काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉक्टर कुलपति तिवारी ने ज्ञानवापी विवादित ढाँचे और शिवलिंग को लेकर पुरानी तस्वीरें दिखाते हुए बड़ा दावा किया है। उन्होंने तस्वीर दिखाते हुए कहा है कि ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में एक और शिवलिंग है। तस्वीर में देखा जा सकता है कि दीवार में बनी एक जगह पर छोटा सा शिवलिंग रखा हुआ है। डॉ तिवारी ने कहा कि उस शिवलिंग को अब उस जगह से हटा दिया गया है। तस्वीर 17 वर्ष पुरानी बताई जा रही है।
ज्ञानवापी विवादित ढाँचे की पश्चिमी दीवार पर बने खाँचे में रखे इस शिवलिंग को लेकर बड़ा सवाल ये है कि अब ये आखिर कहाँ पर है और इसे हटा कर कहाँ रखा गया है? उन्होंने उस दीवार पर कमल के फूल और घंटा की आकृतियाँ भी दिखाई। उन्होंने कहा कि उनके पास जो भी सबूत हैं, वो प्रमाणित हैं। ‘दैनिक भास्कर’ ने कुछ अन्य तस्वीरें भी प्रकाशित की हैं, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ कुलपति तिवारी ने ही भेजी है।
एक और तस्वीर है, जिसे डेढ़-दो साधक पुराना बताया जा रहा है। इसमें देखा जा सकता है कि ज्ञानवापी विवादित ढाँचे के उस हिस्से में बच्चे खेल रहे हैं, वहाँ पर ही श्रृंगार गौरी का मंदिर बताया जाता है। विवादित ढाँचे के परिसर के पास स्थित चबूतरे पर बच्चों को खेलते हुए देखा जा सकता है। एक अन्य तस्वीर में ज्ञानवापी ढाँचे की पिछली दीवार साफ़ नजर आ रही है, जो किसी प्राचीन मंदिर का ही प्रतीत हो रहा है। मंदिर के अवशेष पर ही इसे इस्लामी आक्रांताओं द्वारा बनाया गया था।
एक अन्य दस्तावेजी तस्वीर है, जिसमें अंग्रेजी में ज्ञानवापी का अर्थ ‘Well Of Knowledge’ लिखा हुआ है, अर्थात – ज्ञान का कुआँ। इस तस्वीर में नंदी की मूर्ति और उसके पीछे भगवान हनुमान की प्रतिमा दिखाई दे रही है। बता दें कि मंदिर को लेकर जो प्राचीन कथा है, वो भी यहाँ ‘ज्ञान का कुआँ’ होने की बात बताती है। डॉ तिवारी ने बताया कि इस कूप का निर्माण भगवान शिव ने खुद अपने त्रिशूल से किया था और इसमें स्नान करने के बाद माँ पारवती भगवान विश्वेश्वर की पूजा करती थीं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत ने ज्ञानवापी परिसर में एक और शिवलिंग की दिखाई तस्वीर, उनका दावा- तस्वीर 17 साल पुरानी, मसाजिद कमेटी का इंकार#Gyanvapi #UttarPradesh https://t.co/dvxEXuvIif
— Dainik Bhaskar (@DainikBhaskar) May 21, 2022
उन्होंने हाल ही में मिले शिवलिंग को ही विश्वेश्वर भगवान बताया। हालाँकि, अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमिटी ने इन तस्वीरों को नकारते हुए कहा है कि पूरे मस्जिद परिसर में ऐसी कोई शिवलिंग है ही नहीं। उन्होंने दावा किया कि कोई भी आकर देख सकता है। उन्होंने दीवार पर बनी नक्काशी को अकबर के तब के नए मजहब ‘दीन-ए-इलाही’ के चिह्न बताते हुए कहा कि सन् 1585 के आसपास इसे बनाया गया था। उन्होंने कहा कि इस ‘मस्जिद’ को जौनपुर के सुल्तानों ने बनवाया था, जिसका औरंगजेब ने जीर्णोद्धार किया।