग 10 हजार हिन्दू बचे हैं। बचे हुए हिन्दू परिवारों की कुल संख्या 800 के आसपास है। बाहर से काम आदि करने आए अस्थाई हिंदुओं की संख्या 3,565 है। यदि पलायन किए कुल कश्मीरी हिंदुओं की संख्या जोड़ी जाए तो ये लगभग 3 लाख है, जो करीब 77 हजार परिवारों में बँटी हुई है।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, 15 मार्च 1989 से अब तक लगभग 730 कश्मीरी पंडितों की हत्या आतंकियों द्वारा की जा चुकी है। अपने लिए किए जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताते हुए कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति का कहना है कि साल 1990 में 60 से 70 प्रतिशत कश्मीरी पंडित सरकारी नौकरी में थे, पर लंबे समय से लंबित कश्मीरी पंडितों के 500 बच्चों को अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई है।
यदि आतंकियों द्वारा किए गए बड़े नरसंहारों को याद किया जाए तो वर्ष 2003 में पुलवामा क्षेत्र में आने वाले नंदीमार्ग गांव में 20 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी। इसी तरह 2001 में मार्च के महीने में चित्तीसिंहपुरा में 35 सिखों को लाइन में खड़ा कर के मार डाला गया था। डोडा में भी 14 अगस्त 1993 में बस रोक कर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी।
We remember & pay our respects to those 24 #KashmiriPandits & their families who were killed at #Nadimarg #Pulwama #Kashmir on this day in the year 2003.
— Ashoke Pandit (@ashokepandit) March 23, 2020
They were massacred for just being Indian’s.
🙏🙏🙏 pic.twitter.com/DjvPUqijhV
इसी के साथ संग्रामपुर में वर्ष 1997 में घर में घुसकर अपहरण करने के बाद 7 कश्मीरी पंडित, 25 जनवरी 1998 को वंधामा में 4 परिवार के 23 सदस्य, 17 अप्रैल 1998 में ऊधमपुर के प्रानकोट में 11 बच्चों सहित 22 हिंदुओं का नरसंहार हुआ। प्रानकोट हत्याकांड के बाद ही रियासी क्षेत्र से एक हजार हिन्दू पलायन कर गए थे।
सिर्फ स्थानीय हिन्दू ही नहीं, बल्कि आतंकियों के निशाने पर बाहर से आने वाले गैर-मुस्लिम भी रहे। सन 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी और सन 2001 में जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन पर सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर के 11 लोगों की जान ले ली थी।
हिंदुओं के धर्मस्थल भी आतंकियों के निशाने पर हमेशा रहे। जम्मू के रघुनाथ मन्दिर पर वर्ष 2002 में ही 2 बार हमला करके आतंकियों ने 15 से अधिक श्रद्धालुओं की जान ले ली थी। साल 2002 में क्वासिम नगर में आतंकियों के हाथों 29 मजदूर मार डाले गए थे, जिनमें 13 महिलाएँ और 1 बच्चा शामिल था।
कश्मीरी मूल के प्रसिद्ध फिल्मकार अशोक पण्डित ने कश्मीरी हिंदुओं के 1990 दशक के नरसंहार पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई है, जिसमें क्रमवार तरीके से चश्मदीदों के बयानों के माध्यम से बताया गया है कि आतंकियों ने जीवित रहने का मात्र 1 विकल्प दिया था और वो था धर्म बदल लेना। जो इसे नहीं माना, उसे पलायन करना पड़ा अन्यथा उसे मार दिया गया।
बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर ने भी कश्मीरी पंडितों को ले कर एक वीडियो बनाया था, जिसे सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियाँ मिली थीं।
“मै एक कश्मीरी पंडित हूँ!” This video about #KashmiriPandits exodus was shot 4 years back at @TimesNow studio. It is not a short story. It actually happened 30 yrs back on 19th Jan, 1990. Watch it, retweet it. 🙏
— Anupam Kher (@AnupamPKher) January 18, 2020
30 years of Kashmiri Pandit’s exodus https://t.co/0V2NseQFEW