Monday, October 14, 2024
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TV पर कंडोम और ‘लव ड्रग्स’ के विज्ञापन पॉर्न फिल्मों जैसे: मद्रास HC ने अश्लील एड को प्रसारित करने से किया मना

कोर्ट ने कहा कि कुछ विज्ञापन ऐसे होते हैं जो लव ड्रग्स को बढ़ावा देने जैसे हैं और पोर्नोग्राफी फिल्म जैसे दिखते हैं। देर रात दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के बारे में बात करते हुए, आदेश में कहा गया, “जो कोई भी इन कार्यक्रमों को देखता है, वह अश्लील सामग्री देखकर चौंक जाएगा।"

टेलीविजन चैनलों पर अश्लील और आपत्तिजनक विज्ञापन दिखाने के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश पास किया है। लाइव लॉ के अनुसार न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी और एन किरुबारकान की पीठ ने पीआईएल पर सुनवाई करते हुए ऐसे विज्ञापनों के प्रसारण पर आश्चर्य जताया, जिन्हें हर उम्र का व्यक्ति देखता है।

कोर्ट ने कहा, “लगभग सभी टीवी चैनल रात 10 बजे के बाद कुछ विज्ञापनों का प्रसारण करते हैं जिनमें कंडोम की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए नग्नता होती है, जिसे हर उम्र के लोग देखते हैं और वह हर टेलीविजन पर नजर आता है। ऐसी सामग्री केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 और केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।”

कोर्ट ने कहा कि कुछ विज्ञापन ऐसे होते हैं जो लव ड्रग्स को बढ़ावा देने जैसे हैं और पोर्नोग्राफी फिल्म जैसे दिखते हैं। देर रात दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के बारे में बात करते हुए, आदेश में कहा गया, “जो कोई भी इन कार्यक्रमों को देखता है, वह अश्लील सामग्री देखकर चौंक जाएगा।”

याचिकाकर्ता ने मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 11 नवंबर को अपने आदेश में कहा कि विज्ञापनों में दर्शायी जाने वाली नग्नता केबल टेलीविजन नेटवर्क एक्ट 1995 की धारा 16 का उल्लंघन करती है। अदालत ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत टेलीकास्ट होने वाले कार्यक्रमों में दर्शकों की नैतिकता, शालीनता और धार्मिक संवेदनशीलता को ठेस नहीं पहुँचनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि नियम 7(2) (iv) के तहत केबल ऑपरेटर्स यह सुनिश्चित करेंगे कि कार्यक्रमों में महिला रूप का चित्रण मनोहर और सौंदर्यपूर्ण हो और वो भी अच्छे व शालीनता मानदंडों के भीतर। कोर्ट ने लव ड्रग्स, कंडोम और अंतर्वस्त्र आदि का उल्लेख करते हुए टीवी पर दिखाई जाने वाली सामग्री पर चिंता जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि टीवी पर नग्नता, डॉक्टर की सलाह के नाम पर और विज्ञापनों में मौजूद है। इससे युवा और बच्चों के दिमाग पर असर पड़ेगा।

अपने अंतरिम आदेश में कोर्ट ने ‘न्याय के हित’ में उत्तरदाताओं से ऐसे प्रोग्राम की सेंसरशिप पर जवाब माँगा, जैसे कि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5 ए के तहत विचार किया गया था।

गौरतलब है कि इस मामले में कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में यही प्रार्थना की गई थी कि कोर्ट उत्तरदाताओं को अपनी ओर से इस संबंध में निर्देश दें। इसमें प्रसारण मंत्रालय के सचिव, न्यूज एंड फिल्म तकनीक के सचिव, तमिलनाडु का फिल्म लॉ विभाग, विरुधुनगर के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से मामले की मॉनीटरिंग करने और उपयुक्त कदम उठाने की बात आदि कही गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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