Sunday, December 22, 2024
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‘लावारिस लाश तिरछी पड़ी थी, सीधा किया तो वो मेरा बेटा ही था’: पत्रकार रमन कश्यप के पिता ने दी घटना वाले दिन की जानकारी

"SDM ने कहा कि जो मदद मृत किसानों के परिवार को दी जाएगी, वो मेरे परिवार को भी मिलेगी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी घोषणा की है। मेरी माँग है कि सरकार दोषियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करे, कोई ऐसा कानून लाए कि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।"

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान प्रदर्शनकारी और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसक झड़प को लेकर मीडिया में हर रोज अलग-अलग दावे हो रहे हैं। किसी में कहा जा रहा है कि पहले प्रदर्शनकारियों ने गाड़ी पर हमला किया, जिससे गाड़ी अनियंत्रित हो गई तो कोई कह रहा है कि वाहनों को जानबूझकर किसानों पर चढ़ाया गया। इन सबके बीच सच यह है कि इस हिंसक झड़प के कारण 8 लोगों की जान चली गई, जिसमें एक नाम पत्रकार रमन कश्यप का भी है।

रमन न तो भाजपा से थे और न ही किसान प्रदर्शन का हिस्सा। फिर भी उन्हें उस मनहूस दिन की बलि चढ़ना पड़ा। इसकी वजह बस ये है कि पत्रकार होने के नाते वह वहाँ अपना काम करने गए थे। न उनको मालूम था कि स्थिति ऐसी भयावह हो सकती है और न ही उनके घरवालों को अंदाजा था कि काम पर निकले रमन अब कभी नहीं लौटेंगे। इस हिंसा ने 12 साल की एक बेटी और ढाई साल के बेटे के सिर से पिता के साए को छीन लिया है। वहीं उनके पीछे रह गई हैं कि उनकी रोती-बिलखती पत्नी, माता-पिता और खेती करने वाले दो छोटे भाई- पवन कश्यप और रजत कश्यप।

रमन कश्यप के पिता और उनके बच्चों की तस्वीर

रमन कश्यप के पिता राम दुलारे से ऑपइंडिया की बात

रमन के साथ जो अनहोनी हुई, उसे लेकर ऑपइंडिया ने उनके पिता राम दुलारे कश्यप से बात की। उन्होंने बताया कि घटना वाले दिन प्रदेश उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का एक कार्यक्रम होने वाला था और दूसरी ओर किसान काले झंडे दिखा रहे थे। यही सब देखते हुए निंघासन के रहने वाले रमन 12 बजे तैयार होकर अपने काम पर (कवरेज करने) गए थे। मगर, 4 बजे के करीब उनके छोटे बेटों (जो नैनिताल से लौट रहे थे) का उन्हें फोन आया और पता चला कि रमन का फोन स्विच ऑफ आ रहा है।

बाद में मालूम हुआ कि लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 4 किसानों की मृत्यु हो गई है और रमन का कुछ पता ही नहीं है। राम दुलारे बताते हैं कि पूरा वाकया (हिंसा) दोपहर 3 से 3:30 बजे का है और उनको रात के 3 बजे जाकर पता चला कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। वह कहते हैं कि उनके बेटे को 6:30 बजे के करीब सीधे लखीमपुर खीरी पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया। उन्हें न तो तिकोनिया में और न ही निंघासन में इलाज मिला। अगर कहीं भी थोड़ी कोशिश की जाती तो रमन जिंदा होते।

पिता के अनुसार, “रमन के शव को सीधे लखीमपुर खीरी भिजवाया गया। बीच में अस्पताल थे लेकिन वहाँ नहीं दिखाया गया। हमने शव देखा था इतनी भी चोट नहीं थी। एक टक्कर का निशान था, थोड़ी रगड़ थी, हाथ-पाँव की खाल छिली थी और सड़क का तारकोल लग गया था। इतने सारे पत्रकार लोग यहाँ से गए थे साथ में, किसी ने न तो कुछ बताया और न ही पूछा कि तुम्हारा बेटा आया या नहीं। 3 बजे जाकर तिकोनिया कोतवाल ने मेरे बेटे के दोस्त को फोन किया और कहा कि एक बॉडी की शिनाख्त नहीं हो पाई है जाकर पहचान लो।”

रमन कश्यप और लखीमपुर खीरी हिंसा की तस्वीर (साभार: आजतक)

राम दुलारे सारी घटना को बताते हुए भावुक होते हैं और कहते हैं, “दिन के तीन बजे की घटना पर ये लोग रात के तीन बजे फोन करके बताए। 12 घंटे बाद। हम लोग पहुँचे तो हमें मॉर्चरी ले जाया गया। वहाँ दरवाजा खुला तो एक लावारिस लाश पड़ी थी। तीन शव के पोस्टमॉर्टम हो गए थे। मेरा बेटा तिरछा हुआ पड़ा था। मैंने कपड़े देखे और जब उसे सीधा किया तो देखा वो मेरा ही बेटा मरा पड़ा था। (पिता ने सिसकते हुए कहा) अगर उसको कहीं दिखाया गया होता तो हो सकता है वो बच जाता है।”

प्रशासन की ओर से मिले समर्थन पर राम दुलारे कहते हैं कि जब चौराहे पर वह लोग और उनके बेटे के दोस्त इकट्ठा हुए तो एसडीएम ने आकर उनसे कहा कि वो आश्वासन देते हैं कि जो मदद मृत किसानों के परिवार को दी जाएगी, वो उनके परिवार को भी मिलेगी। इसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से घोषणा हुई कि मृतकों के घरवालों को 45-45 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर और एक सरकारी नौकरी दी जाएगी। इस पर एसडीएम निंघासन ने उन्हें फिर कहा कि जितनी अधिक मदद होगी, इसके अतिरिक्त उसमें भी वो रमन के परिवार का साथ देंगे।

पत्रकार रमन कश्यप (परिवार द्वारा साझा की गई तस्वीर)

अपने पत्रकार बेटे की मृत्यु के बाद राम दुलारे माँग करते हैं कि सरकार पहले तो दोषियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करे और दूसरा सरकार कोई ऐसा कानून लाए कि उनके बेटे जैसे लोग यानी कि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। वो नहीं चाहते कि जो भी रमन के साथ हुआ, वो दोबारा किसी के साथ हो।

राम दुलारे ये भी जानकारी देते हैं कि उन्हें उनके बेटे का फोन मिल गया, जिसमें उनके द्वारा कवर की गई सारी वीडियोज हैं। इसमें दिख रहा है कि किसान प्रदर्शन कर रहे थे, काले झंडे दिखा रहे थे और गाड़ियाँ आ रही थीं। वह पूछते हैं कि इतनी भीड़ होने के बावजूद गाड़ियों को इतनी तेज आने की क्या जरूरत थी। उनके मुताबिक रमन को फॉर्च्यूनर गाड़ी से टक्कर लगी थी जबकि किसान प्रदर्शनकारी थार की चपेट में आए थे।

राम दुलारे यह भी स्पष्ट करते हैं कि उन्होंने अभी ऐसी कोई वीडियो नहीं देखी है, जिसमें गाड़ियों पर हमला होता दिखा हो, इसलिए वह इस बारे में नहीं जानते हैं।

बता दें कि थार से निकल कर अपनी जान बचाने वाले बीजेपी नेता सुमित जायसवाल का कहना है कि जब वो लोग रास्ते से जा रहे थे तो सैंकड़ों की भीड़ ने उन्हें घेरा और धारधार हथियारों के साथ उन पर हमला किया था। इसके बाद ड्राइवर को चोट आई और गाड़ी अनियंत्रित हो गई। उनके मुताबिक शायद इसी दौरान गाड़ी के आगे दो तीन लोग आ गए।

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